आइए इस लेख में जानें पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म कैसे किया जाता है? Pitru Paksha Shradh Rituals in Hindi बुजुर्गो की मृत्यु तिथि के दिन श्रद्धापूर्वक तर्पण और ब्राह्मण को भोजन कराना ही श्राद्ध है। श्राद्धकर्ता श्राद्ध के उपयुक्त ब्राह्मणो को पहले दिन निमंत्रित करे। वार्षिक तिथि को एकोदिष्ट और महालय पक्ष में पार्वणादि श्राद्ध करे। यदि इस प्रकार नहीं कर सके तो पितृतृप्ति के लिये सांकल्पिक श्राद्ध तथा तर्पण अवश्य करे।
श्राद्ध कार्य में ध्यान रखने वाले नियम
श्राद्ध के समय लोहे के पात्र में पाकवानादि न रखे तथा लोहे का पात्र किसी काम में न ले।
न जातीकुसुमैविद्वान बिल्वपत्रैशच नार्चयेत।
सुरभीनागकर्णाधैहृयारिकाँचनारकै।।
बिंल्वपत्रैनार्चयेतान् पितृन् श्राद्धविग्राहतैः।
तद्भुञ्जंत्यसुराः श्राद्धं निराशैः पितृभिगृतम्।।
सर्वाणि रक्तपुष्पाणि निषिद्धान्यपराणि तु।
वर्जयेत् पितृश्राद्धेषु केतकी कुसुमानि च।।
श्राद्ध में बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेशर, कर्ण, जवा, कनेर, कचनार, केतकी और समस्त रक्तपुष्प वर्जित है। इन पुष्पों से पूजन करने से पितरों को श्राद्ध का फल नहीं मिलता है उसे राक्षस ग्रहण करते है।
खञ्जो वा यदि काणो दातुः प्रेष्योऽपि वा भवेत्।
हीनातिरित्तगात्रो वा तमप्यपनयेत पुनः।। मनुस्म्रति।।
लंगड़ा, काना, दाता का दास, अंगहीन और अधिक अंग वाला ब्राह्मण श्राद्ध में निषिद्ध है।
अश्रुं गमयति प्रेतान् कोपोऽरीननृतं शुनः।
पादस्पर्शस्तु रक्षाँसि दुष्कृतीनवधूननम्।। मनु़।।
श्राद्ध के समय आंसू आने से पाक प्रेतों को, क्रोध से शत्रुओ को, झूठ बोलने से कुत्तो को, पैर स्पर्श हो जाये तो राक्षसों को और पाक उछालने से पापियों को मिलता है।
यत्फ़लं कपिलादाने कार्तिक्याँ ज्येष्ठ पुष्करे।
तत्फ़लं पाण्डव श्रेष्ठ विप्राणाँ पादशाैचने।।
हे पांडव श्रेष्ठ! कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर तीर्थ में कपिला गौ के दान से जो फल होता है वही फल ब्राह्मणो के पैर धोने से होता है।
कभी भी ब्राह्मण को श्राद्ध के भोजन की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए, हो सके तो मौन रहकर पूरा भोजन ग्रहण करना ही उत्तम होता है।
श्राद्ध भोजन के अंत में ब्राह्मण को तिलक लगा कर दक्षिणा देने पर केवल एक पितृ जिनका श्राद्ध है वही तृप्त होते है परन्तु तिलक के बिना अगर दक्षिणा दी जाती है तो उस तिथि पर जितने भी ज्ञात और अज्ञात पितृ होते है उन सभी की तृप्ति होती है, सो ध्यान रखे दक्षिणा बिना तिलक ही देनी चाहिए।
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म की विधि
तर्पण की सामग्री : पान, सुपारी, काला तिल, जौ, गेहूं, चंदन, जनेऊ, तुलसी, पुष्प, दूब, कच्चा दूध, पानी आदि सामग्री पूजा हेतु एकत्रित कर लेनी चाहिये। पूजा का स्थान गाय के गोबर से साफ कर लेना चाहिये। अब एक कंडे से बैसंदर जलाकर मृत पितृ के निमित्त और उनकी तिथि स्मरण करके नैवेघ निकाल देना चाहिये। एक थाली में गोग्रास(पंच ग्रास) तथा एक थाली में ब्राह्मण भोजन निकाले।
श्राद्ध संकल्प:- आज तिथि…….. वार……… मास………..(कृष्ण पक्ष/ शुक्ल पक्ष) पक्षे सयुंक्त सवत्सरे(पितृ/मातृ या दादा/ दादी) की पुण्य श्राद्ध तिथि पर उनके ब्रह्मलोक में स्वर्ग का आनंद एवं सुख की प्राप्ति हेतु धर्मराज की प्रसनन्ता के लिये काक बलि, मार्ग देवता की प्रसनन्ता के लिये खान (श्वान या कुत्ता) बलि, वैतरणी नदी को पार करवाने हेतु गोग्रास बलि, कीट पतग योनि की तृप्ति व अथिति देवता हेतु पंच ग्रास बलि………….(अमुक) के निमित्त है। उनकी (माता पिता दादा दादी) भूख-प्यास का दोष शांत हो तथा उन्हे आनंद की प्राप्ति होवे। हमारे वंश व धन की वृद्धि होवे।
ऐसा बोलते हुए हाथ में जल, जौ, तिल व दक्षिणा रखकर, पाँचो ग्रास पर घुमाकर दक्षिण में मुँह करके छोड़ दें। इसके अतरिक्त ब्राह्मण भोजन के निमित्त जो थाली में प्रसाद रखा है उस पर जल घुमाकर छोड़े और कहे इससे हमारे……….(माता, पिता, दादी, दादा) की तृप्ति हो वो प्रसन्न होवे।
खंडन
‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। हमारा उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है।’