prabhupuja main logo

Janeu Sanskar Yajnopavita Rules | जनेऊ यज्ञोपवीत धारण करने के नियम वैदिक विधि, उपनयन संस्कार

Janeu Sanskar Yajnopavita Rules | जनेऊ यज्ञोपवीत धारण करने के नियम वैदिक विधि, उपनयन संस्कार

janeu mantra क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसके लाभ, यज्ञोपवीत धारण करने के नियम Janeu Sanskar Yajnopavita Rules, कौन-कौन यगोपवीत धारण कर सकता है? जनेऊ सभी हिन्दू पहन सकते है जी हां हर एक हिन्दू जनेऊ धारण कर सकता है। ब्रह्मचारी(पुरुष जिसका विवाह नहीं हुआ हो) उसको 1(3 धागो से बनी हुई) यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये और साथ ही ग्रहस्त(पुरुष जिसका विवाह हो गया है) उनको 2(6 धागो से बनी हुई) यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।

उपनयन संस्कार क्या है? क्यों पहनते हैं जनेऊ

जब हिन्दू बालक अपनी देखभाल खुद करना शुरू कर देता है तो वैदिक काल से ही गुरुकुल में शिक्षा लेने की प्रथा थी जो आज स्कूल के रूप में होते है जहा बालक ज्ञान प्राप्त करते थे। हिन्दू धर्म के अनुसार गुरु बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता है ठीक उसी तरह श्रेष्ट ज्ञान प्राप्ति बिना जनेऊ पहने नहीं हो सकती है, जनेऊ से बालक नियम पालना, स्वच्छ रहना, जागरूक रहना सीखता है, जनेऊ धारण करने से शरीर पवित्र और शुद्घ होता है।

उपनयन का अर्थ है पास या सन्निकट ले जाना। किसके पास? – ब्रह्म और ज्ञान के पास ले जाना अर्थात जनेऊ पहनने वाले को ज्ञान सीखने में निपुण बनाता है। जनेऊ में 5 गांठ लगाई जाती हैं जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष को दर्शाती है अर्थात जीवन का हर काम जनेऊ पहन कर ही पूरा होता है।

इसी कारण यज्ञोपवीत हिन्दू जीवन का अभिन्न अंग रहा है परन्तु आज के समय में जनेऊ को बोझ समझा जाता है और केवल विवाह संस्कार के समय अतिआवश्यक होने के कारण सिर्फ रस्म निर्वाह के लिए उपनयन संस्कार होता है बहुत कम लोग है जो अब जनेऊ को जीवन परियन्त धारण करते है, इसी के चलते आज अधर्मपूर्ण आचरण बढ़ता जा रहा है व्यक्ति स्वछंत रहना चाहता है बिना नियम अनुसार जिस कारण वह अपना श्रेष्ट ना तो स्वयं को दे पाता है ना ही देश व समाज का भला कर पाता है, यज्ञोपवीत को ज्यादा से ज्यादा अपनाने से व्यभिचार, अल्पज्ञान, असभ्य समाज आदि अनेक समस्याओ का समाधान स्वतः ही हो जायेगा ऐसा मेरा मानना है।

यज्ञोपवीत/ जनेऊ धारण या उपनयन संस्कार की उम्र

ब्राह्मण के पुत्र को 8 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।
क्षत्रिय के पुत्र को 11 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।
वैश्य व अन्य सभी के पुत्र को 13 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।

यज्ञोपवीत / जनेऊ धारण करने की विधि

श्रावणी कर्म में पूजन किया हुआ न हो तो नूतन यज्ञोपवीत को जल से शुद्ध करके दस बार गायत्री मन्त्र से अभिमंत्रित करके नीचे लिखे मंत्रो से सूत्रों में देवताओ का आव्हाहन करे

प्रथमतन्तौ ॐ कारमावाहयामि । द्वितीयतन्तौ ॐ अग्निमावाहयामि । तृतीयतन्तौ ॐ सर्पानावाहयामि । चतुर्थतन्तौ ॐ सोममावाहयामि । पञ्चमतन्तौ ॐ पितृनावाहयामि । पप्ठतन्तौ ॐ प्रजापतिमावाहयामि । सप्तमतन्तौ ॐ अनिलमावाहयामि । अष्टमतन्तौ ॐ सूर्यमावाहयामि नवमतन्तौ ॐ विश्वान् देवानामावाहयामि ।

अन्थि मध्ये ग्रंथीं

ॐ ब्रह्मणे नमः ॐ ब्रह्माणमावाहयामि । ॐ विष्णवे | नमः ॐ विष्णुमावाहयामि । ॐ रुद्राय नमः ॐ रुद्रमावाहयामि ।। 

Janeu Pahnane ka Mantra यज्ञोपवीत / जनेऊ धारण करने का मंत्र (जनेऊ पहनने का मंत्र)

यज्ञोपवीतधारणे विनियोगः

ॐ यज्ञोपवीतमिति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋपिः लिंगोक्ता देवता त्रिष्टुप छन्दः यज्ञोपवीतधारणे विनियोगः । 

मन्त्र

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।

आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।-पार. गृ.सू. 2.2.11।

पुराने व जीर्ण यज्ञोपवीत/ जनेऊ का त्याग मंत्र

एतावदिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया ।

जीर्णत्वात्त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम् ।। 

Janeu Pahnane kay Niyam यज्ञोपवीत/ जनेऊ धारण करने के नियम

।।यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत।।

अर्थात : अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके ही इसे दाएं कान पर से उतारें।

पृष्ठदेशे च नाभ्यां च धृतं यद् विन्दते कटिम् ।
तद्धार्यमुपवीतं स्यान्नातिलम्बं न चोच्छ्रितम् ॥

अर्थात : स्तन से ऊपर आये याने बहुत छोटा नहीं हो तथा नाभि से नीचे जावे यज्ञोपवीत इतना बड़ा नहीं पहनना चाहिये। 
स्तन से ऊपर, कमर से नीचे जनेऊ को नहीं होना चाहिये। 

यज्ञोपवीत/ जनेऊ कब कब बदलनी चाहिये।

  • हर चार महीनो में यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • किसी मृत्यु वाले घर में 12 दिन में जाने पर भी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • किसी की मृत्यु पर शमशान में जाने पर भी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • प्रत्येक चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण के पश्यात भी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • मल-मूत्र त्याग करते समय अगर जनेऊ को दाहिने कान पर नहीं चढ़ा पाये तो ऐसी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • यज्ञोपवीत गलती से शरीर से अलग हो जाये तो भी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • घर में किसी बालिका या बालक का जन्म हुआ है तो भी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।
  • जनेऊ कट-फट जाये या किसी भी कारण से खंडित हो जाए तो ऐसी यज्ञोपवीत/ जनेऊ को बदल लेना चाहिये।

FAQ

जनेऊ किस कंधे पर पहना जाता है? Janeu on which shoulder

बाये कंधे पर Left Sholder

उपनयन संस्कार कब किया जाता है?

ब्राह्मण के पुत्र को 8 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।
क्षत्रिय के पुत्र को 11 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।
वैश्य या अन्य सभी के पुत्र को 13 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिये।

How many threads in janeu after marriage?

6 threads in janeu after marriage.

सहवास के समय जनेऊ धारण करने के क्या नियम हैं?

जनेऊ को बाये कंधे पर से किसी भी स्तिथि में उतारा नहीं जाता है, जनेऊ सहवास के समय भी नहीं उतारी जाती है।

जनेऊ को लड़की कब पहनती है? क्या महिलाएं भी धारण कर सकती जनेऊ?

जनेऊ केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी धारण कर सकती हैं। लेकिन उनको भी इसके नियमों का पालन करना जरूरी हैं। महिलाओं को हर बार मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए ।

administrator

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *