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Shanivar Vrat Vidhi Katha शनिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व

Shanivar Vrat Vidhi Katha शनिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व

Shanivar Vrat Vidhi Katha Saturday Vrat शनिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस दिन शनि देव की पूजा की जाती है। यह व्रत करने से शनि देवता अति प्रसन्न होते है। इस व्रत के करने से सब प्रकार की सांसारिक झंझटे दूर होती है। इस व्रत से अगर कोई झगड़ा चल रहा हो तो उसमे विजय प्राप्त होती है। काला तिल, काला वस्त्र, तेल तथा उड़द शनि देव को अति प्रिय है, इसलिए इनके द्वारा शनि देव की पूजा की जाती है।

शनिवार का व्रत 51 या 21 शनिवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। काली वस्तु का दान भी करना चाहिए।

Shanivar Vrat Vidhi शनिवार व्रत कैसे करे (शनिवार व्रत की विधि)

  1. शनिवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर शनि देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही शनि देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, काला पुष्प, काला वस्त्र, फल, इमरती(प्रसाद), काला तिल, उड़द, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, तेल, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: शाम के समय शनि देव और हनुमान जी भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय शनि ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. शनिवार व्रत में उड़द(कलाई) के आटे से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। जैसे पकौड़ी, चीला और बड़ा इत्यादि खाए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। शाम के समय पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है।
  6. पूजन के अंत में शनि देव और हनुमान जी भगवान की आरती जरूर करें।
  7. शनि देव पूजन के पश्यात शनिवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. शनिवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री शनि कवचं, श्री शनि स्तुति और शनि स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
  9. शनिवार व्रत में पीपल के पेड़ का भी पूजन किया जाता है ।

Shanivar Vrat Rules शनिवार व्रत के नियम

  1. शनिवार व्रत के दिन भोजन का कोई विशेष नियम नहीं है।
  2. पूरे दिन में भोजन एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व शनि देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. श्री शनि कवचं, श्री शनि स्तुति, श्री शनि स्त्रोतम का पाठ और शनि मन्त्र की 21, 11 या 5 माला जरूर करें।
  4. शनि व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी शनि या हनुमान मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। शनि देव की कृपा परिवार पर रहेगी ।
  6. शनि ग्रह का राशि-भोग काल: शनि ग्रह ढाई वर्ष में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर ढाई साल तक रहता है।
  7. शनि ग्रह की दृष्टि: शनि ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे, सप्तम तथा दसवें भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से देखता है।
  8. शनि ग्रह की जाति: शनि ग्रह की जाति ‘असुर’ जाति है।
  9. शनि ग्रह का रंग: शनि ग्रह का रंग ‘काला रंग’ होता है।
  10. शनि ग्रह ‘दुःख’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
  11. शनि ग्रह ‘पाप ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
  12. शनि शान्त्यर्थ रत्न : नीलम
  13. शनि ग्रह की दान वस्तुएँ: माष, तिल, तेल, कुलथी, लोहा, भैंस, काली गाय, काले वस्त्र, इंद्रनील मणि, उड़द, काले जूते, सोना, काला कम्बल, काले रंग के पुष्प, कस्तूरी । शनिवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय मध्यान्ह 12 बजे रहता है।

Shanivar Vrat Mantra शनिवार व्रत का मंत्र

शनि ग्रह की जप संख्या: शनि ग्रह की जप संख्या 23000 जप की है।
शनि मन्त्र – ऊँ शं शनैश्चराय नमः ।
शनि ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनये नमः|
शनि मन्त्र की 21, 11 या 5 माला की जाती है ।

विशेष:- काले वस्त्र धारण करके मन्त्र जप करे और जप करते समय एक पात्र में शुद्ध जल, काला तिल, दूध, चीनी और गंगाजल अपने पास रख ले । जप के बाद इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ में पश्चिम मुखी होकर चढ़ा दें।

Shanivar Vrat Significance शनिवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. शनिवार का व्रत करने से सभी दुखो का निवारण होता है।
  2. शनिवार का व्रत लोहे, मशीनरी, कारखाने वालो को जरूर करना चाहिए, इससे व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
  3. जिस किसी की कुंडली में शनि की दशा बनी हो उसे शनिवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका शनि दोष दूर होता है ।
  4. शनिवार के दिन हनुमान जी और शनि देव की पूजा-अर्चना करने से शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती है।
  5. शनिवार का व्रत करने से शनि देव अति प्रसन्न होते है तथा पूर्व जन्म और इस जन्म के कर्म फल की प्राप्ति सरलता से होती है। दुखो का अंत शीघ्र ही करने वाले है शनि देव।
  6. रोग रहित लम्बी आयु की इच्छा रखने वालो को यह व्रत अवश्य करना चाहिए ।
  7. कलियुग में “पाप ग्रहो” की प्रधानता होती है इसी कारण शनि देव जिस पर भी प्रसन्न हो तो उसका जीवन सुखमय और सफल बन जाता है।

Shanivar Vrat Aarti शनिवार व्रत की आरती( शनि देव की आरती) Shani Dev ki Aarti

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

Shanivar Vrat Katha शनिवार व्रत की कथा(शनिवार व्रत की पौराणिक कथा)

एक समय की बात है. सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया. वे सभी ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इंद्र देव के पास गए. वे भी निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेज दिया क्योंकि वे एक न्यायप्रिय राजा थे.

सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में बताया. राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाया और उनको क्रम से रख दिया. उन्होंने सभी ग्रहों से इस पर बैठने को कहा. साथ ही कहा कि जो सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह होगा. लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे. इस वजह से वे नाराज हो गए.

उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुमने जानबूझकर ऐसा किया है. तुम जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक होती है. शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है. शनि की साढ़ेसाती आई तो राम को वनवास हुआ और रावण पर शनि की महादशा आई तो उसका सर्वनाश हो गया. अब तुम सावधान रहना.

कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई. तब शनि देव घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए. राजा विक्रमादित्य को पता चला कि एक सौदागर अच्छे घोड़े लेकर आया है, तो उन्होंने उनको खरीदने का आदेश दिया. एक दिन राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर बैठे, तो वो उनको लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया.

राजा विक्रमादित्य का बुरा वक्त शुरु हो गया. भूख प्यास से वे तड़प रहे थे, तो एक ग्वाले ने पानी पिलाया, तो राजा ने उसे अपनी अंगूठी दे दी. फिर नगर की ओर चल दिए. एक सेठ के यहां पानी पिया. अपना नाम उज्जैन का वीका बताया. सेठ वीका को लेकर घर गया. वहां उसने देखा कि एक खूंटी पर हार टंगा है और खूंटी उसे निगल रही है. देखते ही देखते हार गायब हो गया. हार चुराने के आरोप में सेठ ने वीका को कोलवाल से पकड़वा दिया.

वहां के राजा ने वीका का हाथ-पैर कटवा दिया और नगर के बाहर छोड़ने का आदेश दिया. वहां से एक तेली गुजर रहा था, वीका को देखकर उस पर दया आई. उसने उसे बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चल दिया. उस समय शनि की महादशा समाप्त हो गई. वीका वर्षा ऋतु में मल्हार गा रहा था, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने उसकी आवाज सुनी, तो उससे ही विवाह करने की जिद पर बैठ गई. हारकर राजा ने बेटी की विवाह वीका से कर दिया.

एक रात शनि देव ने वीका को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि तुमने मुझे छोटा कहने का परिणाम देख लिया. तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें. तब शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा का श्रवण करेगा और व्रत रहेगा, उसे शनि दशा में कोई दुख नहीं होगा. शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए.

जब सेठ को पता चला कि मीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर सत्कार अपने घर पर किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया. इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया. राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं. तब से राजा विक्रमादित्य के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज होने लगी.

Shani Kavacham श्री शनि कवचं

विनियोग : अस्य श्रीशनैश्चर कवच स्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: शनैश्चरो देवता, श्रीं शक्ति: शूं कीलकम्, शनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग: ।

अथ श्रीशनि कवचम्

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।1।।
ब्रह्मा उवाच
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।
ॐ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन: ।।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज: ।।4।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज: ।।5।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।


नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन: ।।8।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज: ।।9।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।10।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु: ।।12।।

|| इति श्री ब्रह्माण्ड पुराणे शनैश्चर कवचम् सम्पूर्णम् ||

श्री शनि स्तुति Shri Shani Stuti

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन।जय कृष्णो सौरी जगवन्दन॥
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा।वप्र आदि कोणस्थ ललामा॥
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा।क्षण महँ करत रंक क्षण राजा॥
ललत स्वर्ण पद करत निहाला।हरहु विपत्ति छाया के लाला॥

Shani Stotram श्री शनि स्त्रोत्रं

विनियोग- अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रमन्त्रस्य दशरथ ऋषिः।

श्री शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। शनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

दशरथ उवाच

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिङ्गलमन्दसौरिः।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥1॥

सुरासुराः किम्पुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥2॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतङ्गभृङ्गाः।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥3॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिषेशाः पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥4॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥5॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥6॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।
गृहाद्गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥7॥

स्रष्टा स्वयम्भूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुस्साममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥8॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥9॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥10॥

एतानि दशनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥11॥

॥इति श्री दशरथकृतं श्री शनैश्चराष्टकं सम्पूर्णम्॥

शनिवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

FAQ

शनिवार व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?

शनिवार व्रत को शाम के समय शनि देव और हनुमान जी की पूजा करने के बाद कभी भी खोला जा सकता है । भोजन एक समय ही करना चाहिए। उड़द से बनी पकोड़ी, पंजीरी, चीला और बड़ा जरूर खाए। इस दिन तेल से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। फल में केला खाए ।

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