Sharad Purnima Vrat Vidhi आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस लेख में जानें शरद पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में। धर्म शास्त्र के अनुसार इस दिन कोजागर व्रत भी किया जाता है, इसी को कौमुदी व्रत भी कहते है। भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए इस दिन को रसोत्सव का दिन निर्धारित किया था, क्योकि कहा जाता है कि इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसी रात्रि को कृष्ण और गोपियों ने वृंदावन के निधिवन में महारास किया था।
इस दिन मंदिरो में विशेष सेवा पूजन किया जाता है। भगवान को रात्रि में नैवेद्य की बनी खीर का भोग लगाया जाता है। चांदनी रात्रि में भगवान का श्वेत वस्त्रो से शृंगार करके चन्द्रमा में विराजमान करे।
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
शरद पूर्णिमा से ही कार्तिक स्नान और व्रत की शुरुआत हो जाती है। माताएँ अपनी संतान की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और देवी देवताओं को पूजती है। शरद पूर्णिमा के समय चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत पास आ जाता है, इसी कारण अमृत पाने की इच्छा से शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखी जाती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा की रोशनी में सुई में धागा पिरोते है, इससे आखो की रोशनी बढ़ती है।
शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा व्रत को 13 पूर्णिमा तक रखा जाता है। उसके बाद उसका उद्यापन जरूर करना चाहिए शरद पूर्णिमा के दिन सुबह प्रातः काल उठकर स्नान करने के पश्चात उपवास रखे पीपल के पेड़ में मीठा जल अर्पित करें। अब घी का दीपक और धूपबत्ती जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करें। शरद पूर्णिमा को रात भर मां लक्ष्मी का विशेष पूजन करने से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
प्रातः काल ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी माता की प्रतिमा को स्थापित करके पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। फिर घी मिश्रित खीर बनायें और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमाँ की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। माता लक्ष्मी जी की आरती गाये और पूरी रात्रि बंधू-बांधवो के संग जागरण करके उनका भजन करे।
द्वारिकाधीश जिनके इष्ट है, वो कृष्ण भगवान को राधा जी के साथ श्वेत वस्त्र पहनाकर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमाँ की चाँदनी में विराजमान करे और वृंदावन बिहारी को सारी खीर अर्पण करें। आरती कुञ्ज बिहारी की या विष्णु भगवान की आरती- ॐ जय जगदीश हरे गाकर पूरी रात्रि भजन कीर्तन करके रात्रि जागरण करे।
शरद पूर्णिमा उद्यापन
शरद पूर्णिमा व्रत के 13 व्रत पूर्ण हो जाने पर उद्यापन या उजेवणा किया जाता है उद्यापन में चाँदी के लोटे में मेवा भरकर रोली, चावल से पूजकर रुपये चढ़ाये अब लोटे को सासुजी के पाँव लगकर उनको दे देवें यदि कोई चुनड़ पुनो के दिन व्रत रखे तो इसी तरह एक पूनम करने के बाद सासुजी को चुनड़ी दे देवें। यदि कोई चूड़ा पून्यो के दिन व्रत रखे वो वह इसी तरह पून्यो करने के बाद एक चूड़ा तो सासुजी को दे देवें और तेरह बूढी ब्राह्मणियो को दे देवें।
शरद पूर्णिमा कथा
प्राचीन समय की बात है। एक जमींदार के दो पुत्रियाँ थी दोनों बहने खुशहाली और भगवान के आशीर्वाद के लिये पूर्णिमा का व्रत किया करती थी। बड़ी बहन तो पूर्णिमा व्रत को नियम से पूरा किया करती थी। परन्तु छोटी बहन जो भी व्रत करती उसको ध्यान से ना करके उसको अधूरा ही छोड़ दिया करती थी। इस कारण छोटी बहन के कोई संतान नहीं थी। संतान हुई भी तो अकाल मृत्यु के कारण उनकी मृत्यु हो जाती थी।
उसने सभी जगह पूछा गुरुओ से, ऋषियों से, ब्राह्मणो से, सब से पूछा की क्यों मेरी संतान जीवित नहीं रहती है। तब पंडितो ने उसको बताया की तुम पूर्णिमा व्रत अधूरा करती हो, इससे तुम्हारी संतान जीवित नहीं रहती है।
छोटी बहन ने संकल्प लिया की वो भी पूर्णिमा व्रत पूरे नियम का पालन करके करेगी। कुछ समय बाद छोटी बहन के पुत्र ने जन्म लिया। किन्तु वो कुछ समय बाद ही मर गया। छोटी बहन मरे हुए पुत्र को लेकर बड़ी बहन के पास गई, जैसे ही उसने पुत्र को बड़ी बहन के हातो में दिया, तो वो जीवित हो गया और रोने लगा छोटी बहन बहुत हर्षित हुई और बोली की बहन यह तुम्हारे पुण्य प्रताप से ही जीवित हुआ है। तुम पूर्णिमा व्रत पूरे करती थी और मैं अधूरा ही छोड़ देती थी।
आज तुम्हारा पुण्य काम आया है। तो जो भी इस व्रत को करे वो पुरा करे। अधूरा और बिना मन से किया कोई भी कार्य कभी सफलता नहीं देता है।