Kartik Maas Snan, Ganga Snan कार्तिक मास स्नान सम्पूर्ण विधि, गंगा स्नान, कार्तिक मास या कार्तिक महीना हिन्दू सनातन धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। पूरे कार्तिक मास में सभी धर्म प्रेमी स्त्री और पुरुष व्रत रखते है, और कार्तिक स्नान का भी बड़ा महत्त्व है। कार्तिक मास लगते ही पूर्णिमा से कार्तिक समाप्ति की पूर्णिमा तक व्रत किये जाते है। इन व्रतों को करने वाली महिलाओ और पुरषों को सुबह पांच बजे उठकर तारों की छाँव में ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए।
इस माह में सरोवर के स्नान का बड़ा महत्व है। अगर गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियां हो तो इन्ही में स्नान करे(इंसान के फैलाये प्रदुषण ने यह सुख अब इंसान से दूर कर दिया है)। स्नान के पश्यात घर या मंदिर आकर भगवान राधा-कृष्ण, पीपल, तुलसी, आंवले, केले आदि की पूजा करे व पांच छोटे पत्थर रखकर पथवारी बनाकर पूजा करे। भगवान का कीर्तन करे और रोज शामको दीपक जलावे। रोजाना कार्तिक महात्म सुने या कहानी कहे। व्रत की समाप्ति के दिन उजमना करे।
नारायण तारायण व्रत विधि
पहले दिन तारो को अर्घ देकर भोजन करे। दूसरे दिन दोपहर में भोजन करे। तीसरे दिन निराहार व्रत रखे। इस प्रकार कार्तिक मास पूरा किया जाता है।
तारा भोजन व्रत विधि
पूरे कार्तिक मास में प्रतिदिन सांय काल में तारा देखकर भोजन करे। माह के अंत में ब्राह्मण को भोजन कराकर चाँदी का तारा व तैतीस पेड़े दान में दे।
छोटी सांकली व्रत विधि
इस व्रत में दो दिन भोजन और एक दिन उपवास रखते है। इसी क्रम से पूरे माह व्रत किये जाते है। बाद में यथाशक्ति अनुसार सोने या चाँदी की सांकली भगवान के मंदिर में चढ़ावे। ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा देवे।
बड़ी सांकली व्रत विधि
इस व्रत में दो दिन उपवास और एक दिन एक समय भोजन किया जाता है। बाद में यथाशक्ति अनुसार सोने या चाँदी की सांकली भगवान के मंदिर में चढ़ावे। ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा देवे। माह में आने वाली एकादशी व प्रत्येक रविवार को भी उपवास किया जाता है।
एकातर व्रत विधि
एक दिन भोजन और एक दिन उपवास इस प्रकार पूरे महीने भर तक करे। अंत में ब्राह्मण को भोजन कराके दक्षिणा देवे।
चंद्रायन व्रत विधि
इस व्रत में पूर्णमासी से उतरते कार्तिक की पूर्णमासी तक चंद्रायन व्रत किया जाता है। पूर्णमासी को उपवास करने के बाद एकम के दिन से हलवे का केवल एक ग्रास तथा दूजे को दो ग्रास, तीज को तीन ग्रास इस प्रकार प्रतिदिन एक-एक ग्रास बढ़ाकर अमावस्या तक पंद्रह ग्रास खाना चाहिए। अमावस्या के दूसरे दिन से एक ग्रास कम करते हुए पूर्णिमा तक वापस एक ग्रास रहना चाहिए। चन्द्रमा, रोहिणी की मूर्ति बनाकर हवन करावे। गादी, तकिया, रजाई, पांच बर्तन, धोती, कुर्ता, साड़ी, ब्लाउज आदि सुहाग की समस्त सामग्री रखकर ब्राह्मण को जोड़े से भोजन कराकर दान देवे।
तुलसी तीरायत व्रत विधि
आँवला नवमी से ग्यारस तक तीन दिन तक निराहार उपवास किया जाता है। तीन दिन तक भगवान के समक्ष अखंड ज्योति जलावे और ग्यारस के दिन राधा दामोदर के साथ तुलसी जी की शादी करना चाहिए। बारस के दिन ब्राह्मणो को जोड़े से भोजन करावे।इसमे से तीन जोड़ो को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा देवे। उसके पश्यात स्वयं भोजन करे।
प्रदोष व्रत विधि
पूरे महीने भर तक शाम के समय पांच बजे तक एक बार भोजन करे। बाद में पूर्णिमा पर ब्राह्मण को भोजन कराए और चाँदी का तारा बनवाकर दान करे।
अलूणा पावभर खाना व्रत विधि
महीना भर या पांच दिन या तीन दिन तक पावभर हलुआ या लड्ड़ू जो भी इच्छा हो वो खाना चाहिए। बाद में लड्ड़ू में यथा शक्ति गुप्त दान रखकर ब्राह्मण को या मंदिर में देना चाहिए।
पंचतीर्थया व्रत विधि
ग्यारस, बारस निगोट, तेरस अलूणा,चौदस व पूनम निगोट, फिर पूनम के दिन हवन करना। पांच तार की बत्ती, एक अपनी, एक बढ़ोतर की भगवान के जलानी है। दिये की पूजा करनी है। उद्यापन में पड़वा के दिन पांच ब्राह्मणो को भोजन कराये, ब्राह्मण जोड़ी को पोशाक दान देवे, चार सौभाग्य वायन देना, सुहाग सामग्री देना।
छोटी पंचतीर्थया व्रत विधि
इसमे पांच दिन ग्यारस से पूनम तक का स्नान करना होता है। किसी से एक महीने भर तक कार्तिक नहीं नहाने की बने तो पांच दिन जल्दी उठकर तारों की छाया में स्नान करने से एक महीने का पुण्य लग जाता है।
विशेष जो भी कार्तिक स्नान करता है। वे लिखे अनुसार एवं अन्य मुख्य उपवास रविवार, व्यतीपात पूर्णिमा, ग्यारस अवश्य करे।
कार्तिक स्नान की कहानी (1), कार्तिक स्नान कथा (Kartik Snan Katha)
एक गांव में एक बुढ़िया रहा करती थी। जो चार माह (चातुर्मास ) में पुष्कर स्नान किया करती थी। उसका एक बेटा और बहु थी। जब चातुर्मास का समय आया तो माँ को पहुंचाने के लिए बेटा पुष्कर गया। सास ने बहु को रास्ते के लिये फलाहार बनाने को कहा तो बहु ने जमीन के पापडे(पपड़ी) उखाड़ कर बाँध दिए। रास्ते में बेटा माँ से बोला-माँ फलाहार कर ले। जहाँ पानी मिला बूढी माँ वही फलाहार करने बैठ गईं, जैसे ही उसने पोटली खोली पापडे फलाहार बन गए, बूढ़ी माँ ने फलाहार कर लिआ। पुष्कर में बेटा माँ के लिए झोपड़ी बनाकर सामान रखकर वापस अपने गांव आ गया।
रात्रि के प्रहर में श्रावण मास आया और बोला -बुढ़िया दरवाजा खोल, तब बुढ़िया ने पूछा तू कौन है? मैं श्रावण हूँ, बुढ़िया ने तुरंत झोपड़ी का दरवाजा खोल दिया। बुढ़िया ने श्रावण मास में महादेव जी का पूजन किया और बीलपत्र चढाती, अभिषेक करती, भजन-कीर्तन करती। जाते समय श्रावण ने बुढ़िया की झोपड़ी को एक लात मारी, तो झोपड़ी की एक दिवार सोने की हो गई।
बाद में भाद्रपद मास आया और उसने भी दरवाजा खोलने को कहा, बुढ़िया ने दरवाजा खोला साथ ही सत्तू बनाया, कजरी तीज मनाई। भादवा भी जाते समय झोपड़ी को एक लात मार गया तो दूसरी दीवार हीरे की हो गई। फिर आसोज मास आया और उसने भी बुढ़िया को दरवाजा खोलने को कहा, बुढ़िया ने दरवाजा खोला और तर्पण कर श्राद्ध मनाया। ब्राह्मण भोजन कराया। गणेश जी की स्थापना की अनंत चतुर्दशी मनाई फिर नवरात्रा में माँ दुर्गा की स्थापना की, दशहरा मनाया। जाते जाते आसोज भी झोपड़ी पर एक लात मार गया तो तीसरी दीवार भी सोने की हो गई।
इन सबके बाद कार्तिक मास आया और उसने भी दरवाजा खोलने को कहा। बुढ़िया ने दरवाजा खोला और श्रद्धा से कार्तिक स्न्नान, भजन, पूजन, व्रत किया। दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, आँवला नवमी करी। कार्तिक मास ने जाते समय लात मारी तो इस बार पूरी झोपड़ी ही सोने की हो गई। बुढ़िया खूब दान, धर्म करती और भगवान का भजन किया करती।
चातुर्मास पूर्ण होने पर बेटा अपनी माँ को लेने पुष्कर आया तो अपनी माँ और झोपड़ी को पहचान ही नहीं पाया। वहाँ तो भगवान की कृपा से ठाठ-बाठ हो गया था। उसने आस पास वालो से पूछा। तो उन्होने सब कह सुनाया यह सुन बेटा माँ के पैरों में गिरकर बोला- माँ घर चलो और वह सारा सामान गाड़ी में भरकर माँ को घर ले आया।
सास के ठाठ देखकर बहू के मन में जलन पैदा हो गई और उसने भी अपनी माँ को चार मास के पुष्कर स्नान के लिये छोड़कर आने को पति से कहा। वह अपनी सास को भी पुष्कर छोड़कर आ गया। श्रावण, भादवा, आसोज और कार्तिक सभी आये लेकिन बहू की माँ ने कुछ भी नहीं किया। वह चार समय खाती थी और दिन भर सोती थी। चातुर्मास ने जाते-जाते झोपड़ी को एक लात मारी तो पूरी झोपड़ी गिर पड़ी और बहू की माँ को गधी की योनि में होना पड़ा।
चार माह बाद जमाई जब अपनी सास को लेने आया तो उसे न तो सास ही दिखाई दी और ना ही झोपड़ी, तब उसने आस -पास वालो से पूछा तो उन्होने बताया कि तुम्हारी सास धर्म कर्म कुछ भी नहीं करती थी। वह केवल खाती थी और सोती थी, जिससे वो गधी हो गई।
सास ने जब अपने जमाई को देखा तो वह ढेंचू-ढेंचू करती सामने आ गई। तब जमाई ने सास को गाड़ी के पीछे बाँध लिए और घर ले आया। उसकी पत्नी ने जब पूछा कि मेरी माँ कहा है? तो वो बोला कि गाड़ी के पीछे बंधी है। जिसकी जैसी करनी। मेरी माँ भोली थी, तूने फलाहार कि जगह जमीन के पापडे दिये तो वे भी फलाहार बन गए। तब उसकी औरत बोली- ब्राह्मण के पास चलकर पूछे कि मेरी माँ मनुष्य योनि में वापस कैसे आयेगी।
ब्राह्मण बोला- तेरी सास जब स्नान करे उस पानी को लेकर अपनी माँ को उस पानी से स्न्नान करा देना, तो उसकी यह योनि छूट जायेगी। तब बहू ने ऐसा ही किया और उसकी माँ मनुष्य योनि में हो गई। हे राधा दामोदर भगवान जैसा तुमने लड़के कि माँ को सब कुछ दिया, वैसे ही सब को देना।