Raksha Bandhan Fastival रक्षा बंधन का त्यौहार, हिंदुओं के चार प्रसिद्ध त्यौहार में से एक रक्षाबंधन का त्यौहार है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे नारियली पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन श्रावण मास का शिव पूजन पूर्ण होता है। यह मुख्यतया भाई बहन के स्नेह का त्यौहार है। रक्षाबंधन त्यौहार भाई बहन को स्नेह की डोर में बांधे रखता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और माथे पर तिलक लगाती हैं और उसके जीवन की मंगल कामना करती है। भाई भी प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति में अपनी बहन की रक्षा करूंगा। इस दिन घर के प्रमुख द्वारों के दोनों ओर श्रवण कुमार के चित्र लगाकर खीर से पूजा की जाती है। भगवान के द्वार पर, बक्से पर, जल कलश पर भी राखी बांधते हैं। ब्राह्मण लोग यजमान के राखी बांधते हैं ।
पौराणिक समय में राखी के प्रसंग(पुराने समय में राखी कब-कब बाँधी गई)
राखी बांधने का प्रथम प्रसंग
एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था। तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बंधी थी। इसी बंधन से ऋणी श्री कृष्ण ने दुशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रोपदी की लाज बचाई थी।
राखी बांधने का दूसरा प्रसंग
मध्यकालीन इतिहास में कैसे घटना मिलती है। जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास रखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया था।
राखी बांधने का तीसरा प्रसंग
प्राचीन समय में एक बार देवता और दानवों में 12 वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोको को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैत्यों के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं के राजा इंद्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल रक्षा का विधान संपन्न किया गया।
‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥’
उक्त मंत्रोचार से गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया। सह धर्मिणी इंद्राणी के साथ वत्र संहारक इंद्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरश पालन किया। इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।
राखी बांधने का चौथा प्रसंग
राजा बलि के यहाँ जब भगवान वामन रूप धरकर आए थे और उन्होंने तीन पग भूमि मांग कर, धरती, आकाश और पाताल तीनों को ही दो पद में माप लिया और तीसरा पग राजा बलि के ऊपर रखा। फिर राजा बलि से कुछ मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप मेरे यहां पाताल में चार माह तक पहरेदार बनकर रहेंगे। ऐसा वरदान दीजिए। तब से ही भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को स्वर्ग में ही छोड़कर वर्ष में चार माह तक पहरेदार के रूप में राजा बलि के यहां रहने लगे। रक्षाबंधन के दिन श्री लक्ष्मी जी स्वर्ग से रिमझिम करती हुई राखी लेकर पधारी। राजा बलि को भाई बनाकर राखी बांधी। भतीजे और भाभी को भी राखी बांधी। तब रानी हीरे मोती का थाल भेंट स्वरूप लेकर आई। तो श्री लक्ष्मी जी बोली- “भाभी हीरे मोती तो मेरे घर में भी बहुत है। मैं तो बंधे हुए मेरे पति श्री विष्णु भगवान को छुड़ाने आई हूं। इस प्रकार लक्ष्मी जी श्री विष्णु भगवान को अपने साथ ले जाती हैं।
FAQ
Raksha Bandhan 2024: Date, Muhurat and Rituals
Purnima Tithi Ends: On August 19 at 11:55 pm.
Raksha Bandhan Bhadra Tail: 9:51 am–10:53 am.
Raksha Bandhan Bhadra face: 10:53 am–12:37 pm.
Raksha Bandhan Bhadra End Time: 1:30 pm.
Time of Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–8:27 pm.
Afternoon Auspicious Time for Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–3:39 pm.
Pradosh Period for Raksha Bandhan: 6:12 pm–8:27 pm.
Raksha Bandhan 2024: Rituals
The rituals start with applying the roli or kumkum tika to your brother’s forehead, then performing aarti. Now, you can tie the rakhi around the brother’s right wrist and also recite the prayers or wishes to God for his well-being, fortune, and overall good things.
After that, offer sweets to your brothers and exchange gifts. The festival then concludes with festive meals.
रक्षा बंधन 2024: तिथि, मुहूर्त और अनुष्ठान
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 अगस्त को रात 11:55 बजे.
रक्षा बंधन भद्रा पूंछ: सुबह 9:51 बजे से सुबह 10:53 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा मुख: सुबह 10:53 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा समाप्ति समय: दोपहर 1:30 बजे।
रक्षा बंधन उत्सव का समय: दोपहर 1:30 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन उत्सव के लिए दोपहर का शुभ समय: दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:39 बजे तक।
रक्षा बंधन के लिए प्रदोष काल: शाम 6:12 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन 2024: अनुष्ठान अनुष्ठान की शुरुआत आपके भाई के माथे पर रोली या कुमकुम का टीका लगाने, फिर आरती करने से होती है। अब, आप भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांध सकती हैं और उसकी भलाई, भाग्य और समग्र अच्छी चीजों के लिए भगवान से प्रार्थना या कामना भी कर सकती हैं। इसके बाद अपने भाइयों को मिठाई खिलाएं और उपहारों का आदान-प्रदान करें। फिर उत्सव का समापन उत्सव के भोजन के साथ होता है।