Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi मोक्षदा एकादशी व्रत विधि

Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi मोक्षदा एकादशी व्रत विधि

Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi मोक्षदा एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ समझा रहे है। अगहन(मार्गशीर्ष या मिंगसर) माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी के रूप में मनाई जाती है। जैसा की नाम से वर्णित हो रहा है कि “मोक्ष को देने वाली”, मोक्षदा एकादशी व्रत को करने वाला इस जीवन को सुख पूर्वक जीने के बाद दुबारा संसार में जन्म नहीं लेता है। उसको मोक्ष कि प्राप्ति हो जाती है। व्रत को करने पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगहन(मार्गशीर्ष या मिंगसर) माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन Gita Mahotsav गीता महोत्सव(गीता जयंती) भी मनाई जाती है।

Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi मोक्षदा एकादशी व्रत विधि

एकादशी तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। लेकिन ऐसी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी में भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।

मोक्षदा एकादशी के दिन सर्वप्रथम प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प करके प्रात:काल के समय भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का पूजन करें। दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और भगवान को चढ़ाएं। विष्णु-लक्ष्मी का लाल-पीले चमकीले वस्त्रों से श्रृंगार करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जप करें।(ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)

Mokshada Ekadashi Vrat Significance मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, मोक्षदा एकादशी का व्रत और पूजन करने से पितृ अत्यंत प्रसन्न होते हैं क्योंकि इस व्रत के प्रभाव से पितृ नीच योनि से मुक्त हो जाते हैं, और बैकुंठ धाम को जाते हैं। ऐसे धर्म प्रिय जातक से प्रसन्न होकर पितृ अपने परिवार को धन-धान्य और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं। वहीं मोक्षदा एकादशी के व्रत को करने से यश-कीर्ति में भी बढ़ोतरी होती है और जीवन खुशियों से भर जाता है।

जो यह व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती हैं साथ ही यह धनुर्मास की एकादशी कहलाती हैं, अतः इस एकादशी का महत्व कई गुना और भी बढ़ जाता हैं। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोडी देर गीता अवश्य पढें।

Mokshada Ekadashi Vrat Rules मोक्षदा एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. मोक्षदा एकादशी अथवा किसी भी एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  2. मोक्षदा एकादशी अथवा किसी भी एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  3. मोक्षदा एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  4. मोक्षदा एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
  5. मोक्षदा एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  6. मोक्षदा एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
  7. मोक्षदा एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

Mokshada Ekadashi Vrat Katha मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। भगवान कृष्ण द्वारा पांडव राजा युधिष्ठिर को यह कथा सुनाई गई। भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले: मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। जिस व्रत को करने से पूर्वजो के दुखों का अंत होता हैं। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।

एक समय की बात है, चंपक नामक नगर में संत समान राजा वैखानस राज किया करते थे। उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण सुख पूर्वक रहा करते थे। प्रजा पालक राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत रूप में पालन-पोषण करता था। एक रात्रि राजा ने एक स्वप्न देखा जिसमें उसने अपने पिता को नरक में पीड़ा सहते हुए देखा, राजा अत्यंत दुःखी हुआ, स्वप्न में राजा के पिता ने राजा से उन्हें इस पीड़ा से मुक्त करने की प्रार्थना की।

राजा ने अगले दिन अपनी सभा के ब्राह्मणों को यह दुःस्वप्न सुनाया।राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते देखा है। इस दुःख से मेरा पूरा शरीर जल रहा है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि से सुख प्राप्त नहीं हो रहा, मेरा चित बड़ा अशांत है। आप मुनि जन कृपा करे और कोई उपाय, तप, दान, व्रत आदि ऐसा बताए जिससे मेरे पिता नर्क से मुक्त हो और मैं पुत्र धर्म का पालन कर सकूँ। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार ना कर सके।

ब्राह्मणों ने राजा को कहा- हे राजन! आपको पर्वत ऋषि के आश्रम जाना चाहिये वे भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता महान ऋषि है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।ब्राह्मणों की ऐसी बाते सुनकर राजा पर्वत मुनि के आश्रम पंहुचा और मुनि को प्रणाम कर बोला महामुनि आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल-मंगल हैं। परन्तु अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति के भाव उठते है।

ऐसा सुन पर्वत ऋषि ने आँखें बंद की और कुछ समय उपरांत बोले- तुम तुम्हारे पिता को लेकर दुखी हो, भूत काल में तुम्हारे पिता के द्वारा भूल हुई। जब उनकी एक रानी ने रति समय पर ऋतुदान की मांग की तो वे उससे विमुख हो नगर भ्रमण को निकल गए। इसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा। राजा बोले- महामुनि उनकी मुक्ति का उपाय कहे! आपके वचन सुनने को मैं आतुर हूँ। ऋषि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को संकल्प लेकर व्रत का पुण्य अपने पिता को दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी।

मुनि के ऐसे वचन सुन राजा महल को आया और मुनि के कहे अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। उपवास का पुण्य उसने अपने पिता को अर्पण किया। इसके प्रभाव से उसके पिता को दुखो से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग में जाते हुए पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। ऐसा कहकर वे बैकुंठ धाम को चले गए। राजा के समान जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है। उसके पितरो को मोक्ष प्राप्त होती है और उसे पितरो का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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