PrabhuPuja https://prabhupuja.com Sanatan Dharma Gyan Sat, 07 Sep 2024 07:35:59 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.1 https://i0.wp.com/prabhupuja.com/wp-content/uploads/2024/07/cropped-prabhupuja_site_icon-removebg-preview-1.png?fit=32%2C32&ssl=1 PrabhuPuja https://prabhupuja.com 32 32 214786494 Raksha Bandhan Fastival रक्षा बंधन का त्यौहार https://prabhupuja.com/raksha-bandhan-fastival/ https://prabhupuja.com/raksha-bandhan-fastival/#respond Sun, 18 Aug 2024 16:43:23 +0000 https://prabhupuja.com/?p=4932 Raksha Bandhan Fastival रक्षा बंधन का त्यौहार, हिंदुओं के चार प्रसिद्ध त्यौहार में से एक रक्षाबंधन का त्यौहार है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे नारियली पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन श्रावण मास का शिव पूजन पूर्ण होता है। यह मुख्यतया भाई बहन के स्नेह का त्यौहार है। रक्षाबंधन त्यौहार भाई बहन को स्नेह की डोर में बांधे रखता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और माथे पर तिलक लगाती हैं और उसके जीवन की मंगल कामना करती है। भाई भी प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति में अपनी बहन की रक्षा करूंगा। इस दिन घर के प्रमुख द्वारों के दोनों ओर श्रवण कुमार के चित्र लगाकर खीर से पूजा की जाती है। भगवान के द्वार पर, बक्से पर, जल कलश पर भी राखी बांधते हैं। ब्राह्मण लोग यजमान के राखी बांधते हैं ।

पौराणिक समय में राखी के प्रसंग(पुराने समय में राखी कब-कब बाँधी गई)

राखी बांधने का प्रथम प्रसंग

एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था। तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बंधी थी। इसी बंधन से ऋणी श्री कृष्ण ने दुशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रोपदी की लाज बचाई थी।

राखी बांधने का दूसरा प्रसंग

मध्यकालीन इतिहास में कैसे घटना मिलती है। जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास रखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया था।

राखी बांधने का तीसरा प्रसंग

प्राचीन समय में एक बार देवता और दानवों में 12 वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोको को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैत्यों के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं के राजा इंद्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल रक्षा का विधान संपन्न किया गया।

‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥’

उक्त मंत्रोचार से गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया। सह धर्मिणी इंद्राणी के साथ वत्र संहारक इंद्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरश पालन किया। इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।

राखी बांधने का चौथा प्रसंग

राजा बलि के यहाँ जब भगवान वामन रूप धरकर आए थे और उन्होंने तीन पग भूमि मांग कर, धरती, आकाश और पाताल तीनों को ही दो पद में माप लिया और तीसरा पग राजा बलि के ऊपर रखा। फिर राजा बलि से कुछ मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप मेरे यहां पाताल में चार माह तक पहरेदार बनकर रहेंगे। ऐसा वरदान दीजिए। तब से ही भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को स्वर्ग में ही छोड़कर वर्ष में चार माह तक पहरेदार के रूप में राजा बलि के यहां रहने लगे। रक्षाबंधन के दिन श्री लक्ष्मी जी स्वर्ग से रिमझिम करती हुई राखी लेकर पधारी। राजा बलि को भाई बनाकर राखी बांधी। भतीजे और भाभी को भी राखी बांधी। तब रानी हीरे मोती का थाल भेंट स्वरूप लेकर आई। तो श्री लक्ष्मी जी बोली- “भाभी हीरे मोती तो मेरे घर में भी बहुत है। मैं तो बंधे हुए मेरे पति श्री विष्णु भगवान को छुड़ाने आई हूं। इस प्रकार लक्ष्मी जी श्री विष्णु भगवान को अपने साथ ले जाती हैं।

FAQ


Raksha Bandhan 2024: Date, Muhurat and Rituals

Purnima Tithi Ends:  On August 19 at 11:55 pm.

Raksha Bandhan Bhadra Tail: 9:51 am–10:53 am.

Raksha Bandhan Bhadra face: 10:53 am–12:37 pm.

Raksha Bandhan Bhadra End Time: 1:30 pm.

Time of Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–8:27 pm.

Afternoon Auspicious Time for Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–3:39 pm.

Pradosh Period for Raksha Bandhan: 6:12 pm–8:27 pm.

Raksha Bandhan 2024: Rituals

The rituals start with applying the roli or kumkum tika to your brother’s forehead, then performing aarti. Now, you can tie the rakhi around the brother’s right wrist and also recite the prayers or wishes to God for his well-being, fortune, and overall good things.

After that, offer sweets to your brothers and exchange gifts. The festival then concludes with festive meals.

रक्षा बंधन 2024: तिथि, मुहूर्त और अनुष्ठान

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 अगस्त को रात 11:55 बजे.
रक्षा बंधन भद्रा पूंछ: सुबह 9:51 बजे से सुबह 10:53 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा मुख: सुबह 10:53 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा समाप्ति समय: दोपहर 1:30 बजे।
रक्षा बंधन उत्सव का समय: दोपहर 1:30 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन उत्सव के लिए दोपहर का शुभ समय: दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:39 बजे तक।
रक्षा बंधन के लिए प्रदोष काल: शाम 6:12 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन 2024: अनुष्ठान अनुष्ठान की शुरुआत आपके भाई के माथे पर रोली या कुमकुम का टीका लगाने, फिर आरती करने से होती है। अब, आप भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांध सकती हैं और उसकी भलाई, भाग्य और समग्र अच्छी चीजों के लिए भगवान से प्रार्थना या कामना भी कर सकती हैं। इसके बाद अपने भाइयों को मिठाई खिलाएं और उपहारों का आदान-प्रदान करें। फिर उत्सव का समापन उत्सव के भोजन के साथ होता है।

]]>
https://prabhupuja.com/raksha-bandhan-fastival/feed/ 0 4932
August Month Festivals Vrat Tyohar अगस्त माह के हिंदू व्रत-त्यौहार https://prabhupuja.com/august-month-festivals-vrat-tyohar/ https://prabhupuja.com/august-month-festivals-vrat-tyohar/#respond Sat, 03 Aug 2024 17:38:53 +0000 https://prabhupuja.com/?p=4863 August Month Festivals Vrat Tyohar अगस्त माह में आने वाले व्रत-त्यौहारों की लिस्ट जैसे श्रावण अमावस्या व्रत, पवित्रा एकादशी, हरियाली तीज, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, बछ बारस तक हम आपसे यहां साझा कर रहे हैं। यह श्रावण माह है जिसमे भगवान शिव की जलभिषेख से पूजा की जाती है, क्योकि इसी माह में समुद्र मंथन से निकले विष का पान करके भोलेनाथ ने पृथवी की रक्षा की थी और वे नीलकंठ कहलाए।

अगस्त माह के व्रत-त्यौहार(विक्रम संवत 2081, श्रावण कृष्ण द्वादशी से भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी तक)

DateHindu DateDayHindu Festival
01 अगस्त 2024श्रावण कृष्ण द्वादशीगुरुवारप्रदोष व्रत
02 अगस्त 2024श्रावण कृष्ण त्रयोदशीशुक्रवारमासिक शिवरात्रि व्रत
03 अगस्त 2024श्रावण कृष्ण चतुर्दशीशनिवारआदि अमावस्या
04 अगस्त 2024श्रावण कृष्ण अमावस्यारविवारश्रावण अमावस्या व्रत, देवपितृकार्य अमावस्या
07 अगस्त 2024श्रावण शुक्ल तृतीयाबुधवार हरियाली तीज
08 अगस्त 2024श्रावण शुक्ल गुरुवारदूर्वा गणपति पूजन
16 अगस्त 2024श्रावण शुक्ल एकादशीशुक्रवारपवित्रा एकादशी(पुत्रदा एकादशी)
17 अगस्त 2024श्रावण शुक्ल द्वादशी/त्रयोदशीशनिवारशनि प्रदोष व्रत
19 अगस्त 2024श्रावण शुक्ल पूर्णिमासोमवाररक्षाबंधन
26 अगस्त 2024भाद्रपद कृष्ण अष्टमीसोमवारकृष्ण जन्माष्टमी
29 अगस्त 2024भाद्रपद कृष्ण एकादशी गुरुवारअजा एकादशी
31 अगस्त 2024भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशीशनिवारशनि प्रदोष व्रत
August Month Festivals Vrat Tyohar

]]>
https://prabhupuja.com/august-month-festivals-vrat-tyohar/feed/ 0 4863
July Month Festivals Vrat Tyohar जुलाई माह के हिंदू व्रत-त्यौहार https://prabhupuja.com/july-month-festivals-vrat-tyohar/ https://prabhupuja.com/july-month-festivals-vrat-tyohar/#respond Mon, 24 Jun 2024 02:58:54 +0000 https://prabhupuja.com/?p=3241 July Month Festivals Vrat Tyohar जुलाई माह में आने वाले व्रत-त्यौहारों की लिस्ट जैसे योगिनी एकादशी व्रत, जगन्नाथ रथ यात्रा, देवशयनी एकादशी, गुरु पूर्णिमा तक हम आपसे यहां साझा कर रहे हैं। यही वह महीना है जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास भी प्रारंभ हो जाता है। 

जुलाई माह के व्रत-त्यौहार(विक्रम संवत 2081, आषाढ़ कृष्ण दशमी से श्रावण कृष्ण एकादशी तक)

DateHindu DateDayHindu Festival
02 जुलाई 2024आषाढ़ कृष्ण एकादशीमंगलवारयोगिनी एकादशी व्रत
03 जुलाई 2024आषाढ़ कृष्ण द्वादशीबुधवारप्रदोष व्रत
04 जुलाई 2024आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी/चतुर्दशीगुरुवारमासिक शिवरात्रि व्रत
05 जुलाई 2024आषाढ़ कृष्ण अमावस्याशुक्रवारआषाढ़ अमावस्या व्रत, देवपितृकार्य अमावस्या
06 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदाशनिवारआषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ
07 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल द्वितीयारविवारजगन्नाथ रथ यात्रा
09 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल तृतीयामंगलवारविनायक चतुर्थी व्रत (मासिक)
11 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल षष्ठीगुरुवारस्कंद षष्ठी व्रत
14 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल अष्टमीरविवारकर्क संक्रांति और मासिक दुर्गाष्टमी
17 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल एकादशीबुधवारगौरी व्रत और देवशयनी एकादशी
18 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल द्वादशीगुरुवारप्रदोष व्रत
20 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशीशनिवारकोकिला व्रत
21 जुलाई 2024आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमारविवारआषाढ़ पूर्णिमा व्रत, गुरु पूर्णिमा
31 जुलाई 2024श्रावण कृष्ण एकादशीबुधवारकामिका एकादशी
July Month Festivals Vrat Tyohar

]]>
https://prabhupuja.com/july-month-festivals-vrat-tyohar/feed/ 0 3241
Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि, नियम, लाभ, कथा और आरती https://prabhupuja.com/vaibhav-lakshmi-vrat-vidhi-katha-rules-aarti/ https://prabhupuja.com/vaibhav-lakshmi-vrat-vidhi-katha-rules-aarti/#respond Sun, 12 May 2024 15:48:28 +0000 https://prabhupuja.com/?p=3057 Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि, नियम, लाभ, कथा और आरती, श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस व्रत में शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी की पूजा उनके वैभव लक्ष्मी रूप में की जाती है। यह व्रत करने से लक्ष्मी मां अति प्रसन्न होती है। इस व्रत के करने से सब प्रकार के सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है। यह व्रत शीघ्र फलदायी होता है। किसी इच्छा को पूर्ण करने के लिये ही ये व्रत किया जाता है। इछित कार्य पूर्ण होने पर पुनः किसी अन्य कार्य हेतु यह व्रत फिर से किया जा सकता है। श्री वैभव लक्ष्मी व्रत 11 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए।

Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय पूजा विधि

  1. शुक्रवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम होता है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही वैभव लक्ष्मी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, चावल, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, फल, मिठाई(प्रसाद), हल्दी, धूप, दीप, लौंग, इलायची, चीनी या गुड़, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, सोने का आभूषण या चाँदी का या रुपए और ताम्बे का कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: संध्या के समय(शाम को) शुभ मुहर्त में श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) का पूजन कर लेना चाहिए। श्री यन्त्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. पूजन में कलश के ऊपर लाल कपड़े में लक्ष्मी स्वरूपा स्वर्ण आभूषण या चाँदी का कोई आभूषण या रुपये का पूजन किया जाता है।
  6. श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में चावल की खीर का भोग लगाकर व्रत खोलने पर उसका सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। शाम के समय पूजन के उपरान्त कभी भी समय भोजन किया जा सकता है।
  7. पूजन के अंत में लक्ष्मी माता की आरती जरूर करें।
  8. श्री वैभव लक्ष्मी पूजन के पश्यात श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा सुननी चाहिए।
  9. श्री वैभव लक्ष्मी कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री महालक्ष्मी स्तुति, श्री लक्ष्मी महिमा और महालक्ष्मी स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी स्तवन

या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalaxmi Stotra)

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

Shree Yantra

Shree Yantra

Vaibhav Lakshmi Vrat Rules वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम

  1. किसी भी व्रत के सफल होने की संभावना तभी होती है, जब वह व्रत पूरे श्रद्धा भाव से और पवित्रता से किया जाए, बिना भाव और खिन्नता से व्रत करना कभी भी फलदायक नहीं होता है।
  2. श्री वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार को किया जाता है और शुरू करने के पूर्व 11 या 21 शुक्रवार व्रत करने का संकल्प लेना होता है।
  3. सौभाग्यवती स्त्रियाँ ही इस व्रत को करती है, घर में अगर सौभाग्यवती स्त्री ना हो तो कोई भी स्त्री या कुंवारी कन्या भी यह व्रत कर सकती है।
  4. व्रत के दिन सुबह से ही “जय माँ लक्ष्मी “, “जय माँ लक्ष्मी ” का जाप मन ही मन करना चाहिए।
  5. यह व्रत अपने ही घर पर करना चाहिए, यदि शुक्रवार के दिन आप यात्रा या प्रवास पर हो तो वह शुक्रवार छोड़ कर अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए।
  6. संकल्प के 11 या 21 शुक्रवार पुरे होने पर रीति अनुसार उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
  7. व्रत पूरा होने पर उद्यापन में कम से कम 7 स्त्रियों को भोजन कराए और भेंट में खीर जरूर दे।
  8. व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।

Vaibhav Lakshmi Vrat Significance वैभव लक्ष्मी व्रत के लाभ/महत्त्व

  1. जिस भी मनोकामना से व्रत प्रारंभ किया जाता है, वह मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
  2. संतानहीन को श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है।
  3. सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है।
  4. कुंवारे लड़के व लड़की को मनभावन जीवनसाथी प्राप्त होता है।
  5. व्रत को करने से सभी प्रकार की विपत्तियां दूर होती है।

Vaibhav Lakshmi Vrat Katha वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा

एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में मग्न रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे।
कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक आशा की किरण छिपी होती है’ इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।


ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उसका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी मानी जाती थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।

शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अटल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति को पूर्व जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल निकला और करोड़पति के बजाय रोड़पति बन गया। यानि रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।


शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था।
समय के परिवर्तन के साथ घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था।


शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ।किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी। इस तरह शीला असह्य दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गयी कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?

फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। तो देखा एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था।उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनके भव्य चेहरे से करुणा और प्यार छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’


शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।
माँ जी ने हँसकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।’
पति जब से गलत रास्ते पर चला गया था, तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया पर वह माँ जी उसे याद नहीं आ रही थीं। तभी माँ जी ने कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।’
माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।


माँ जी ने कहा: ‘बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दु:ख आता है, तो दु:ख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन भी हलका हो जायेगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।’
माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी से कहा: ‘माँ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं, मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगति में फँस गये और बुरी आदतों के शिकार हो गये तथा अपना सब-कुछ गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये हैं।’
यह सुन कर माँ जी ने कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है’, हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है।


अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।


‘बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हलदी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’ का स्मरण करते रहो। किसी की शिकायत नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रख कर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जला कर धूप सुलगा कर रखो।


माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्रीयंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो।


और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि से व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है।
सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।


शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: ‘माँ! आपने वैभवलक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए? यह भी कृपा करके सुनाइये।’
माँ जी ने कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को खीर का नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका व्रत पूर्ण किया है।

तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरम्पार है।’
माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन भी करूँगी।


शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा नहीं साक्षात लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी माँ जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मन ही मन स्मरण करने लगी। सारा दिन किसी की शिकायत नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव-मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। नाक की कील निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रखी। फिर विधिपूर्वक वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी व्रत किया।


यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई। शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी: ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।


इस तरह शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा और अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ और उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगीं। हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!

Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance

Vaibhav Lakshmi Vrat Udyapan Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि

इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दे। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करे। ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम करे।

व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन में कम से कम सात स्त्रियों को भोजन करा खीर का कटोरा दे और सामर्थ्य अनुसार भेंट दे या अपने सामर्थ्य अनुसार 11, 21, 51, 101 स्त्रियों को भी भोजन करवा सकते है ।

Vaibhav Lakshmi Vrat Aarti वैभव लक्ष्मी व्रत की आरती

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में माता लक्ष्मी की ही आरती की जाती है लक्ष्मी मां की आरती का लिंक नीचे हम दे रहे हैं

आरती लक्ष्मी जी की

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में भूलकर भी ना करें ये 10 गलतियां (व्रत में क्या ना करें)

  1. व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।
  2. लक्ष्मी मां को सफाई बेहद पसंद है इसलिए अपने घर को हमेशा साफ रखें। जिस स्थान पर गंदगी होती है वहां नकारात्मक उर्जा रहती है। इससे लक्ष्मी नाराज होकर घर से चली जाती है। व्रत के दौरान ये भी ध्यान रखें कि रात को कभी भी किचन में जूठे बर्तन ना रखें।
  3. वैभव लक्ष्मी व्रत में किसी भी प्रकार की खट्टी चीजें खाना वर्जित है। इस दिन मांसाहार का सेवन ना करें। वैभव लक्ष्मी की पूजा कर रहे घर के सभी सदस्यों को भोजन में सात्विर आहार ही लेना चाहिए।
  4. वैभव लक्ष्मी व्रत के दौरान आलस्य का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। नहीं तो व्रत का संपूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है। व्रत करने वालों को दिन के समय सोना नहीं चाहिए। अगर व्रती बुजुर्ग हों या उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो ऐसे में ये नियम अनिवार्य नहीं है।
  5. मां लक्ष्मी हमेशा वहीं वास करती हैं जहां महिलाओं का सम्मान हो। जिस घर में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, वहां लक्ष्मी कभी वास नहीं करती। हमेशा सभी स्त्रियों का सम्मान करें।
  6. व्रत के दौरान किसी भी तरह से मलिन विचार या गंदा व्यवहार न करें। साथ ही अपने मन और शरीर को एकदम शांत रखना चाहिए।
  7. वैभव लक्ष्मी व्रत को अपने स्वयं के घर में ही करना चाहिये। किसी कारण से अगर आप गृह से दूर हो तो उस शुक्रवार व्रत ना करे, इस बात का विशेष ध्यान रखे।
  8. वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन किसी की भी चुगली नहीं करनी चाहिए, चुगली करने पर व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है।
  9. नाख़ून, बाल आदि वैभव लक्ष्मी व्रत वाले दिन नहीं काटना चाहिये।
  10. व्रत के दौरान अन्न का सेवन वर्जित होता है। मां लक्ष्मी की पूजा के बाद साबूदाने की खिचड़ी, कट्टू की मीठी या नमकीन पूड़ियां, कच्चा केला, सिंघाड़ा या सिंघाड़े का आटा, आलू, खीरे, मूंगफली इत्यादि का सेवन किया जा सकता है। अगर व्रत करने वाले का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो सिर्फ़ पूजा करें या दिन में दो बार व्रत वाला भोजन कर सकते हैं।

Shree Gaja lakshmi Mata Image

Shree Gajalakshmi Mata Image

Shree Adhi Lakshmi Mata Image

Shree Adhilaxmi Mata Image
Shree Adhilaxmi Mata Image

Shree Vijaya Lakshmi Mata Image

Shree Vijaya Lakshmi Mata Image

Shree Aishwarya Lakshmi Mata

Shree Aishwarya Lakshmi Mata

Shree Veer Lakshmi Mata

Shree Veer Lakshmi Mata

Shree Dhanya Lakshmi Mata

Shree Dhanya Lakshmi Mata

Shree Santana Lakshmi Mata

Shree Santana Lakshmi Mata
Shree Santana Lakshmi Mata

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

]]>
https://prabhupuja.com/vaibhav-lakshmi-vrat-vidhi-katha-rules-aarti/feed/ 0 3057
May Month Festivals Vrat Tyohar मई माह के हिंदू व्रत-त्योहार https://prabhupuja.com/may-month-festivals-vrat-tyohar/ https://prabhupuja.com/may-month-festivals-vrat-tyohar/#respond Sat, 27 Apr 2024 02:02:45 +0000 https://prabhupuja.com/?p=3034 May Month Festivals Vrat Tyohar मई माह में आने वाले व्रत-त्यौहारों की लिस्ट जैसे बूढ़ा बास्योड़ा, शीतला अष्टमी से लेकर वरुथिनी एकादशी, श्री वल्लभाचार्य जयंती, अक्षय तृतीया, आखा तीज, श्री परशुराम जयंती, मोहिनी एकादशी, बुद्ध पूर्णिमा, नारद जयंती तक हम आपसे यहां साझा कर रहे हैं।

मई माह के व्रत-त्योहार(विक्रम संवत 2081, वैशाख कृष्ण अष्टमी से ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक)

DateDayHindu Festival
1 मई 2024बुधवारबूढ़ा बास्योड़ा, शीतला अष्टमी
2 मई 2024गुरुवारचंडिका नवमी
4 मई 2024शनिवारवरुथिनी एकादशी, श्री वल्लभाचार्य जयंती
5 मई 2024रविवारप्रदोष व्रत, श्री सैन जयंती
6 मई 2024सोमवारशिवरात्रि (मासिक)
7 मई 2024मंगलवारपितृकार्य अमावस्या
8 मई 2024बुधवारदेव कार्य अमावस्या
10 मई 2024शुक्रवारअक्षय तृतीया, आखा तीज, श्री परशुराम जयंती, बद्री केदारनाथ यात्रा प्रारम्भ
11 मई 2024शनिवारविनायक चतुर्थी (मासिक)
14 मई 2024मंगलवारगंगा सप्तमी
15 मई 2024बुधवारदुर्गाष्टमी (मासिक)
16 मई 2024गुरुवारजानकी नवमी
19 मई 2024रविवारमोहिनी एकादशी
20 मई 2024सोमवारसोम प्रदोष व्रत
23 मई 2024गुरुवारबुद्ध पूर्णिमा, पीपल पूर्णिमा
24 मई 2024शुक्रवारश्री नारद जयंती
30 मई 2024गुरुवारकालाष्टमी (मासिक)
May Month Festivals Vrat Tyohar

]]>
https://prabhupuja.com/may-month-festivals-vrat-tyohar/feed/ 0 3034
Kali Mata Aarti Hindi Lyrics Ambe Tu Hai Jagdambe Kali https://prabhupuja.com/kali-mata-aarti-hindi-lyrics-ambe-tu-hai-jagdambe-kali/ https://prabhupuja.com/kali-mata-aarti-hindi-lyrics-ambe-tu-hai-jagdambe-kali/#respond Sun, 14 Apr 2024 11:46:26 +0000 https://prabhupuja.com/?p=3010 Kali Mata Aarti Hindi Lyrics Ambe Tu Hai Jagdambe Kali माँ काली आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली

Kali Mata Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi काली माता जी की सम्पूर्ण आरती हिंदी में

 अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
 तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

 तेरे भक्त जनो पार माता भये पड़ी है भारी |
 दानव दल पार तोतो माड़ा करके सिंह सांवरी |
 सोउ सौ सिंघों से बालशाली, है अष्ट भुजाओ वली,
 दुशटन को तू ही ललकारती |
 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

 माँ बेटी का है इस् जग जग बाड़ा हाय निर्मल नाता |
 पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता |
 सब पे करुणा दर्शन वालि, अमृत बरसाने वाली,
 दुखीं के दुक्खदे निवर्तती |
 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

 नहि मँगते धन धन दौलत ना चण्डी न सोना |
 हम तो मांगे तेरे तेरे मन में एक छोटा सा कोना |
 सब की बिगड़ी बान वाली, लाज बचाने वाली,
 सतियो के सत को संवरती |
 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

 चरन शरण में खडे तुमहारी ले पूजा की थाली |
 वरद हस् स सर प रख दो म सकत हरन वली |
 माँ भार दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वली,
 भक्तो के करेज तू ही सरती |
 हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

 अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
 तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |

]]>
https://prabhupuja.com/kali-mata-aarti-hindi-lyrics-ambe-tu-hai-jagdambe-kali/feed/ 0 3010
April 2024 Vrat Tyohar अप्रैल के हिंदू व्रत-त्योहार https://prabhupuja.com/april-2024-hindu-vrat-tyohar/ https://prabhupuja.com/april-2024-hindu-vrat-tyohar/#respond Sun, 07 Apr 2024 09:24:34 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2982 April 2024 Vrat Tyohar अप्रैल माह में आने वाले व्रत-त्यौहारों की लिस्ट जैसे शीतला सप्तमी से लेकर कालाष्टमी, दशा माता व्रत, पापमोचनी एकादशी, रामनवमी, हिन्दू नव-वर्ष प्रारम्भ तक हम आपसे यहां साझा कर रहे हैं।

अप्रैल माह के व्रत-त्योहार

1 अप्रैल 2024, सोमवार, शीतला सप्तमी, बास्योड़ा

2 अप्रैल 2024, मंगलवार, कालाष्टमी

4 अप्रैल 2024, गुरुवार, दशा माता व्रत

5 अप्रैल 2024, शुक्रवार, पापमोचनी एकादशी

6 अप्रैल 2024, शनिवार, शनि प्रदोष व्रत, कैलादेवी मेला प्रारम्भ

7 अप्रैल 2024, रविवार, मासिक शिवरात्रि

8 अप्रैल 2024, सोमवार, देवपितृ कार्य सोमवती अमावस्या, चैत्री अमावस्या, विक्रम संवत 2080 पूर्ण

चैत्र शुक्ल प्रारम्भ विक्रम संवत 2081

9 अप्रैल 2024, मंगलवार, विक्रम संवत 2081 प्रारम्भ, बसंत नवरात्रा प्रारम्भ, घट स्थापना, गुड़ी पड़वा, श्री गौतम जयंती

10 अप्रैल 2024, बुधवार, सिंजारा, झूलेलाल जयंती, चेटीचंड

11 अप्रैल 2024, गुरुवार, गौरी तृतीया, मेला गणगौर, ज्योतिबा फुले जयंती, मेवाड़ उत्सव प्रारम्भ(उदयपुर)

12 अप्रैल 2024, शुक्रवार, विनायक चतुर्थी

14 अप्रैल 2024, रविवार, यमुना जयंती, अम्बेडकर जयंती

15 अप्रैल 2024, सोमवार, दुर्गा पूजा प्रारम्भ(बंगाल)

16 अप्रैल 2024, मंगलवार, महाष्टमी व्रत, मेला मनसा देवी(हरिद्वार)

17 अप्रैल 2024, बुधवार, श्रीराम नवमी, चैत्र नवरात्रा नवमी(समाप्त), स्वामी नारायण जयंती

19 अप्रैल 2024, शुक्रवार, कामदा एकादशी व्रत

20 अप्रैल 2024, शनिवार, मदन द्वादशी

21 अप्रैल 2024, रविवार, प्रदोष व्रत, अनंग त्रयोदशी, श्री महावीर जयंती

23 अप्रैल 2024, मंगलवार, हनुमान जन्मोत्सव(दक्षिण भारत), मेला सालासर बालाजी, शिवाजी पुण्यतिथि

27 अप्रैल 2024, शनिवार, चतुर्थी व्रत

]]>
https://prabhupuja.com/april-2024-hindu-vrat-tyohar/feed/ 0 2982
Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi Katha| आमलकी (आंवला) एकादशी व्रत विधि https://prabhupuja.com/amalaki-ekadashi-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/amalaki-ekadashi-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Thu, 14 Mar 2024 14:52:45 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2891 Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi Katha आमलकी (आंवला) एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को “आमलकी या आमला या आंवला एकादशी” कहा जाता है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “आमला एकादशी” इस दिन आंवले के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है। आंवले के पेड़ को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है।

Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi आमलकी एकादशी व्रत विधि

  1. आमला(आंवला) एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु और परशुराम भगवान की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और परशुराम भगवान की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और परशुराम भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, और पंचरत्न आदि से परशुराम भगवान की पूजा की जाती है।
  6. तुलसी के साथ गुड़ आंवले से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  7. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  8. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  9. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात आमला(आंवला) एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Amalaki Ekadashi Vrat Significance आमलकी एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. आमला एकादशी का व्रत समस्त पापो का नाश करने वाला होता है।
  2. आमला एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।
  3. आमला एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मान्तरों के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. आमला एकादशी व्रत इस भूलोक में समाज के अंदर उच्च स्थान प्राप्त करवाता है।
  5. आमला एकादशी का व्रत करने वाले की शत्रुओ से रक्षा होती है ।
  6. आमला एकादशी करने वाला अगले जन्म मे समस्त सुखो को पाता है ।

Amalaki Ekadashi Vrat Rules आमलकी एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. आमला एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धुप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवन की पूजा की जाती है।
  2. आमला एकादशी व्रत के दिन आंवले का सागार होता है।
  3. आमला एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  4. आमला एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  5. आमला एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। एक दिन पहले और पारण के दिन याने अगले दिन तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
  6. आमला एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha आमलकी एकादशी व्रत की कथा

श्री कृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमला एकादशी है। एक समय वशिष्ठ मुनि से मांधाता राजा ने पूछा कि समस्त पापों का नाश करने वाला कौन सा व्रत है गुरुवार वो मुझसे कहिये। वशिष्ठ जी बोले- पौराणिक इतिहास कहता हूं। वैश्य नाम की नगरी में चंद्रवंशी राजा चैत्ररथ राज्य किया करता था। वह बड़ा धर्मात्मा था। प्रजा भी उसकी वैष्णव थी। बालक से लेकर वृद्ध तक एकादशी व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आई और नगर वासियों ने रात्रि को जागरण किया मंदिर में कथा कीर्तन करने लगे।

इस समय एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर पालन किया करता था। मंदिर के कोने में जा बैठा। आज वह शिकारी घर से रूठ चुका था। दिन भर खाया पिया भी कुछ न था। रात्रि को दिल बहलाने के लिए मंदिर के कोने में जाकर चुप बैठा था। वहां विष्णु भगवान की कथा तथा एकादशी व्रत का महत्व उसने सुना। वहीं रात्रि व्यतीत की, प्रातः काल घर को चला गया। भोजन न पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। आंवला एकादशी का महत्व सुनने और निर्जल उपवास करने के प्रभाव से उसका अगला जन्म राजा विधुरत के घर पर हुआ।

नाम उसका वसूरत प्रसिद्ध हुआ। वह बड़ा ही धर्मात्मा राजा हुआ। एक दिन राजा वसूरत वन विहार करने को गया और उसे दिशा का ज्ञान ना रहा। रास्ता भटकने के कारण रात्रि में थक हार कर राजा वन में ही सो गया। आज राजा ने आमला एकादशी का व्रत रखा था। उपवास किया और सोते समय भगवान का ध्यान लगाकर सो गया। इधर मलेछो ने राजा को वन में अकेला देखा। मलेछो के ही संबंधियों को राजा ने किसी दोष के कारण दंड दिया था। इस कारण वे उसे मारना चाहते थे।

राजा को वन में अकेला देख वे सभी उसे सोते हुए में ही मारने आए। उसी समय राजा के शरीर से एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई। वह आमला एकादशी व्रत के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी। कालिका के समान अट-अट करके उसने खप्पर फिराया और मलेछो के रुधिर की भिक्षा लेकर अंतर्ध्यान हो गई। जब राजा निद्रा से जागा तो उसने शत्रुओ को मरा हुआ देखा और आश्चर्य चकित हुआ। मन में कहने लगा मेरी रक्षा किसने की। तभी आकाशवाणी हुई आमला एकादशी के प्रभाव से राजन तेरी रक्षा विष्णु भगवान ने की है।

राजा नतमस्तक हुआ और प्रजा संग आमला एकादशी का व्रत और अधिक श्रद्धा पूर्वक करने लगा।

आमलकी एकादशी व्रत में ध्यान रखने योग्य बाते

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ


आंवला एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?

आमला एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धुप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवन की पूजा की जाती है।


आमला एकादशी में क्या खाना चाहिए?

आमला एकादशी व्रत के दिन आंवले का सागार होता है।आमला एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
आमला एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।

]]>
https://prabhupuja.com/amalaki-ekadashi-vrat-vidhi-katha-significance/feed/ 0 4417
Vedon ki Rachna Kisne ki hai | वेदों की रचना किसने की https://prabhupuja.com/vedon-ki-rachna-kisne-ki-hai/ https://prabhupuja.com/vedon-ki-rachna-kisne-ki-hai/#respond Tue, 05 Mar 2024 08:52:39 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2791 Vedon ki rachna kisne ki hai? Who wrote vedas? वेदों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हम यहाँ आपसे साझा कर रहे है जैसे वेदों की रचना कब हुई ?, वेदों की रचना किसने की ?, वेद कितने प्रकार के होते है ?, वेद किसलिये लिखे गए थे?, वेदों के अंदर क्या ज्ञान छुपा है ?, वेदों से हम क्या-क्या ज्ञान प्राप्त करते है ? इसके अलावा और भी बहुत कुछ हम यहाँ आपको बताने की कोशिश करेगे। वेद हिन्दू सनातन धर्म का आधार है। अर्थशास्त्र, संगीतशास्त्र, जीवनशास्त्र, मोक्षशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, खगोलशास्त्र और हर एक सामजिक पहलु वेदों में निहित है। संसार का सार वेदों में लिखा है। हजारो साल से वेद मनुष्य को ज्ञान पुंज की भाति राह दिखा रहे है ।

What are Vedas? वेद क्या है? वेद क्या होते है ?

वेद शब्द बना है “विद्” से जिसका अर्थ है जानना (किसी बात या व्‍यक्ति की जानकारी होना) इससे ही बना है विद्वान, विदुषी, विद्या । वेद का अर्थ है “ज्ञान” ।

अनन्ता वै वेदाः अर्थात “वेद अनंत है” “जिसका कोई अंत नहीं वही वेद है”

वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। Vedas also called Nigama, Shruti, Amnaya

वेद कोई कल्पना की बातो को प्रस्तुत नहीं करते है। वेद पूरी तरह से प्रैक्टिकल बातो का लिपिबद्ध रूप है।

When Vedas was Written? वेदों की रचना कब हुई ?

वेदों कि रचना कब हुई ? इस प्रश्न पर आधुनिक समय में सबसे पहले मैक्स मूलर ने शोध कार्य किया और बुद्ध की ज्ञात तिथि 600 ई पूर्व को अपनी काल गणना का प्रारंभ बिंदु बनाया।

एक बात तो ज्ञात रूप से प्रामाणिक है कि बुद्ध से पहले प्रमुख उपनिषद रचे जा चुके थे। मैक्स मूलर ने वैदिक साहित्य के प्रत्येक चरण के लिए 200 वर्षों का समय निर्धारित किया। इस गणना अनुसार 600 ईसा पूर्व से पीछे की ओर चलते हुए
उपनिषद 800 से 600 ईसा पूर्व
ब्राह्मण और आरण्यक 1000 से 800 ईसा पूर्व तथा
ऋग्वेद की ऋचाएं अथवा मंत्र 1200 से 1000 ईसा पूर्व रचे गए होंगे।

यह प्रश्न उल्लेखनीय है कि स्वयं मैक्स मूलर इस तिथि निर्धारण को सर्वथा निश्चित नहीं मानते थे और उन्होंने यह स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया कि ऋग्वेद कि रचना का समय 1000 से 1500 ईसा पूर्व या 2000 ईसा पूर्व अथवा 3000 ईसा पूर्व भी हो सकता है।

Who Wrote Vedas? वेदों की रचना किसने की ?

वेद परब्रम्ह के द्वारा ऋषियों को सुनाया गया ज्ञान है इसलिये वेदों को श्रुति कहा जाता है । ऐसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम भगवान शिव ने वेदों को ब्रह्मा जी को सुनाया था फिर ब्रह्मा जी ने चार ऋषियों को इन वेदों का ज्ञान दिया था । ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ये वो चार ऋषि थे ।

शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के अनुसार अग्नि, वायु और आदित्य(सूर्य) ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद को प्राप्त किया । वही अंगिरा ऋषि ने अथर्ववेद को प्राप्त किया था।

वेद व्यास जी ने वेदों को पुनर्गठित और सूचीबद्ध किया था । वेदों का ज्ञान तो अनंत काल से गुरु शिष्य परम्परा से पीढ़ी देर पीढ़ी आगे बढ़ता रहा ।

Vedas Types वेद कितने प्रकार के होते है ?

वेद चार प्रकार के होते है

  • ऋग्वेद
  • यजुर्वेद
  • सामवेद
  • अथर्ववेद

हर वेद के भी चार भाग होते है

  • आरण्यक(Aranyaka)
  • ब्राह्मण(Brahmana)
  • सहिंता(Samhita)
  • उपनिषद(Upanishad)

Why Vedas Was Written? Significance of Vedas वेद किसलिये लिखे गए थे? वेद क्यों लिखे गए थे ?

  • मानव जाति को व्यवस्थित जीवनचर्या देने के लिये वेदों का निर्माण हुआ।
  • हिन्दू सनातन संस्कृति के सभी नियमों, कर्म-काण्ड, दिनचर्या और दैनिक जीवन में काम आने वाले सूत्रों को लिपिबद्ध किया गया, तो वो वेद कहलाए।

वेदों के अंदर क्या ज्ञान छुपा है ?, वेदों से हम क्या-क्या ज्ञान प्राप्त करते है ?

ऋग्वेद

  • सबसे पहला वेद ऋग्वेद था । यह वेद पद्यात्मक रूप में लिखा हुआ है । इसके 10 मंडल(अध्याय) में 1028 सूक्त है। जिसमे 10552 मन्त्र है।
  • ऋग्वेद मुख्य रूप से हमे विज्ञान के बारे में बताता है इसलिये इसे विज्ञान काण्ड भी कहा जाता है।
  • ऋग्वेद में एक ही संहिता ऋग्वेद संहिता पाई जाती है ।
  • ऋग्वेद में दो ब्राह्मण ऐतरेय और कौषीतकि होते है ।
  • ऋग्वेद में दो आरण्यक पाये जाते है ऐतरेय और शांखायन ।
  • ऋग्वेद में कुल 10 उपनिषद पाये जाते है ।
  • ऋग्वेद में इंद्र देव, अग्नि देव, सूर्य देव, वरुण देव और वायु देव की आराधना के मन्त्र और विधि है ।

यजुर्वेद

  • यजुर्वेद में 40 अध्याय और 1975 श्लोक(मन्त्र ) है । जिन्हे यजुस भी कहा जाता है ।
  • यजुर्वेद के दो भाग है शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद
  • यजुर्वेद यज्ञ और अनुष्ठानो का विवरण देता है।
  • यजुर्वेद में एक ही संहिता है जिसको यजुर्वेद संहिता कहा जाता है ।
  • यजुर्वेद में तीन ब्राह्मणसय होते है जिन्हे कथक ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण और शतपथ ब्राह्मण कहते है।
  • यजुर्वेद में तीन आरण्यक पाये जाते है ब्रिहद, तैत्तिरीय और मैत्रायणीअ आरण्यक।
  • यजुर्वेद में कुल 51 उपनिषद पाये जाते है।

सामवेद

  • साम का अर्थ है रूपांतरण और संगीत, सौम्यता और उपासना। सामवेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। आकार की दृष्टि से सामवेद सबसे छोटा है परन्तु इसमे वेदो का संगीतमय सार है जो इसको सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण वेद बनाता है ।
  • सामवेद में एक ही संहिता है जिसको सामवेद संहिता कहा जाता है । इसमे 1875 मन्त्र है अधिकतर मन्त्र ऋग्वेद से लिये गए है ।
  • सामवेद में कुल 11 ब्राह्मणसय पाये जाते है ।
  • सामवेद में दो आरण्यक पाये जाते है, तलवकारा और छान्दोग्य ।
  • सामवेद में कुल 16 उपनिषद पाये जाते है । छान्दोग्य और केना उपनिषद सबसे प्रमुख उपनिषद है ।
  • सामवेद में विशेष पुजारी का वर्णन है। जिनको उद्गात्र के नाम से जाना जाता है। उद्गात्र पुजारी विशेष गायक होते थे जो मंत्रो को गाकर देवताओ का आव्हान करते थे ।

अथर्ववेद

  • अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त, 5987 मन्त्र है।
  • इस वेद में ब्रह्म ज्ञान, औषधि प्रयोग, रोग निवारण जंतर-तंत्र, टोना-टोटका आदि की जानकारी है। पृथ्वी सूक्त इसका सबसे महत्वपूर्ण सूक्त है ।
  • अथर्ववेद में आयुर्वेद, औषधियों और चिकित्सा आदि का वर्णन होने के कारण इसे भेषज्य वेद भी कहा जाता है।
  • अथर्ववेद को ब्रह्मवेद के साथ-साथ ज्ञान काण्ड भी कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में एक ही संहिता है जिसको अथर्ववेद संहिता कहा जाता है।
  • अथर्ववेद में 736 गान के साथ 6077 मन्त्र है।
  • अथर्ववेद में एक ही ब्राह्मणसय है जिसे गोपथ ब्राह्मण कहते है।
  • अथर्ववेद में कुल 31 उपनिषद पाये जाते है।

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

वेद कितने हैं?

वेद चार होते है
ऋग्वेद
यजुर्वेद
सामवेद
अथर्ववेद

]]>
https://prabhupuja.com/vedon-ki-rachna-kisne-ki-hai/feed/ 0 4416
Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत विधि https://prabhupuja.com/vijaya-ekadashi-vrat-vidhi/ https://prabhupuja.com/vijaya-ekadashi-vrat-vidhi/#respond Sat, 02 Mar 2024 17:54:18 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2762 Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी “विजया एकादशी” के रूप में मनाई जाती है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “विजया एकादशी” विजय को देने वाली एकादशी। मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त करी थी ।

Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत विधि

  1. विजया एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. नारायण की स्वर्ण मूर्ति रखकर धूप दीप नैवेद्य से पूजन करें।
  6. तुलसी के साथ गुड़ और सिंघाड़ों से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  7. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  8. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  9. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात विजया एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Vijaya Ekadashi Vrat Significance विजया एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. विजया एकादशी का व्रत समस्त शत्रुओ पर विजय देने वाला होता है।
  2. विजया एकादशी व्रत करने से समस्त रुके हुए कार्यो में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  3. विजया एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मान्तरों के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. विजया एकादशी व्रत इस भूलोक में समाज के अंदर उच्च स्थान प्राप्त करवाता है।
  5. विजया एकादशी का व्रत विद्यार्थी करे तो उनको परीक्षा में सफलता अवश्य प्राप्त होती है जैसा कि नाम का अर्थ है “विजय देने वाली”

Vijaya Ekadashi Vrat Rules विजया एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. विजया एकादशी के दिन नारायण की स्वर्ण मूर्ति का पूजन धुप, दीप और नैवेद्य से करना चाहिए।
  2. विजया एकादशी व्रत के दिन सिंघाडो का सागार होता है।
  3. विजया एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  4. विजया एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  5. विजया एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  6. विजया एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
  7. विजया एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  8. विजया एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
  9. विजया एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

Vijaya Ekadashi Vrat Katha विजया एकादशी व्रत की कथा

भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है, विजय को देने वाली ।मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त की थी। मैं तुमसे विस्तार पूर्वक कथा का वर्णन करता हूं। जब भगवान राम कपि दल के सहित सिंधु तट पर पहुंचे तो समुद्र देव के कारण रास्ता रुक गया। समीप में एकदाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसे अनेकों ब्रह्मा अपनी आंखों से देखते थे।

ऐसे चिरंजीवी मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण जी सेना सहित मुनि आश्रम जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करते हैं और समुद्र से पार होने का उपाय मुनि से पूछते हैं। मुनि बोले- कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करिए। समुद्र से पार होने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय इसी से आपको प्राप्त होगा। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया और रामेश्वरम पूजन किया। इसके प्रभाव से राम जी को लंका पर विजय प्राप्त हुई और वह सीता जी को लंका से मुक्त कर पाए। इस महात्यम को सुनने से हमेशा विजय प्राप्त होती है।

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

विजया एकादशी का व्रत कब है?

2024 में विजया एकादशी 6 और 7 मार्च को मनाई जाएगी. पंचांग के मुताबिक, 6 मार्च को सुबह 6:30 बजे से एकादशी तिथि शुरू होगी और 7 मार्च को सुबह 4:13 बजे तक रहेगी।

]]>
https://prabhupuja.com/vijaya-ekadashi-vrat-vidhi/feed/ 0 2762