Mahamrityunjay Mantra महामृत्युंजय मंत्र (मृत संजीवनी मंत्र), Shiva Mahamrityunjaya Mantra Full in Sanskrit
ॐ हौं जूं सः
ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
ॐ स्वः भुवः भूः
ॐ सः जूं हौं ॐ
Shiva Mahamrityunjaya Mantra Meaning in Hindi हिंदी में महामृत्युंजय मंत्र का शब्दार्थ
हम भगवान शंकर की पूजा करते है, जिनके तीन नेत्र है, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते है, जो सम्पूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी शक्ति से कर रहे है। उनसे हमारी प्राथना है की वे हमे मृत्यु के बंधनो से मुक्त कर दे, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाये, जिस प्रकार एक ककड़ी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है ठीक उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी बेल में पक कर जन्म मृत्यु के बंधनो से सदैव के लिये मुक्त हो जाये और आपके चरणों की अमृत धारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप में लींन हो जाये।
महामृत्युंजय मंत्र का लाभ
- यह मन्त्र जीवन की रक्षा करने वाला है। (अकाल मृत्यु, दुर्घटना इत्यादि से रक्षा करता है)
- यह मन्त्र सर्प एवं बिच्छु के काटने पर भी अपना पूरा प्रभाव रखता है। (डॉक्टर का उपचार सबसे पहले लेना चाहिये)
- इस मन्त्र का महत्वपूर्ण लाभ है कठिन एवं असाध्य रोगो पर विजय प्राप्त करना।
- यह मन्त्र हर बीमारी को दूर भागने का बड़ा शस्त्र है।
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पति Origin of Mahamrityunjay Mantra
घोर तपस्या पूरी करने के बाद शुक्र ऋषि को “मृत संजीवनी विद्या” प्राप्त हुई थी इसी विद्या का एक अंग “महामृत्युंजय मंत्र” भी है।
मृकण्ड ऋषि के भाग्य में पुत्र सुख नहीं था और था भी तो अल्प आयु, भगवान शिव के वो परम भक्त थे बड़ी तपस्या से ऋषि मृकण्ड को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई नाम रखा गया “मार्कण्डेय”, परन्तु मार्कण्डेय की आयु केवल बारह वर्ष की ही थी ।
मार्कण्डेय के जीवन की अल्प अवधि से उनकी माता अत्यंत चिंतित रहा करती थी तब मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वत किया-देवी, चिंता मत करो। विधाता जीव के कर्मानुसार ही आयु दे सकते हैं, कितु मेरे स्वामी भगवान शिव समर्थ हैं। भाग्यलिपि को स्वेच्छानुसार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है।
मार्कण्डेय तेजी से बारह वर्ष की उम्र की ओर बढ़ने लगे। उनकी माता उनकी बाल लीलाओ को देखकर प्रसन्न होती, परन्तु जैसे ही मार्कण्डेय की अल्पायु पर ध्यान जाता उनको अत्यधिक दुख ओर शोक होता, यह देखकर कुमारावस्था के प्रारम्भ में ही पिता ने उन्हें शिव मन्त्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी। पुत्र को उसका भविष्य बता कर समझा दिया कि त्रिपुरारी ही उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। माता-पिता तो दिन गिन रहे थे।
मार्कण्डेय प्रघाड़ शिव भक्त थे। बारह वर्ष पूरे होने का समय पास आ रहा था। मार्कण्डेय महादेव मन्दिर (वाराणसी जिला में गंगा गोमती संगम पर स्थित ग्राम कैथी में यह मन्दिर मार्कण्डेय महादेव के नाम से स्थापित है।) में बैठे थे। इस मन्त्र की रचना मार्कण्डेय ऋषि ने की और उन्होंने मृत्युंजय मन्त्र का अनवरत पाठ करना शुरू किया, कहते है काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता, समय पर वो आता ही है उसको कोई रोक नहीं सकता। यमराज के दूत समय पर आए, महामृत्युंजय मन्त्र अनवरत चल रहा था।
शिव की उपासना में लींन मार्कण्डेय को देख यमराज के दूत उनका बाल भी बाक़ा नहीं कर सके, तो उल्टे पाँव लौट गए। उन्होंने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया- हम मार्कण्डेय तक पहुँचने का साहस नहीं पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लाऊँगा। दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय के पास पहुँच गये।बालक मार्कण्डेय ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा तो कालो के काल महाकाल की लिंगमूर्ति से लिपट गया।
यमराज जी ने पाश उठाने का जैसे ही प्रयास किया, एक अद्भुत अपूर्व हुँकार हुई और मन्दिर, सभी दिशाएँ जैसे प्रचण्ड प्रकाश से चकाचौंथ हो गईं। शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र गंगाधर चन्द्रशेखर प्रकट हो गए और उन्होंने त्रिशूल उठाकर यमराज से कहा, हे! यमराज तुमने मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस कैसे किया ? यमराज ने उससे पूर्व ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका लिया था और कहा कि हे! त्रिनेत्र मैं आपका सेवक हूँ। कर्मानुसार जीव को इस लोक से ले जाने का निष्ठुर कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है।
भगवान चन्द्रशेखर ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा। इसे मैंने अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार कैसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए। मार्कण्डेय को भोलेनाथ ने जीवन दान दिया, मृकण्ड ऋषि ने सपरिवार भोलेनाथ को नमन किया और उनकी स्तुति की। त्रिपुरारी की स्तुति जो कोई महामृत्युंजय मंत्र से करता है वो मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।
बोलो हर हर महादेव !, हर हर महादेव !
महामृत्युंजय मंत्र जप विधि Chanting Method of Mahamrityunjay Mantra
अथारिष्टशान्त्यर्थं महामृत्युंजय जपविधिः
आचम्य प्राणानायम्य शांतिपाठं पठित्वा सुमुखश्चेत्यादिनां गणेशस्मरणं च कृत्वा|
संकल्पः- अमुकमास्यां, अमुकपक्षयां, अमुकतिथौ अमुकवासरे स्वस्य(यजमानस्य) शरीरे
उत्पन्नोत्पत्स्यमानाऽखिलारिष्ट निवृत्तये श्री मृत्युंजयप्रसादादीर्घायुष्यसततारोग्यावाप्त्ये
महामृत्युंजय जप महं करिष्ये||
ऋष्यादिन्यासः
वामदेवकहोलवशिष्ठाॠषयःमूर्धि्नः ||
पंक्तिर्गायत्री अनुष्टुप्-छंदासि वक्त्रे||
सदाशिवमहामृत्युंजय रूद्र देवतायैनमः हृदि|
ह्रीं शक्तये नमो लिंङ्गे |
श्रीं बीजाय नमः पादयोः |
इति ऋष्यादिन्यासः ||
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिंपुष्टिवर्धनं
उर्वारुकमिवबंध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ भूर्भुवः स्वःॐ जूँसः हौं ॐ ||
अस्य श्रीमहामृत्युंजय मन्त्रस्य वामदेवकहोलवशिष्ठाॠषयःपंक्तिः
गायात्र्युषि्णगनुश्तुपछंदासि सदाशिवमहामृत्युंजयरूद्रदेवता ह्रीं शक्तिः
श्रीबीजं महामृत्युंजय प्रीतये ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः |
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः त्र्यंबकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नमः ||
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमोभगवतेरुद्राय अमृतमूर्तये मां जीवयशिरसि स्वाहा ||
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः सुगंधिंपुष्टिवर्धनं ॐ नमोभगवतेरुद्राय चन्द्रशिरसे
जटिने स्वाहा शिखायै वौषट् |
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिवबंध्नात् |
ॐ नमोभगवतेरुद्राय त्रिपुरान्तकाय ह्रां ह्रीं ह्रौं कवचाय हुम् |
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमोभगवतेरुद्राय त्रिलोचनाय ॠग्यजुः
साम मन्त्राय नेत्रत्राय वौषट् ||
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः मामृतात् ॐ नमो भगवते रुद्राय-
ॐ अग्नित्रयाय उज्जवलज्वालाय मां रक्ष-रक्ष अघोराय फट् |
इति षडङ्गन्यासः |
त्र्यम्बकं शिरसि |
यजामहे भ्रुवोः|
सुगंधिं नेत्रयोः |
पुष्टिवर्धनं मुखे|
उर्वारुकं गंण्डयोः |
इव हृदये|
बन्धनात् जठरे |
मृत्योर्लिंगे|
मुक्षीय उर्वो|
मा जान्वो|
अमृतात् पादयोः |
इति पदन्यासः||
मूलेन व्यापकं कृत्वा ध्यानं कुर्यात् |
||अथ ध्यानं||
हस्ताम्भोजयुगास्थकुम्भयुगलादुद्धत्य तोयंशिरः सिञ्चन्तं करयोर्युगे
न दधतं स्वांकेसकुम्भौकरौ |
अक्षस्त्र्ग्मृहस्तमंबुजगतं मूर्द्धस्यचंद्रस्त्रवत्पीयूषोत्रतनुं भजेशगिरिजं
मृत्युञ्जयं त्र्यम्बकम् |
चंद्रोद्भासितमूर्ध्जंसुरपतिं पीयूषपात्रं वहद्धस्ताब्जेन दधत्
सुदिव्यममलंहारस्यास्य पंकेरूहम्|
सूर्येंद्वग्निविलोचनं करतले पाशाक्षसूत्रांकुशाम्भोजं विभ्रतमक्षयं पशुपतिं मृत्युंजयं संस्मरे ||
इति ध्यात्वा |
मानसोपचारैः संपूज्य||
ॐ लं पृथिव्यात्मकंगन्धं समर्पयामि ||
ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि ||
ॐ यं वायवात्म्कंधूपं समर्पयामि ||
ॐ रं तैजसात्मकं दीपं समर्पयामि ||
मन्त्रं जपेत्|
ॐ हौं ॐ जूँ सः भूर्भुवः स्वः
त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्
भूर्भुवः स्वरों जूँसः हौं ॐ ||
ततो जपानंतरं देवदक्षिणकरे जपं समर्पयेत् ||
गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् |
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ||
मृत्युञ्जयःमहारूद्र त्राहि मां शरणागतम् ||
जन्ममृत्युजरारोग पीडितं कर्मबंधनैः||
अर्पणं-
अनेन महामृत्युंजयजपाख्येंन कर्मणा श्रीमहा मत्युन्जयः प्रीयतां न मम|
इति विज्ञाप्यदेवेशं जपेंन्मंत्रंतुत्र्यम्बकं ||
जप निवेदनम् –
जपसांगतासिद्धयर्थंयथाकामनाद्रव्येण तद्धशाशदुग्धाज्य संसिक्तापामार्गसमिदि्भर्होमः
तद्धशांशतर्पणम् तद्धशांशमार्जनं तद्धशांशब्राह्मणभोजनंकारयेत् ||
इति||अथ होमार्थं शताक्षरा गायत्री मन्त्रः ||
ॐ तत्सवितुर्वरेंण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् |
ॐ जातवेदसेसु नवाम सोममारातीयतोदिनहातिवेदः |
स नः पर्षदतिदुर्गाणिविश्वानावेवसिन्धुर्दुरितात्याग्निः||
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वाहा ||
|| इति अरिष्टशान्त्यर्थं महामृत्युंजयजप विधिः समाप्तं ||