Amla Navami Vrat Puja Vidhi आंवला नवमी व्रत पूजा विधि, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को यह व्रत किया जाता है। अमला नवमी व्रत को करने से व्रत, पूजन, तर्पण, आदि का फल अक्षय हो जाता है इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते है। इसे कुष्मांड नवमी भी कहते है। आंवला नवमी के दिन पूरे परिवार को आंवले के वृक्ष कि छाँव के नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए। इस प्रकार भोजन करने से परिवार के प्रत्येक सदस्य का स्वास्थ्य सही रहता है रोग- दोष सब समाप्त होते है। सभी दीर्घायु और धन-धान्य से भरा पूरा परिवार होता है।
Amla Navami Vrat Puja Vidhi आंवला नवमी व्रत पूजा विधि
इस दिन कुष्मांड(काशीफल/कद्दू ) में गुप्त दान(स्वर्ण, चाँदी, रूपए) रखकर गंध, पुष्प, अक्षत से पूजा करके गौ-धृत, फल, अन्न और दक्षिणा के साथ योग्य ब्राह्मण को दान देने से विशेष फल मिलता है। गाय, पृथ्वी, स्वर्ण, वस्त्र, आभूषण, आंवला आदि का दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप का भी विनाश हो जाता है।
इस दिन स्नानादि करके पूर्व की ओर मुख करके आंवले के वृक्ष की षोडशोपचार विधि द्वारा पूजन करते है। फिर आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा देकर, पेड़ के चारो ओर सूत लपेटकर कपूर या घी की बत्ती से आरती करके एक सौ आठ परिक्रमाएँ लगाते है।
पूजन सामग्री में जल, रोली, अक्षत, गुड़, बताशे, दीपक और आंवला होने चाहिए। ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन कराकर दक्षिणा दे। फिर स्वयं भोजन करे। इस दिन भोजन में आंवला जरूर होना चाहिए।
Amla Navami Vrat Kahani (Katha) आंवला नवमी की कहानी (कथा)
एक महान राजा हुए जो रोज एक मन सोने के आंवले दान किया करते थे, उसके बाद ही भोजन किया करते थे, सो उनका नाम ही आंवला राजा पड़ गया था। एक दिन उसके बेटो की बहुओं ने सोचा कि रोज इतना धन राजा जी इसी तरह दान करते रहे तो सारा धन समाप्त हो जायेगा इसलिये रोज सोने के आंवले दान करना बंद करवाना होगा। यह बात उन्होने अपने पतियों से कही तो राजा के पुत्रो ने राजा के पास जाकर कहा कि आप तो सारा धन लुटा देंगे इसलिये आप आंवले का दान करना बंद कर दो।
यह बात सुन राजा और रानी दोनों ही दुखी हुए और जंगल में जाकर अपने इष्ट देव भगवान विष्णु का ध्यान करने लगे। माता-पिता को महल से निकाल देने पर और दान-धर्म ना करने पर धीरे-धीरे राजा के पुत्रो का पुण्य शून्य हो गया। दूसरे राजा के आक्रमण से हार कर राजा के पुत्र दीन-दुखी होकर यहाँ-वहाँ दिन काटने लगे। उधर जंगल में राजा-रानी बिना आंवला दान के अन्न-जल ग्रहण नहीं किया करते थे सो वो भूके-प्यासे मृत्यु की राह देखने लगे।
तब भगवान ने सोचा कि अगर हमने इनका मान नहीं रखा तो दुनिया में हमे कोई नहीं पूजेगा। तब सपने में भगवान विष्णु ने दोनों को दर्शन दिये और कहा कि तुम उठो, तुम्हारी पहले जैसी रसोई हो गई है और आँगन में आंवले का वृक्ष लगा हुआ है तुम दान करो और भोजन कर लो। तब राजा-रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसा राज-पाट हो गया था और सोने के आंवले वृक्ष पर लगे हुए है। तब राजा-रानी ने सवा मन आवलो का दान किया और भोजन किया। उनका छोड़ा हुआ वैभव लौट आया था।
दूसरी तरफ उनके बेटे- बहु के घर अन्नदाता का बैर पड़ा था। आसपास के लोगो ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहाँ चलो तो तुम्हारा दुःख दूर हो जायेगा। सभी बेटा-बहु वहाँ पहुंच गये। वहाँ रानी अपने बेटे-बहु को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इनसे काम तो कम करायेगे और मजदूरी ज्यादा देंगे।
एक दिन रानी ने अपनी बहु को बुलाकर कहा कि मुझे सिर सहित नहला दो। बहु सिर धोने लगी तो बहु के आँख से आंसू निकलकर रानी की पीठ पर पड़ गया। तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आंसू गिरे है, मुझे कारण बताओ। तब बहु बोली कि मेरी भी सासू की पीठ पर ऐसा ही मस था। वो भी बहुत दानी थी। वह एक मन आंवले का दान किया करती थी। हमने उन्हे करने नहीं दिया। तब सासू बोली कि हम ही तुम्हारे सास-ससुर है। तुमने हमे निकाल दिया था परन्तु भगवान ने हमारा सत रख लिया। हे भगवान ! जैसा राजा-रानी का सत रखा वैसा ही सबका रखना।