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Ravivar Vrat Vidhi Katha रविवार व्रत विधि कथा

Ravivar Vrat Vidhi Katha रविवार व्रत विधि कथा

Ravivar Vrat Vidhi Katha रविवार, जिसे सूर्य का दिन भी कहा जाता है। रविवार का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित ‘रविवार व्रत’ का अनुष्ठान किया जाता है। अश्विनी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से रविवार व्रत को प्रारम्भ किया जाता है। यह व्रत सभी सुखो को देने वाला साथ ही हर मनोकामना को पूरा करने वाला है। यह व्रत मान-सम्मान में वृद्धि तथा शत्रु-क्षय करने वाला है।

रविवार का व्रत 1 वर्ष या 30 या 12 रविवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। लाल वस्तु का दान भी करना चाहिए। आइए जानें इस व्रत के महत्व, नियमों और सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के सरल उपायों के बारे में।

Ravivar Vrat Vidhi रविवार व्रत कैसे करे (रविवार व्रत की विधि)

  1. रविवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर सूर्य देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य दें. अर्घ्य देते समय जल में लाल पुष्प, अक्षत और दूध मिलाएं।
  3. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही सूर्य देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, फल, केसर, गुड़, गेहू, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, दूर्वा, रक्त चन्दन, कनेर(कनईल) का पुष्प, लाल चन्दन, गुलाल और तांबे का कलश की आवश्यकता होती है।
  4. पूजन का समय: प्रातः के समय सूर्य देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  5. मंत्र जाप: पूजा के समय सूर्य ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  6. रविवार व्रत में गेहू की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। जैसे रोटी, हलुवा, खीर और पूड़ी इत्यादि खाए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। व्रतकर्ता को दिनभर निराहार रहकर सांयकाल सूर्यास्त होने से पूर्व सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए। पूजा उपरान्त सूर्यास्त से पहले फलाहार या भोजन कर लेना चाहिए।
  7. घर के आँगन को गाय के गोबर से लीपकर, वहाँ ताम्रनिर्मित भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा या फोटो स्थापित कर पूजन करे।(घर में आँगन ना हो तो पूजा घर में भी पूजा की जा सकती है। गोबर का इस्तेमाल आप पर निर्भर है।)
  8. पूजन के अंत में घी मिले हुए गुड़ से हवन करना चाहिए।
  9. शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्यदेव को दोबारा अर्घ्य दें और पूजन के अंत में सूर्यदेव की आरती करें।
  10. सूर्य देव पूजन के पश्यात रविवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  11. रविवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री सूर्य कवचं, श्री सूर्य स्तुति और सूर्य स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

Ravivar Vrat Rules रविवार व्रत के नियम (रविवार व्रत के नियम क्या-क्या हैं ? )

  1. व्रत के दिन नमक, खटाई, तेल का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित होता है। रविवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन न करें।
  2. भोजन एक समय ही करे, भोजन या फलाहार सूर्य अस्त से पूर्व ही कर लेना चाहिए।
  3. यदि भोजन करने से पहले ही सूर्य अस्त हो जाये, तो दूसरे दिन सूर्य के उदय हो जाने पर सूर्य को अर्घ देने के बाद ही भोजन ग्रहण करे।
  4. अश्विनी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू होकर निरंतर पांच वर्षो तक व्रत रखकर सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।
  5. व्रतकाल में प्रतिवर्ष एक-एक धान्य का परित्याग करे जैसे प्रथम वर्ष में जव, द्वितीय वर्ष में गेहूँ, तृतीय वर्ष में चना, चतुर्थ वर्ष में तिल और पंचम वर्ष में उड़द को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  6. व्रत की समाप्ति पर इन पांच धान्य का दान करना चाहिए।
  7. संभव हो तो व्रत के दिन किसी जरूरतमंद की मदद करें।
  8. श्री सूर्य कवचं, श्री सूर्य स्तुति, श्री सूर्य स्त्रोतम का पाठ और सूर्य मन्त्र की 12, 5 या 3 माला जाप जरूर करें।
  9. सूर्य व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  10. आपके नजदीक जो भी सूर्य मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। सूर्य देव की कृपा परिवार पर रहेगी ।
  11. सूर्य ग्रह का राशि-भोग काल: सूर्य ग्रह एक मास में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर एक माह तक रहता है।
  12. सूर्य ग्रह की दृष्टि: सूर्य ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे तथा दसवें भाव को ‘एक पाद’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को ‘त्री पाद’ दृष्टि से तथा सप्तम भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ से देखता है।
  13. सूर्य ग्रह की जाति: सूर्य ग्रह की जाति ‘क्षत्रिय’ जाति है।
  14. सूर्य ग्रह का रंग: सूर्य ग्रह का रंग ‘लाल रंग’ होता है।
  15. सूर्य ग्रह ‘शरीर’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
  16. सूर्य ग्रह ‘क्रूर ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
  17. सूर्य शान्त्यर्थ रत्न : माणिक्य या विदुम
  18. सूर्य ग्रह की दान वस्तुएँ: लाल गौ, ताँबा, लाल वस्त्र, सोना, गेहू, लाल चन्दन, लाल रंग के पुष्प, माणिक्य, केसर, गुड़, धृत, मूंगा । रविवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय सूर्योदय के समय रहता है।

Ravivar Vrat Mantra रविवार व्रत का मंत्र

सूर्य ग्रह की जप संख्या: सूर्य ग्रह की जप संख्या 7000 जप की है।
सूर्य मन्त्र – ॐ घृणि सूर्याय नमः।
सूर्य ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः |
सूर्य मन्त्र की 12, 5 या 3 माला की जाती है ।

ॐ सूर्याय नम: । ॐ घृणि सूर्याय नम: । ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:

मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना शुभ माना जाता है।

Ravivar Vrat Significance रविवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. सूर्यदेव को जीवन शक्ति का स्रोत माना जाता है। रविवार व्रत सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी साधन है।
  2. यह व्रत आरोग्य, ऐश्वर्य, सफलता और मान-सम्मान प्रदान करने वाला माना जाता है।
  3. जब रविवार को हस्त अथवा पुनर्वसु नक्षत्र का योग हो, तब पवित्र सर्वोषधि मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इस प्रकार के रविवार को स्नान करने वाला सात जन्मों में रोग से पीड़ित नहीं होता।
  4. संक्रांति के दिन यदि रविवार हो तो उसे पवित्र आदित्य हृदय माना गया है। उस दिन अथवा हस्त नक्षत्र युक्त रविवार को 1 वर्ष तक नक्त व्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है।
  5. ग्रहों की अशुभ स्थिति के प्रभाव को कम करने और शुभ फल प्राप्त करने में भी इस व्रत का बड़ा महत्व है।
  6. आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी नियमित रूप से रविवार व्रत का पालन करना लाभकारी होता है।
  7. इस व्रत को करने से आंख से संबंधी दोष दूर होते हैं।
  8. कुंडली से सभी दोष दूर होते है। धन, सम्मान, सरकारी नौकरी, आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है।

Ravivar Vrat Aarti रविवार व्रत की आरती(सूर्यनारायण भगवान की आरती) Surydev Aarti

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥सारथी अरूण हैं प्रभु तुम,
श्वेत कमलधारी ।
तुम चार भुजाधारी ॥
अश्व हैं सात तुम्हारे,
कोटी किरण पसारे ।
तुम हो देव महान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊषाकाल में जब तुम,
उदयाचल आते ।
सब तब दर्शन पाते ॥
फैलाते उजियारा,
जागता तब जग सारा ।
करे सब तब गुणगान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

संध्या में भुवनेश्वर,
अस्ताचल जाते ।
गोधन तब घर आते॥
गोधुली बेला में,
हर घर हर आंगन में ।
हो तव महिमा गान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

देव दनुज नर नारी,
ऋषि मुनिवर भजते ।
आदित्य हृदय जपते ॥
स्त्रोत ये मंगलकारी,
इसकी है रचना न्यारी ।
दे नव जीवनदान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

तुम हो त्रिकाल रचियता,
तुम जग के आधार ।
महिमा तब अपरम्पार ॥
प्राणों का सिंचन करके,
भक्तों को अपने देते ।
बल बृद्धि और ज्ञान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

भूचर जल चर खेचर,
सब के हो प्राण तुम्हीं ।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥
वेद पुराण बखाने,
धर्म सभी तुम्हें माने ।
तुम ही सर्व शक्तिमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

पूजन करती दिशाएं,
पूजे दश दिक्पाल ।
तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥
ऋतुएं तुम्हारी दासी,
तुम शाश्वत अविनाशी ।
शुभकारी अंशुमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ॥
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥

Ravivar Vrat Katha रविवार व्रत की कथा(रविवार व्रत की पौराणिक कथा)

प्राचीन काल में एक नगर में एक वृद्धा रहा करती थीं। वह प्रत्येक रविवार घर-आंगन गोबर से लीपकर, स्नान आदि कर के भगवान की पूजा करती। फिर भोजन तैयार करतीं और सूर्यदेव को भोग लगाकर ही भोजन करती थीं। श्री हरि की कृपा से उसका घर अनेक प्रकार के सुख और धन धान्य से पूर्ण था। घर में किसी प्रकार का विघ्न या दुःख नहीं रहता था । सब प्रकार से घर में आनन्द ही रहता था। उस बुढ़िया की एक पड़ोसन थी। उसी पड़ोसन की गाय का गोबर वह बुढ़िया रोज लाती थी।

बुढ़िया का सुख और वैभव देख पड़ोसन धीरे-धीरे बुढ़िया से जलने लगी और एक दिन उसने निर्णय लिया कि अब मैं मेरी गाय का गोबर इसे नहीं लेने दूंगी सो वह पड़ोसन अपनी गौ को घर के भीतर बांधने लग गई। अगले दिन रविवार का दिन था परन्तु वृद्धा को गोबर न मिलने से वह रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी। उस दिन उसने न तो भोजन बनाया ना भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया। इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया। रात्रि हो गई और वह भूखी ही सो गई।

रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन दिये और भोजन न बनाने तथा भोग ना लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने कहा- प्रभु गोबर न मिलने के कारण घर को साफ़ नहीं कर पाई तो भोजन कैसे बनाती तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गौ देते है जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो । इससे मैं खुश होकर तुमको वरदान देता हूँ । निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर करता हूँ तथा अन्त समय में मोक्ष देता हूँ। स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान तो अन्तर्दान हो गए।

वृद्धा की प्रातःकाल आँख खुली तो वह देखती है कि आँगन में एक अति सुन्दर गौ और उसका बछड़ा बँधे हुए है। वह गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बाँध दिया और वहीं खाने को चारा भी डाल दिया। जब उसकी पड़ोसन ने वृद्धा के घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़े को बंधा देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख गई। वह प्रत्येक दिन ऐसा ही करती। सीधी-साधी वृद्धा को उसकी इस चालाकी की खबर नहीं होने दी।

तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से वृद्धा ठगी जा रही है तो ईश्वर ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आँधी चला दी। वृद्धा ने आँधी के भय से अपनी गौ को भीतर बाँध लिया। प्रातःकाल जब वृद्धा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया है। तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। अब वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर ही बाँधने लगी।

पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने का दाँव नहीं चल रहा तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा में जाकर शिकायत की और राजा को कहा- “महाराज मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास ऐसी गऊ है जो नित्य सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से प्रजा का पालन करिये। वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी।

उसकी बात सुनकर राजा ने अपने दूतों को वृद्धा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने जा ही रही थी कि राजा के कर्मचारी गऊ खोलकर ले गये। वृद्धा काफी रोई-चिल्लाई किन्तु राजा के कर्मचारियों के समक्ष कोई क्या कहता। उस दिन वृद्धा गऊ के वियोग में भोजन न खा सकी और रात भर रो-रोकर ईश्वर से गऊ को पुनः पाने के लिये प्रार्थना करती रही। उधर राजा गऊ को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा, उसे सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा। राजा यह देख घबरा गया।

भगवान ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा। यह गाय वृद्धा को लौटाने में ही तेरा भला है। उसके रविवार व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी। प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गाय और बछड़ा दोनों वृद्धा को लौटा दिया। अपने इस कार्य के लिये उससे क्षमा भी मांगी। उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया। इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हुई। उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेश दिया कि राज्य की समृद्धि तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये रविवार का व्रत जरूर करे।

व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। अब कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था। सारी प्रजा सुख से रहने लगी।

सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के सरल उपाय:

  • सुबह सूर्योदय के समय कुछ देर धूप सेंकें. इससे विटामिन डी मिलता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
  • सूर्यदेव को नियमित रूप से जल चढ़ाएं और प्रार्थना करें।
  • रविवार के दिन किसी मंदिर में जाकर सूर्यदेव के दर्शन करें।
  • दिनभर सकारात्मक रहें और अच्छे कर्म करें।

रविवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

रविवार व्रत का नियमित पालन आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि ला सकता है। सूर्यदेव की कृपा से आपका जीवन प्रकाशमय और सफल बन सकता है। तो आज ही से इस सरल व्रत का अनुष्ठान शुरू करें और सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें!

FAQ

रविवार व्रत कब से शुरू करना चाहिए?

अश्विनी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से रविवार व्रत को प्रारम्भ किया जाता है।

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