Ekadashi Mahatyam Vrat Vidhi Katha Types Udyapan Parana एकादशी व्रत हिन्दू धर्म मे सबसे पवित्र व्रत है और हर माह दो बार यह व्रत किया जाता है । एकादशी देवी का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष मे हुआ था। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्यारस तिथि को यह व्रत किया जाता है । भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है । जो भी मनुष्य श्रद्धा और भक्ति से एकादशी व्रत करता है उनको सभी तीर्थो के स्नान का फल मिलता है और घोर पापो से उद्धार होता है ।
इस व्रत मे पूरे दिन उपवास रखा जाता है।
एकादशी व्रत का परिचय या उत्पत्ति(एकादशी व्रत की कथा)
एकादशी की उत्पत्ति के विषय मे हम विस्तार से यहाँ वर्णन कर रहे है। श्री सूत जी ऋषियों से बोले एकादशी व्रत का महात्यम, विधि और जन्म कि कथा भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्टिर को सुनाई थी, सतयुग मे एक महाभयंकर राक्षस हुआ मुर उसने समस्त ब्रह्माण्ड को जीत लिया था। स्वर्ग लोक भी उसके अधीन था। इंद्र आदि देव भगवान विष्णु की शरण गए। भगवान विष्णु उनकी दशा को देख संसार को उस मुर राक्षस के आतंक से मुक्त करने के लिये मुर का अंत करने को तत्पर हुए। यह युद्ध हजारो साल चला परन्तु भगवान विष्णु का चक्र, गदा, सारंग धनुष मुर का कुछ ना बिगाड़ पाए।
युद्ध करते-करते भगवान विष्णु के मन मे विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई, युद्ध से अंतरध्यान हो प्रभु विश्राम के लिये बद्रिका आश्रम पहुंचे। वहाँ एक गुफा बारह योजन की थी। हेमवती उसका नाम था, उसमे घुसकर सो गए। मुर दैत्य भी पीछे-पीछे चला आया। शत्रु को सोता देख मारने को तत्पर हुआ। तभी उस समय एक सुन्दर सी कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई। जिसके हाथ मे दिव्यास्त्र थे। उस कन्या ने युद्ध मे मुर दैत्य का अंत किया,
भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली “यह दैत्य आपको मारने की इच्छा से आया था मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध कर दिया” भगवान ने कन्या को प्रसन्न हो वर मांगने को कहा तो वह बोली “जो मनुष्य मेरा व्रत करे उसके घर कभी दूध, पुत्र और धन की कमी ना रहे और अंत समय वह आपके लोक जा मोक्ष को प्राप्त करे ” भगवान बोले “तू एकादशी के दिन मेरे शरीर से उत्पन्न हुई तो तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा “
इस प्रकार पतित पावनी विश्व तारणी माता एकादशी का जन्म मार्ग शीर्ष के कृष्ण पक्ष मे हुआ। प्रथम एकादशी उत्पन्ना एकादशी कहलाई ।
एकादशी महात्यम व्रत की पूजन विधि
- एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर विष्णु भगवान और गरुड़ देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ पीले या सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
- पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और गरुड़ देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
- पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और गरुड़ देव का पूजन कर लेना चाहिए।
- मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
- सर्व प्रथम आसान पर पूर्व मुख होकर बैठे।
- पत्नी पति के दाहिनी ओर बैठे और गठजोड़ कर ले फिर पूजन प्रारम्भ करे।
- कुशा या आम के पत्ते से स्वयं और सभी पूजन सामग्री पर जल छिड़के।
- तीन बार आचमन कर हाथ धो ले पवित्री पहने और मन्त्र उच्चारण करे।
- हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर भगवान विष्णु और गरुड़ का आव्हान करे।
- अक्षत-पुष्प मूर्ति पर चढ़ा दे।
- अब हवन प्रारम्भ करे।
- पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती जरूर करें।
- भगवान विष्णु पूजन के पश्यात जिस एकादशी व्रत को कर रहे है उसकी कथा सुननी चाहिए।
एकादशी व्रत के नियम
- एकादशी व्रत में पूरे दिन उपवास किया जाता है। इस दिन दिनभर में एक समय को फलहारी ग्रहण करना चाहिए। सिंघाड़ा, कुटटु, राजगिरा आटे से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। जैसे पकौड़ी, चीला और बड़ा इत्यादि खाए। तेल में मूंगफली(सींग दाना) का तेल ही इस्तेमाल करे।
- आपके नजदीक जो भी चारभुजानाथ जी का मंदिर या राम मंदिर या कृष्ण मंदिर हो, तो वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। विष्णु भगवान की कृपा परिवार पर रहेगी ।
- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जप करें।
- हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।। हमें इस महामन्त्र का जप हृदय से करना चाहिए।
- एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
- एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी के पेड़ को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
- एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।
एकादशी व्रत का महत्त्व या लाभ
- प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना महत्त्व है। हर एकादशी मनुष्य के जाने-अनजाने पापो को नष्ट करने वाली होती है।
- जो मनुष्य श्रद्वा और भक्ति से एकादशी व्रत का पालन करता है। उसके जीवन से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्टों का अंत होता है और उसे सुख, सम्पति, आरोग्य और खुशहाली प्राप्त होती है ।
- जो भी मनुष्य एकादशी व्रत करता है उसे हरी-विष्णु की परम भक्ति प्राप्त होती है ।
- एकादशी करने वाला मनुष्य अपने अंत समय में शांति से प्रभुलोक को जाता है, उसको घोर दुःख नहीं सहना पड़ता है ।
- जो गृह स्वामी-स्वामिनी एकादशी व्रत करते है, उनके यहाँ लक्ष्मी का निवास होता है ।
एकादशी व्रत के प्रकार
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष मे बारह मास होते है और प्रत्येक माह मे दो पक्ष और हर एक पक्ष मे एक एकादशी आती है तो एक माह मे दो एकादशी आती है । इस प्रकार एक वर्ष मे कुल 24 एकादशियाँ होती है । कभी-कभी जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है तो उस वर्ष 2 एकादशियाँ और बढ़ जाती है । तो उस वर्ष कुल 26 एकादशियाँ एक वर्ष मे हो जाती है ।
- उत्पन्ना एकादशी
- मोक्षदा एकादशी
- सफला एकादशी
- पुत्रदा एकादशी
- षटतिला एकादशी
- जया एकादशी
- विजया एकादशी
- आमलकी एकादशी
- पापमोचिनी एकादशी
- कामदा एकादशी
- वरुथिनी एकादशी
- मोहिनी एकादशी
- अपरा एकादशी
- निर्जला एकादशी
- योगिनी एकादशी
- देवशयनी एकादशी
- कामिका एकादशी
- पुत्रदा एकादशी
- अजा एकादशी
- परिवर्तनी(पद्मा या वामन) एकादशी
- इंदिरा एकादशी
- पापांकुशा एकादशी
- रमा एकादशी
- प्रबोधिनी एकादशी
अधिक मास की दो एकादशियाँ
- पद्मिनी एकादशी
- परमा एकादशी
ये सभी एकादशियाँ नाम के अनुसार फल देने वाली होती है। भवसागर से मुक्ति दिलाती है और अंत मे स्वर्गलोक प्राप्ति मे सहायक होती है ।
एकादशी व्रत की उद्यापन विधि
उद्यापन किये बिना कोई भी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है । एकादशी व्रत का उद्यापन अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को करना चाहिए । माघ में अथवा भीम तिथि को भी उद्यापन किया जा सकता है । उद्यापन किसी योग्य आचार्य के द्वारा ही संपन्न कराये।
एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता है, जब व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष कुछ समय तक नियमित व्रत करने का संकल्प करें। भगवान को साक्षी मानकर किए व्रत के संकल्प की पूर्णता अंतिम व्रत के पश्चात उसके उद्यापन करने पर पूरी होती है। व्रत के संकल्प का पूर्ण फल तभी मिलता है, जब उसका उद्यापन विधि-विधानपूर्वक किया जाता है।
दशमी के दिन एक समय भोजन करें, एकादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र होकर उद्यापन करें। एकादशी के व्रत का उद्यापन करते समय भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा आराधना तो की ही जाती है, साथ ही हवन भी अनिवार्य रूप से किया जाता है। उद्यापन वाले दिन व्रत धारक पत्नी सहित पूजन करते है। प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर, स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल को सुंदर रूप से सजाकर और सभी पूजन सामग्री पास में रखकर, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की षोडशमातृका आराधना की जाती है।
पवित्रीकरण, भूतशुद्धि और शांतिपाठ के बाद, गणेश जी के पूजन आदि की सभी क्रियाएं की जाती है। एकादशी व्रत के उद्यापन की पूजा में कलश स्थापना हेतु तांबे के कलश में चावल भरकर रखने का शास्त्रीय विधान है। अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का ध्यान तथा आह्वान किया जाता है। भगवान कृष्ण, प्रभु श्री राम, अग्नि, इंद्र, प्रजापति ब्रह्मा जी आदि का भी आह्वान किया जाता है।
इसके बाद मंत्रो का स्तवन करते हुए एक-एक करके भगवान को सभी सेवाएं और वस्तुएं अर्पित की जाती है। तत्पश्चात हवन किया जाता है। यह सभी कार्य पूजन करने वाले ब्राह्मण द्वारा संपन्न होते है। हवन के उपरांत आचार्य को पूजा में प्रयुक्त सभी वस्तुएं अर्पित करने का विधान है।
एकादशी उद्यापन की सामग्री
रोली, मोली, धूपबत्ती, केसर, कपूर, सिंदूर, चन्दन, होरसा, पेड़ा, बतासा, ऋतुफल, केला, पान, सुपारी, रुई, पुष्पमाला, पुष्प, दूर्वा, कुशा, गंगाजल, तुलसी, अग्निहोत्र, भस्म, गोमूत्र, धृत, शहद, चीनी, दूध, यज्ञोपवीत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गुलाब जल, धान का लावा, इत्र, शिशा, इलाइची, जावित्री, जायफल, पंचमेवा, हल्दी, पीली सरसों, मेहंदी, नारियल(श्रीफल), नारियल गोला, पंचपल्लव, वंदनवार, कच्चा सूत, मूंग की दाल, काले उड़द, सूप, बिल्वपत्र, भोजपत्र, पंचरत्न, सर्वोषधि, सप्तमृतिका, सप्तधान्य, पंचरंग, नवग्रह समिधा, चौकी, घंटा, शंख, कटिया, कलश, गंगासागर,
कटोरी, कटोरा, चरुस्थली, आज्यस्थली, बाल्टी, कलछी, गंडासी, चिमटा, प्रधान प्रतिमा सुवर्ण की, प्रधान प्रतिमा चांदी की, चांदी की कटोरी, पंचपात्र, आचमनी, अर्धा, तष्टा, सुवर्ण जिव्हा, स्वर्ण शलाका, सिंहासन, छत्र, चमर, तिल, चावल, चीनी, पंचमेवा, यव, धृत, भोजपत्र, बालू, ईट, हवनार्थ आम की लकड़ी, दियासलाई, यज्ञपात, गोयंठा ।
वरण सामग्री:- धोती, दुपट्टा, अंगोछा, यज्ञोपवीत, पंचपात्र, आचमनी, छाता, गिलास, लोटा, अर्धा, तष्टा, छड़ी, कुशासन, कंबलासन, कटोरी, गोमुखी, रुद्राक्षमाला, पुष्पमाला, खड़ाऊ, अंगूठी, देवताओं को वस्त्र आदि।
शैय्या सामग्री:- विष्णु भगवान की प्रतिमा, पलंग, तकिया, चादर, दरी, रजाई, पहनने के वस्त्र, छाता, जूता, खड़ाऊ, पुस्तक, आसन, शीशा, घंटी, पानदान, छत्रदान, भोजन के बर्तन, चूल्हा, लालटेन, पंखा, अन्न, धृत, आभूषण।
एकादशी व्रत के पारण की विधि(उपवास खोलने की विधि)
एकादशी व्रत के उपरांत द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मण को पहले भोजन कराना चाहिए । अगर ऐसा करने में असमर्थ हो तो ब्राह्मण भोजन के निमित्त कच्चा सामान(सीधा) मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को थाली सजाकर देना चाहिए ।
हरिवासर में पारण करना निषेध है। द्वादशी तिथि का पहला चौथाई समय हरिवासर कहलाता है।
सादा भोजन बनाकर प्रभु को भोग लगाकर स्वयं एकादशी व्रत खोले ।
निम्न लिखित एकादशी-व्रत पारण मन्त्र बोलकर तत्पश्यात एकादशी व्रत खोले ।
एकादशी-व्रत पारण मन्त्र
तव प्रसाद-स्वीकारात् कृतं यत् पारणं मया।
व्रतेनानेन सन्तुष्टः स्वस्तिं भक्तिं प्रयच्छ मे॥
एकादशी की आरती Ekadashi Aarti
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गुण गौरव की देवी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष में उत्पन्ना होती।
शुक्ल पक्ष में मोक्षदायिनी, पापो को धोती॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष मास के कृष्णपक्ष को, सफला नाम कहे।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहे॥
ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में, शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्रमास बलिकी॥
ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम वरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माहवाली॥
ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी, अपरा ज्येष्ठ कृष्ण पक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रक्खी॥
ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष वरनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ल होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, पाप हरन हारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुःख नाशक मैया।
पावन मास लोंद में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल लोंद में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन ‘रघुनाथ’ स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
Disclaimer (खंडन)
‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।
FAQ
एक माह में कितनी एकादशी आती है ?
हिन्दू कैलेंडर के एक माह में दो पक्ष होते है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में एक-एक एकादशी आती है अर्थात एक माह में दो एकादशी व्रत आते है।