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Kaal Bhairav Jayanti Bhairav Ashtami काल भैरव जयंती भैरव अष्टमी

Kaal Bhairav Jayanti Bhairav Ashtami काल भैरव जयंती भैरव अष्टमी

Kaal Bhairav Jayanti Bhairav Ashtami काल भैरव जयंती भैरव अष्टमी, मार्गशीर्ष(अगहन या मिंगसर) माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को मध्याह्न के समय भगवान शंकर के अंश से भैरव जी की उत्पति हुई थी। भैरव जी भगवान शिव का ही रौद्र स्वरूप है। भैरव जी भगवान शंकर के पांचवे अवतार है। भैरव जी का वाहन कुत्ता होता है। भैरव का अर्थ भयानक एवं पौषक होता है। इनसे काल भी भयभीत रहता है। इसलिये इन्हे “कालभैरव” भी कहते है। इस दिन को ‘कालाष्टमी’ के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान काल भैरव को ‘डंडापड़ी’ भी कहा जाता है।

Kaal Bhairav Ashtami Vrat Vidhi काल भैरव अष्टमी व्रत विधि विधान

  1. काल भैरव अष्टमी तिथि के दिन सर्वप्रथम प्रात: काल स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प करके दिन के समय भैरव एवं भोलेनाथ का पूजन करें।
  2. घर में भगवान शिव के समक्ष घी का दीपक जलाकर पूजन करें।
  3. काल भैरव अष्टमी के दिन भैरव मंदिर में जाकर भगवान भैरव के सामने चोमुखी दीपक जरूर जलाएं।
  4. भगवान भैरव की पूजा में प्रसाद के रूप में इमरती, जलेबी, कचोरी अर्पित कर प्रसाद बांट देना चाहिए, साथ ही काले तिल, पान, चमेली का फूल, फूल माला, उड़द, नारियल भी अर्पित करे।
  5. काल भैरव जयंती के दिन भैरव मंदिर में जातक उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल (चोला चढ़ाय) अर्पित करें।
  6. भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि में की जाती है, पास में स्थित भैरव मंदिर या शिवालय में रात्रि जागरण करते हुए शंख, घंटा, दुंदुभि वादन करते हुए कथा, कीर्तन, जप और भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  7. कालभैरवाष्टक का पाठ करने से ऊपरी बाधाएं, भूत-प्रेत की परेशानी दूर होती है।
  8. पूजा उपरान्त काल भैरव भगवान की आरती जरूर करनी चाहिए।
  9. भैरवाष्टमी को गंगा-स्नान, पितृ-तर्पण-श्राद्ध सहित विधिवत व्रत करने वाला मनुष्य सालभर लौकिक तथा परलौकिक बाधाओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
  10. कालभैरव सदा धर्मसाधक, शांत और सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाले प्राणी की काल से सदा रक्षा करते है।
  11. भैरव अष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने के साथ ही कुत्तों को भोजन अवश्य कराएं। काल भैरव जयंती के दिन एक रोटी को सरसों के तेल में चुपड़कर किसी काले कुत्ते को खिला दें।
  12. इस दिन संध्या के समय शमी के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशियां आने लगती हैं।

Kaal Bhairav Mantra काल भैरव मंत्र

ॐ कालभैरवाय नम:
ओम भयहरणं च भैरव:
ओम कालभैरवाय नम:
ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं ओम भ्रं कालभैरवाय फट्
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि

काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई?

स्कंदपुराण और शिव पुराण के अनुसार एक बार त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सर्वश्रेष्ठता को लेकर बहस होने लगी। तीनो देव स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ सिद्ध कर रहे थे। जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है। तो यह कार्य ऋ​षि-मुनियों को सौंपा गया। ऋ​षि-मुनियों ने सोच-विचारने के बाद भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ बताया।

ऋषि-मुनियों की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सिर क्रोध से जलने लगा। वे क्रोध में आकर भगवान ​शंकर का अपमान करने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित हो रौद्र रूप में आ गए और उस समय उनसे ही उनके रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए पाचवे सिर को काट दिया। तभी से ब्रह्म देव के चार सिर ही पूजे जाते है।

इससे काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा। तब भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल गए। पृथ्वी पर सभी तीर्थों का भ्रमण करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी पहुंचे। वहां पर वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। शिव की नगरी काशी काल भैरव को इतनी अच्छी लगी कि वे सदैव के लिए काशी में ही बस गए।

धरती पर जितने ज्योतिर्लिंग है। उतने ही काल भैरव मंदिर भी स्थापित है। जिस नगरी में ज्योतिर्लिंग होता है। वो ज्योतिर्लिंग उस नगरी के राजा है। और काल भैरव कोतवाल यानि संरक्षक होते हैं। जैसे भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव काशी के कोतवाल यानि संरक्षक हैं।

भैरव साधना क्यों की जाती है (भैरव साधना के लाभ)

तांत्रिक क्रियाओं जैसे वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। काल भैरव की साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुंडली में छठा भाव रिपु यानि शत्रु का भाव होता है। लग्न से षष्ठ भाव भी रिपु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु संबंधी कष्ट होना संभव है।

भैरव-उपासना की दो शाखाएं
बटुक भैरव और
काल भैरव
के रूप में प्रसिद्ध हुईं। इनमें जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है – असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

FAQ

साल 2023 में काल भैरव जयंती कब है?

साल 2023 में काल भैरव जयंती 5 दिसंबर को है।

शिव जी के गण कौन-कौन बताए गये है?

कालिका पुराण के अनुसार भैरव, नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल को शिवजी का गण बताया गया है।

कालभैरव के अष्टनाम कौन-कौन से है?

कालभैरव के इन अष्टनाम का जप करें –
1- असितांग भैरव,
2- चंद्र भैरव,
3- रूद्र भैरव,
4- क्रोध भैरव,
5- उन्मत्त भैरव,
6- कपाल भैरव,
7- भीषण भैरव
8- संहार भैरव ।

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