Govardhan Puja Vidhi in Hindi गोवर्धन पूजा की सम्पूर्ण विधि हिंदी में

Govardhan Puja Vidhi in Hindi गोवर्धन पूजा की सम्पूर्ण विधि हिंदी में

Govardhan Puja Vidhi in Hindi, गोवर्धन पूजा की सम्पूर्ण विधि हिंदी में, कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात दीपावली की अमावस्या के दूसरे दिन सुबह गोवर्धन जी की पूजा घर की महिलाओं द्वारा की जाती है।

Govardhan Puja Samagri गोवर्धन पूजा सामग्री

तेल का बड़ा दीपक, लक्ष्मी पूजन की थाली व कलश, लक्ष्मी पूजन की सामग्री, दही, बिलोवनी, रुई, गन्ना, रोली, मोली, नैवेद्य, चावल, पुष्प, गंध

Govardhan Puja Vidhi in Hindi गोवर्धन पूजा विधि

घर के द्वार पर गाय के गोबर से मानव शरीर के आकार के गोवर्धन जी बनाये जाते है। गोवर्धन जी की पूजा के दिन प्रातः लक्ष्मी जी के रात को लगा जलता हुआ तेल का बड़ा दीपक व लक्ष्मी पूजन की थाली व कलश ही इस्तेमाल में लेना चाहिये और लक्ष्मी पूजन की सामग्री से पूजा करना चाहिए। कटोरी में दही और बिलोवनी व रुई रख ले और गन्ना जो लक्ष्मी जी की पूजा में चढ़ाया हो उसी का अग्र भाग तोड़कर चढ़ाना चाहिये।

दही के अतिरिक्त रोली, मोली, नैवेद्य, चावल, पुष्प, गंध आदि से पूजन करके दही को गोवर्धन की नाभि में डालकर गीत गाते हुए बिलोवनी व गन्ने से बिलोना चाहिये। दही को सबड़को गीत गाते हुए बिलो ले फिर गन्ने का अग्र भाग पकड़े-पकड़े सात परिक्रमा गोवर्धन जी की करनी चाहिये।

Dahi ko Sabadko (Govardhan Puja Bhajan) दही को सबड़को भजन (गोवर्धन पूजा गीत )

दही को धमड़को कान्हा ने भावे तो एक सबड़को म्हाने दीजे रे कान्हा दही को धमड़को।
आ ल रे कान्हा माखन मिश्री तो म्हान म्हाको दहिड़ो बिलोबा दे कान्हा॥
दही को धमड़को॥

पोफाटी दिन ऊगण लाग्यो दई को सबड़को कान्हा ने भावे।
अन छेडियो माखन कोनी रे लाला, दई को सबड़को सवालिया ने भावे।
दही को धमड़को॥

माता जसोदा ने रीसज्यों आई, हाथज बांध पावज बांध्या, उँखळ टांग बंधाई रे लाला ॥
दही को धमड़को॥

बाहिर से नन्द बाबाजी आया बाहिर से बलदाऊ जी आया, लाल ने कुण मारयो ये माय॥
दही को धमड़को॥

बूढी ज्यो गावे गंगा, यमुना नहावे, परणी पुत्र खिलावो राम॥
दही को धमड़को॥

कवांरि गावे घर, वर पावे।
सुणो सदा ही सुख पावसी ओ रामा।
दही को धमड़को॥

गोवर्धन जी की कहानी (गोवर्धन कथा)

एक दिन भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे ब्रज में तरह तरह के मिष्ठान तथा पकवान बनाए जा रहे है। पूछने पर ज्ञात हुआ की देवराज इंद्र की पूजा के लिये तैयारी हो रही है। इंद्र की कृपा से ही वर्षा होती है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की निंदा करते हुए कहा कि उस देवता कि पूजा करनी चाहिये जो प्रत्यक्ष आकर पूजा स्वीकार करे। इंद्र में क्या शक्ति है जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा। उससे हो शक्तिशाली तथा सुन्दर यह गोवर्धन पर्वत है, जो वर्षा का मूल कारण है। इसकी हमे पूजा करनी चाहिये।

भगवान कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासियो ने कृष्ण से पूछा कि- इंद्र जी से तो दुर्भिक्ष उत्पीड़न समाप्त होगा। चौमासे के सुन्दर दिन आयेगे, मगर गोवर्धन पूजा से क्या लाभ होगा?

उत्तर में श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन की प्रशंसा की और गोप-गोपियों की आजीविका का एकमात्र सहारा गोवर्धन पर्वत को सिद्ध किया। कृष्ण जी की बात सुनकर समस्त ब्रजमंडल बहुत प्रभावित हुआ तथा घर जाकर विविध प्रकार के म्रिष्ठान पकवान बनाए व पर्वत की तराई में विधि-विधान से गोवर्धन को भोग लगाकर पूजा की।

भगवान की कृपा से ब्रजवासियो द्वारा अर्पित समस्त पूजन सामग्री को गिरिराज ने स्वीकार करते हुए खूब आशीर्वाद दिया। सभी जान अपना पूजन सफल समझकर प्रसन्न हो रहे थे, तभी नारद मुनि इंद्र महोत्सव देखने की इच्छा से ब्रज आ गए। पूछने पर ब्रज नागरिको ने बताया कि श्री कृष्ण की आज्ञा से इस वर्ष इंद्र महोत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है। यह सुनते ही नारद जी उल्टे पाँव इंद्रलोक गए और खिन्न मुद्रा में बोले- हे राजन! तुम महलों में सुख की नींद सो रहे हो और उधर ब्रज मंडल में तुम्हारी पूजा समाप्त करके गोवर्धन की पूजा हो रही हैं।

इसमें इंद्र ने अपनी मानहानि समझ कर मेघो को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलयकारक मूसलाधार वर्षा से पूरा गांव तहस-नहस कर दे। बादल ब्रज की ओर उमड़े व जमकर बरसे। भयानक वर्षा देखकर पूरा ब्रज मंडल घबरा गया। सभी ब्रजवासी श्री कृष्ण की शरण में जाकर बोले- हे भगवन! इंद्र हमारी नगरी को डुबाना चाहता हैं। अब क्या किया जाये? इस संकट से हमे कौन उबारेगा?

श्री कृष्ण ने सांत्वना देते हुए कहा कि – तुम सब लोग गउओं सहित गोवर्धन की शरण में चलो वही तुम्हारी रक्षा करेगे। इस तरह सभी ब्रज वासी ग्वाल-बाल गोवर्धन की तराइयों में पहुंच गये। श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी चट्टी उंगली पर उठा लिया ओर सात दिन तक गोप-गोपियाँ उसी छाया में सुखपूर्वक रहे।

भगवान कि कृपा से उनको एक छींटा भी न लगा। इससे इंद्र को अत्यधिक आश्चर्य हुआ । तब भगवान की महिमा समझकर इंद्र स्वयं ब्रज में गया ओर पश्चाताप किया। सातवें दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन को नीचे रखा। तब से ही इसी भाती गोवर्धन पूजा की जाती हैं साथ ही अन्नकूट उत्सव भी मनाया जाता हैं ।

गोवर्धन पूजा बधावा

वृंदावन में अंबुल्यो(आम) उग्यो, डाल गई गुजरात जी।
रामा इसड़ो बधावो जी, गिरधर लाल को जी।
तोड़ कृष्ण हर पातड़ा(पत्ता), रामा रुक्मण रा भरतार जी। रामा ॥
ल्यो कुकू ल्यो चोपड़ों, गज मोतीड़ा भरल्यो थाल जी। रामा ॥
कर बाई सुभद्रा आरतो, घर आया थारी माँ का जाया बीर जी। रामा ॥
तोड़ रामचंद्र जी पातड़ा(पत्ता), रामा सीता जी रा भरतार जी। रामा ॥
कर बाई नंदल आरतो, घर आया थारी माँ का जाया बीर जी। रामा ॥

अन्नकूट

कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात दीपावली की अमावस्या के दूसरे दिन श्री महालक्ष्मी जी के अन्नकूट करने का विधान हैं। यह विधान द्वापर युग में भगवान कृष्ण के अवतार के बाद प्रारम्भ हुआ था। श्री महालक्ष्मी जी को छप्पन प्रकार के पकवानो ओर मिठाइयों का भोग लगाया जाता हैं। फिर प्रसाद के रूप में सभी को वितरित कर दिया जाता हैं। गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट का भोग लगावे।

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