Karva Chauth Vrat Vidhi what are the rituals of karva chauth कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ व्रत मनाया जाता है। यह स्त्रियों का सबसे प्रिय व्रत है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियाँ व्रत करके चौथ माता से पति के अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु जीवन एवं मंगल की कामना करती है। इस व्रत में कई जगह शिव-पार्वती, श्री कार्तिकेय, श्री गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है। कई जगह महिलाये गेहू के ज्वारे उगाकर चौथ माता का पूजन करती है(इसके लिये सात दिन पहले ही ज्वारे उगाले) और रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ देकर ही पानी पीती है। how to do karva chauth puja? how to do karva chauth vrat?
करवा चौथ पूजन सामग्री
मिट्टी का करवा, बोर, काचरा, आंवला, पुष्प, फूलो की माला, मोगरी, चवले की फली, एक कटोरी शक्कर, लाल ब्लाउज पीस, सुहाग का सामान(माता जी का श्रंगार), घर के बने खाजे, पैसे, जल का लोटा, लच्छा(मोली या कलावा), रोली(कुमकुम), गेहू, अक्षत(चावल), आटे का बना दीपक, थोड़ा सा गुड़, हल्दी, मेंहदी।
करवा चौथ पूजा विधि
शाम के समय चन्द्रमा निकलने से पूर्व महिलाये करवे की पूजा करती है उससे पूर्व सुबह से लेकर शाम के बीच मे चौथ माता के मंदिर दर्शन करने भी जाती है। पूजन में मिट्टी का करवा ठंडा करके रख ले यानी जल से भरकर रख ले अब उसमे पैसे, बोर, काचरा, आंवला, पुष्प, मोगरी, चवले की फली आदि डाल ले करवे पर शक्कर भरकर कटोरी एवं कटोरी पर लाल ब्लाउज पीस रखा जाता है।
करवा चौथ माता का चित्र या गेहू के ज्वारों की पूजा की जाती है सबसे पहले पूजा का संकल्प लिया जाता है इसके लिए हाथ में जल ले, थोड़ी सी रोली ले, एक रुपए का सिक्का रखे और पुष्प रखकर करवा चौथ माता की पूजा करने का संकल्प ले दीपक जलाये, अब ज्वारों की पूजा करे पानी के छींटे दे, अब वस्त्र(लच्छा) चढ़ाये, कुमकुम लगाये, अक्षत चढ़ाये, धुप दिखाये, दीपक की तरफ अक्षत छोड़े अब खाजे चढ़ाये , गुड़ और गेहू रखे अब अपने करवे का पूजन कर ले।
अर्घ देने का तरीका
किसी भी चौथ के व्रत वास में चन्द्रमा को अरग देते समय बोले
चांदा हेलो उगियो,
हरिया बांस कटाय,
साजन ऊबा बारने,
आखा पाती लाय,
सोना की सी सांकली,
गले मोत्यां रो हार,
करवा चौथ का चाँद ने अरग देवता,
जीवो वीर भरतार।
एक साल में चार बड़ी चौथ आती है। बस चौथ माता का नाम बदल कर आप इसी तरह हर बड़ी चौथ के चाँद को अरग दे सकती है।
करवा चौथ व्रत कथा, करवा चौथ की कहानी
एक गांव में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सेठानी ने सातो बहुओ और बेटी सहित कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौथ को करवा चौथ का व्रत किया। उस लड़की के भाई हमेशा अपनी बहन के साथ ही भोजन किया करते थे। उस दिन भी भाइयो ने बहन को भोजन के लिए बोला। तब बहन बोली भैया आज मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चाँद उगेगा तब खाना खाउंगी। भाइयो ने सोचा की बहन भुकी रहेगी इसलिए एक भाई ने दिया जलाया और एक भाई चलनी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गये बाकी भाई बहन से बोले देख बहन चाँद उग गया है, अरग दे ले और खाना खा ले।
यह सुन बहन ने भोलेपन से भाभियों से आकर कहा कि भाभी चाँद देख लो। तो एक भाभी बोली कि बाई जी ये तो चाँद तुम्हारे लिये ऊगा है, तुम्ही देख लो, हमारा चाँद तो रात में दिखेगा।बहन अकेले ही खाना खाने बैठी। पहले कोर में ही बाल आया दूसरा कोर खाने लगी तो उसे सुसराल से बुलावा आ गया कि बेटा बहुत बीमार है सो बहु को जल्दी भेजो।
माँ ने जैसे ही कपड़े निकालने के लिये बक्सा खोला तीन बार ही कभी सफ़ेद, कभी काला और कभी नीले कपड़े ही हाथ में आये। माँ ने बेटी को एक सोने का सिक्का पल्ले से बांधने को दिया और कहा कि रास्ते में सबके पैर छूती हुई जाना जो भी तुझे अमर सुहाग का आशीष देवे उसको ही यह सोने का सिक्का देना और पल्ले से गांठ बाँध लेना। रास्ते में सब औरते आशीष देती गई पर किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दिया। सुसराल के दरवाजे पर पहुंचने पर झूले पर सोती हुई जेठुती(जेठ कि लड़की) मिली उसके पैर छूते ही वह बोली “सिली हो सपूती हो सात पूत कि माँ हो।”
यह वाक्य सुनते ही उसने जल्दी से सोने का सिक्का निकालकर उसे दे दिया और पल्ले से गांठ बांध ली। अंदर गई तो पति मरा पड़ा था। बहु ने अपने मरे हुए पति को जलाने के लिये नहीं ले जाने दिया, और बोली मेरे लिये एक अलग से झोपड़ी बनवा दो और वही अपने मरे हुए पति को लेकर रहने लगी। रोज सास बचा-खुचा, ठंडा-बासी दासी के साथ भेज देती, और कहती जा मुर्दा सेवनी को रोटी दे आ।
थोड़े दिनों बाद माघ माह की तिल चौथ आई और बोली ” करवा पिला तू करवा पिला भाइयो की प्यारी तू करवा ले। दिन में चाँद देखने वाली करवा पिला” तब वो चौथ माता से बोली कि “हे! चौथ माता मेरा उजड़ा हुआ सुहाग तो आपको ही बनाना होगा। मेरे पति को जिन्दा करना होगा। मुझे मेरी गलती का पश्चाताप है, मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ।” तब चौथ माता बोली मेरे से बड़ी बैसाख की बैसाखी चौथ आएगी वो तुझे सुहाग देगी। इस तरह बैसाखी चौथ आई और उसने कहा की भादवे की चौथ तुझे सुहाग देगी।
तब कुछ महीने बाद भादुड़ी चौथ माता स्वर्ग से उतरी और वही सब बात कहने लगी, तब उसने चौथ माता के पाँव पकड़ लिए। चौथ माता बोली कि मेरे ऊपर सबसे बड़ी कार्तिक की करवा चौथ माता है। वह ही नाराज हुई है, यदि तूने उसके पैर छोड़ दिये तो फिर कोई भी तेरे पति को जिन्दा नहीं कर सकता है। कार्तिक का महीना आया, स्वर्ग से चौथ माता उतरी, चौथ माता आई और गुस्से से बोली “भाइयो की बहन करवा ले,दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत भांडणी करवा ले।” साहूकार की बेटी ने चौथ माता के पैर पकड़ लिये व विलाप करने लगी- हे! चौथ माता मैं नासमझ थी, मुझे इतना बड़ा दंड मत देवो।
तब चौथ माता बोली- “मेरे पैर क्यों पकड़कर बैठी है।” तब वह बोली मेरी बिगड़ी आपको बनानी ही पड़ेगी, मुझे सुहाग देना ही पड़ेगा। क्योकि आप सब जग की माता है और सबकी इच्छा पूरी करने वाली है। तब चौथ माता खुश हुई और उसे अमर सुहाग का आशीर्वाद दिया। इतने में उसका पति बैठा हो गया और बोलने लगा कि मुझे बहुत नींद आई।
वह बोली मुझे तो बारह महीने हो गए, मुझे तो चौथ माता ने सुहाग दिया है। तब पति बोला कि चौथ माता का विधि विधान से उजमन करो। उधर ननद रोटी देने आई तो उसने दो जनो के बोलने की आवाज सुनी तो अपनी माँ के जाकर बोली कि भाभी तो पता नहीं जाने किससे बाते कर रही है। तब सास ने जाकर देखा कि बहु और बीटा दोनों जीम रहे है व चौपड़ पासा खेल रहे है। देखकर वह बहुत खुश हुई और पूछने लगी ये कैसे हुआ बहु बोली यह सब मुझे मेरी चौथ माता ने दिया है और सासुजी के पैर छूने लगी और सास ने अमर सुहाग का आशीष दिया।
चौथ माता का व्रत पुरुष कि पत्नी, बेटे की माँ सभी को करना चाहिये। तेरह चौथ करनी चाहिये।
हे! चौथ माता जैसा साहूकार कि बेटी का सुहाग अमर किया वैसा सभी का करना। कहने-सुनने वालो को, हुंकारा भरने वालो को सभी को अमर सुहाग देना। बोलो- मंगल करणी दुःख हरणी चौथ माता की जय।
बिंदायक जी की कहानी
एक अंधी बुढ़िया माई के पति, बेटा व बहु थे। वे लोग बहुत गरीब थे। बुढ़िया माई रोज गणेश जी की पूजा भक्ति भाव से किया करती थी। एक दिन गणेश जी उस बुढ़िया माई से प्रसन्न हुए और बोले की मुझसे कुछ मांग, तब बुढ़िया बोली की मुझे कुछ भी मांगना नहीं आता है। तब गणेश जी बोले तेरे बेटे से पूछ ले। तब उसने अपने बेटे से पूछा तो बेटा बोला माँ धन मांग ले। बहु से पूछा तो वो बोली सासुजी पोता मांग लो। तब माई ने सोचा की ये दोनों तो अपने मतलब की बात मांगने को कह रहे है।
सो उसने पड़ोसन से पूछा। पड़ोसन बोली तू क्यों पोता मांगे, क्यों धन मांगे, कुछ अपने लिये भी मांग ले। अपने लिये दीदा गोड़ा(आखे घुटने) मांग ले। तब घर पर आकर माई ने सोचा कुछ ऐसा माँगा जाये जिससे बेटे-बहु भी राजी हो जाये और अपना मतलब भी हो जाये।दूसरे दिन जब गणेश जी आये तो बोले माई मांग कुछ, तब बुढ़िया माई बोली “दीदा गोड़ा देवो सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखू, अमर सुहाग देवो, निरोगी काया देवो सभी को सुख देवो।”
तब भगवान गणेश जी बोले माई तूने तो मुझे ठग लिया। सब कुछ तो मांग लिया और कहती थी कुछ माँगना नहीं आता है। पर ठीक है ऐसा ही होगा और गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। बुढ़िया माई के वैसा ही सब कुछ हो गया।
हे गणेश जी महाराज जैसा माई को दिया वैसा ही सब को देना। “बोलो श्री बिंदायक जी महाराज की जय।”
चौथ माता के गीत
चौथ चंदरावल तू ही म्हारी माय, उभा उभा सूरजजी बिनव मोरी माय ।
राज पाटरी माता तू ही रखवाल, चौथ चंदरावल तू ही रखवाल॥
उभी उभी सासू बवा बिनव मोरी माय, उभी उभी दिवर जेठानिया बिनव मोरी माय।
चूड़ा चुंदड़ की माता तू ही रखवाल, दुधा जोबन माता तू ही रखवाल॥
भाई भतीजा माता तू ही रखवाल, चौथ चंदरावल तू ही म्हारी माय।
छींक चौथ का गीत
छींक नेर मनाऊं मोरी माय चौथ नेर मनाऊ मोरी माय ।
छींक को तो परच्यो हे भवानी माता म्हे सुण्यो जी ॥ टेर ॥
सोनाकीर घड़ाऊ मोरी माय, रूपा कीर घड़ाऊ मोरी माय।
हीरा सेर जड़ाऊ ये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥1॥
हरिये पाट पुवाऊ मोरी माय, राते पाट पुवाऊ मोरी माय।
पीले पाट पुवाऊं ये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥2॥
दूधा सूंर न्हवाऊ मोरी माय, दहियां सूंर नहाऊं मोरी माय।
गंगाजल सूं झिकोलुये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥3॥
बाजोट्या पर थरपूं मोरी माय, सिंहासण पर थरपूं मोरी माय।
छाबूल्या में थरपूं ये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥4॥
लापसड़ी से पुजूं मोरी माय, चूरमासे पुजूं मोरी माय।
नारेलार बधारुं ये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥5॥
हिवड़ा ऊपर राखू मोरी माय, जिवड़ा ऊपर राखू मोरी माय।
मस्तक ऊपर राखू ये भवानी माता आपने जी ॥ छींक ॥6॥
………जीने ठूंठी मोरी माय, ………जीने ठूंठी मोरी माय।
………जीने ठूंठी ये भवानी माता मैं सुण्यो जी ॥ छींक ॥7॥
सासु बहूआं ने ठूंठी मोरी माय, दोर जिठाण्यां ने ठूंठी मोरी माय।
नणद भोजायां ने ठूंठी ये भवानी माता मैं सुण्यो जी ॥ छींक ॥8॥
गाबा वाल्यां ने ठूंठी मोरी माय, सुणबा वाल्यां ने ठूंठी मोरी माय।
आस पड़ोसया ने ठूंठी ये भवानी माता मैं सुण्यो जी ॥ छींक ॥9॥
करवा चौथ व्रत का उद्यापन
अटल सुहाग देने वाली करवा चौथ माता सभी चौथ में सबसे बड़ी है। जब लड़की की शादी होती है तब से इसी चौथ से व्रत करना शुरू करते है उसके पीहर से शका के कर्व या गिलास, लोटे आते है।करवा चौथ का उद्यापन करने के लिये तेरह सुहागिनों को जिमाया जाता है। यदि जिमावै नहीं तो तेरह घेवर सुहागिनों को बाँट देना चाहिये। साडी,ब्लाउज, सोने की लौंग, बिछिया, बिंदिया, काजल, मेहँदी, चूड़ी, सिंदूर की डिबिया ये सब और सुहाग का सामान रख कर सास(सुहागिन हो तो) को दे देना चाहिये।
FAQ
Karva Chauth Date 2023
Karva Chauth 2023 Celebration Date is 1 November 2023, Wednesday
Can Unmarried Keep Karva Chauth
Yes
Can I do Karva Chauth During Periods
No, You can’t, you can keep the fast but can’t perform the puja at that time.
What Time does Karva Chauth Fast Start
When the day starts early in the morning
How to Fast for Karva Chauth
Total Fast, You can’t even drink a single drop of water too. Eating is not allowed either.
What Should I Gift to My Wife On Karva Chauth
Any Expensive Saree or Jewellery or a vacation as simple as that.
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