Shri MahaLaxmi Pujan Vidhi Dipawali Pooja Vidhi श्री महालक्ष्मी पूजन विधि दीपावली पूजा 

Shri MahaLaxmi Pujan Vidhi Dipawali Pooja Vidhi श्री महालक्ष्मी पूजन विधि दीपावली पूजा 

Shri MahaLaxmi Pujan Vidhi celebrate diwali श्री महालक्ष्मी पूजन की संपूर्ण विधि विधान हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं दीपावली पूजा मे मुख्य रूप से लक्ष्मी पूजा ही की जाती हैं। हम यहाँ सरल भाषा मे सम्पूर्ण पूजन विधि की जानकारी दे रहे है, साथ ही पूजन विधि मन्त्र सहित भी हम यहाँ दे रहे है, आप अपनी इच्छा अनुसार पूजन विधि अपना सकते है।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन दीपावली पर्व मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये घर-घर मे लक्ष्मी पूजन किया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्षो का वनवास पूरा कर के अयोध्या वापस लौटे थे। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन ही उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम सम्वत का प्रारम्भ चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है । कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी व उन्होंने भगवान श्री हरी विष्णु जी को पति रूप मे स्वीकार किया था।

Shri MahaLaxmi Pujan Samagri List लक्ष्मी पूजन सामग्री लिस्ट

लक्ष्मी पूजा में इस्तेमाल होने वाली समस्त सामग्री की जानकारी हम यहाँ दे रहे है यह आपके आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार ले सकते है भगवान तो भाव के भूके होते है सामग्री तो केवल साधन मात्र है|

अक्षत, रोली(कुमकुम), मोली(लच्छा), अष्टगंध चन्दन, सिंदूर, कपूर, गुड़ या लडडू, सुपारी, हल्दी, मेहंदी, लौंग, इलायची, पंच मेवा, कमल गटटा, रुई, धुप, अबीर, गुलाल, इत्र, साबुत धनिया, जौ, कुशा, श्री फल(नारियल), दशोषधी, राताधोला, यग्नोपवीत, खील बताशे, मजीठ, हरिद्रा, फुलेल, शुद्ध गाय का घी, सरसो या तिल्ली का तेल, गेहू, पान, फूल, फूलों की माला, पांच फल, मिटटी के दीपक, मिटटी का एक बड़ा दीपक, मावे का प्रसाद, दूब(दूर्वा), पंचपल्लव, सप्त मृतिका, पंचरत्न, स्वर्ण, पंचामृत, तीर्थ जल, बांदरवाल, गहने, अंगोछा, कमल पुष्प, गन्ने, लक्ष्मी जी और गणेश जी की चाँदी की मूर्ति या चित्र, पाटा, कलश, पानी का लोठा, चाँदी या सोने के सिक्के, घर में बनायीं सभी खाने की सामग्री, कुछ पैसे या रूपए

नोट:- अगरबत्ती का प्रयोग बिलकुल ना करे, हिन्दू धर्म मे बॉस को जलाना अशुभ माना जाता है।

Shri MahaLaxmi Pujan Vidhi लक्ष्मी जी पूजा विधान

किसी भी पूजन मे सबसे पहले वरुण देवता पूजन फिर गणपति पूजन फिर शोडष मातृका पूजन और नवग्रह पूजन के बाद मुख्य देवी देवता का पूजन होता है। बंधू बांधवों के साथ इस पूजा को किया जाता है, शुद्ध जल से स्नान करके व स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजन प्रारम्भ किया जाता है। एक पाटा बिछाकर उस पर गणेश जी तथा महालक्ष्मी जी की मूर्ति अथवा चित्र जो भी उपलब्ध हो सके पधरावे। सामने जौ के आखे रखकर कलश स्थापना करे और घी का दीपक जलावे। थाल मे पूजन की सारी सामग्री रखले, एक अलग थाल मे रोली, मोली, अक्षत, पानी से भरा कलश व कुछ चाँदी के सिक्के रख लेवे।

वरुण देवता पूजा मंत्र Varun Devta Pooja Mantra जल कलश पूजन विधि

सरल भाषा मे वरुण देवता पूजन विधि

पूजा के थाल मे रखे जल के कलश पर अक्षत चढ़ाकर वरुण देवता का आवाहन इस दोहे को बोलकर करे
जल जीवन है जगत का, वरुण देवता का वास।
सकल देव निशदिन करे, कलशे माहि निवास।।
गंगादिक नदियां बसे, सागर सप्त निवास।
पूजा हेतु पधारिये, पाप श्राप हो नाश।।

अब इस कलश पर
स्नानं समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर स्नान करवाये
वस्त्रं समर्पयामि कहकर मोली चढ़ाये
गन्धकं समर्पयामि कहकर रोली के छींटे देवे
अक्षतं समर्पयामि कहकर चावल चढ़ाये
धूपंघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये
दीपकं दर्शयामि कहकर दीपक दिखाये
नैवेद्यम समर्पयामि कहकर नैवेद्य चढ़ाये
आचमनीयां समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर आचमन करे
ताम्बूलं समर्पयामि कहकर पान का पूरा पत्ता चढ़ाये और अंत में
दक्षिणां समर्पयामि कहकर सुपारी व कुछ पैसे चढ़ाये
इसके बाद हाथ जोड़कर वरुण देवता को नमस्कार कर लेवे।

वरुण देवता पूजन विधि मन्त्र सहित

पूजास्थल पर रखी प्रत्येक वस्तु अथवा सामग्री को पवित्र करने के लिए जल से पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश पर रोली स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली बाँध दें। फिर कलश रखने के स्थान पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर भूमि को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

ॐ भूरसि भूमिरसि अदितिरसि
विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धार्त्री ।

पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ(गुँ)ह
पृथ्वीं मा हि(गुँ)सीः॥

इसके बाद सप्तधान्य या गेहूँ, अक्षत उस स्थान पर अर्पित करने के बाद कलश को उस पर स्थापित करें। स्थापना के समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है :-

ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्वन्दनवः ।
पुनरुर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं
धुक्ष्वोरुधारा पयस वती पुनर्मा विशताद्रयिः ॥

इसके बाद कलश में जल भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें :-

ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य
स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य
ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदन्मसि
वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ।

इसके साथ कलश में चंदन, सर्वोषधि (मुरा, जटामांसी, वच, कुष्ठ, हल्दी, दारु हल्दी, सठी, चम्पक, मुक्ता आदि), दूब, पंचपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकर) और सप्तमृत्तिका (घुड़साल, हाथी खाना, बांबी, संगम नदियों की मिट्टी, तालाब, गौशाला और राजमहल के द्वार की मिट्टी) यदि आराधक सप्त जगह की मिट्टी एकत्र न कर पाए तो सुपारी और पंच रत्न आदि जल कलश में डाल सकते हैं। इसके बाद कलश पर चावल का पात्र रखकर लाल वस्त्र से लपेटा नारियल रखना चाहिए। अब वरुण देवता का स्मरण करते हुए आह्वान करें

ॐ भूर्भुवः स्वः भो वरुण इहागच्छ,
इहतिष्ठ, स्थापयामि पूजयामि।

अक्षत और पुष्प हाथ में लेकर उच्चारण करें :-

ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।

इसके बाद अक्षत और पुष्प वरुण देवता को अर्पित कर दें।

अब कलश के जल में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :-

कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥

कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः ।
अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥

कावेरी कृष्णवेणी च गंगा चैव महानदी ।
ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥

नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।
पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥

सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः ।
आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः ॥

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा ॥

आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः ।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥

नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्‌ सन्निधिं कुरु ।
नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधनाथाय नमो नमस्ते ॥

ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्य

‘ कृतेन अनेन पूजनेन कलशे
वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।’

गणपति देवता पूजा मंत्र

सरल भाषा मे गणपति देवता पूजन विधि

श्री गणेश जी महाराज का आव्हान करे, इसके लिये हाथ जोड़कर यह दोहा बोले
सिद्धि सदन गजवदनवर, प्रथम पूज्य गणराज।
प्रथम वंदना आपको, आय सुधारो काज।।

अब गणेश जी की मूर्ति या थाल में साथिये पर श्री गणेश जी महाराज का पूजन इस प्रकार करे
स्नानं समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर स्नान करवाये
वस्त्रं समर्पयामि कहकर मोली चढ़ाये
गन्धकं समर्पयामि कहकर रोली के छींटे देवे
अक्षतं समर्पयामि कहकर चावल चढ़ाये
धूपंघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये
दीपकं दर्शयामि कहकर दीपक दिखाये
नैवेद्यम समर्पयामि कहकर नैवेद्य चढ़ाये
आचमनीयां समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर आचमन करे
ताम्बूलं समर्पयामि कहकर पान का पूरा पत्ता चढ़ाये और अंत में
दक्षिणां समर्पयामि कहकर सुपारी व कुछ पैसे चढ़ाये


इसके बाद हाथ जोड़कर गणपति देवता को नमस्कार कर यह दोहा बोले
जय गणपति गिरजा सुवन, रिद्धि सिद्धि दातार।
कष्ट हरो मंगल करो, नमस्कार शत बार।

षोडशमातृका पूजा

सरल भाषा मे षोडशमातृका पूजन विधि

पूजा के थाल में बने त्रिशुल पर या पाटे पर बनी षोडशमातृका पर अक्षत चढ़ाकर दोहा बोलते हुए नमस्कार कर षोडशमातृका का आव्हान करे
बेग पधारो गेह मम, सोलह माता आप।
वंश बढ़े पीड़ा कटे, मिटे शोक संताप।।

अब जहाँ षोडशमातृका बनी है उस पर षोडशमातृका का पूजन इस प्रकार करे
स्नानं समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर स्नान करवाये
वस्त्रं समर्पयामि कहकर मोली चढ़ाये
गन्धकं समर्पयामि कहकर रोली के छींटे देवे
अक्षतं समर्पयामि कहकर चावल चढ़ाये
धूपंघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये
दीपकं दर्शयामि कहकर दीपक दिखाये
नैवेद्यम समर्पयामि कहकर नैवेद्य चढ़ाये
आचमनीयां समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर आचमन करे
ताम्बूलं समर्पयामि कहकर पान का पूरा पत्ता चढ़ाये और अंत में
दक्षिणां समर्पयामि कहकर सुपारी व कुछ पैसे चढ़ाये

इसके बाद हाथ जोड़कर षोडशमातृका को नमस्कार कर लेवे। इसके बाद पुनः यह दोहा बोल कर नमस्कार करे।
सोलह माता आपको, नमस्कार शतबार।
पुष्टि तुष्टि मंगल करो, भरो अखंड भण्डार।।

नवग्रह देवता पूजा मंत्र

सरल भाषा मे नवग्रह देवता पूजन विधि

पूजा के थाल में कुमकुम की नौ बिंदियो पर या पाटे पर बने नवग्रह देवता पर अक्षत चढ़ाकर यह दोहा बोलते हुए नवग्रहों का आव्हान करे ।
रवि शनि मंगल बुध गुरु, शुक्र शनि महाराज।
राहु केतु नव गृह नमो, सकल सवारों काज।।

अब थाल में कुमकुम की नौ बिंदियो पर या पाटे पर बने नवग्रह देवता का पूजन इस प्रकार करे
स्नानं समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर स्नान करवाये
वस्त्रं समर्पयामि कहकर मोली चढ़ाये
गन्धकं समर्पयामि कहकर रोली के छींटे देवे
अक्षतं समर्पयामि कहकर चावल चढ़ाये
धूपंघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये
दीपकं दर्शयामि कहकर दीपक दिखाये
नैवेद्यम समर्पयामि कहकर नैवेद्य चढ़ाये
आचमनीयां समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर आचमन करे
ताम्बूलं समर्पयामि कहकर पान का पूरा पत्ता चढ़ाये और अंत में
दक्षिणां समर्पयामि कहकर सुपारी व कुछ पैसे चढ़ाये

इसके बाद हाथ जोड़कर नवग्रह देवता को नमस्कार कर लेवे। इसके बाद पुनः यह दोहा बोल कर नमस्कार करे।
हे नवग्रह तुमसे करुँ, बिनती बारम्बार।
मैं तो सेवक आपका, रखो कृपा अपार।।

महालक्ष्मी पूजन विधि

सरल भाषा मे महालक्ष्मी पूजन विधि

श्री महालक्ष्मी जी के चित्र या मूर्ति पर अक्षत चढ़ाते हुए महालक्ष्मी जी का आह्वान व नमस्कार करते हुए यह दोहा बोले-

जय जग जननी जय रमा, विष्णु प्रिया जगदम्ब।
बेग पधारो गेह मम, करो न मातु विलम्ब॥
पाट बिराजो मुदितमन, भरो अखंड भण्डार।
भक्ति सहित पूजन करू, करो मातु स्वीकार॥

अब हाथ जोड़कर जल से अर्घ देवे व पुष्प चढ़ावे

स्नानं समर्पयामि कहते हुए जल से स्नान करावें।
दुग्ध स्नानं समर्पयामि कहते हुए दूध से स्नान करावें।
शर्करा स्नानं समर्पयामि कहते हुए शक्कर से स्नान करावें।
पंचामृत स्नानं समर्पयामि कहते हुए पंचामृत से स्नान करावें।
पुनः जल स्नानं समर्पयामि कहते हुए जल से स्नान करावें।
वस्त्रं समर्पयामि कहकर मोली चढ़ाये।
गन्धकं समर्पयामि कहकर रोली के छींटे देवे।
अक्षतं समर्पयामि कहकर चावल चढ़ाये।
धूपंघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये।
दीपकं दर्शयामि कहकर दीपक दिखाये।
नैवेद्यम समर्पयामि कहकर नैवेद्य चढ़ाये।
आचमनीयां समर्पयामि कहकर जल के छींटे देकर आचमन करे।
ताम्बूलं समर्पयामि कहकर पान का पूरा पत्ता चढ़ाये और अंत में।
दक्षिणां समर्पयामि कहकर सुपारी व कुछ पैसे चढ़ाये।

अब हाथ जोड़कर या दोहा बोलते हुए प्रणाम करे
विष्णु प्रिया सागर सुता जान जीवन आधार।
गेह वास मेरे करो नमस्कार शाट बार॥

बहीखाता कलम दवात पूजा मंत्र

सरल भाषा मे बहीखाता कलम दवात पूजन विधि

पाटे पर रखे दवात, कलम व बही खाते पर अक्षत चढ़ाकर यह मन्त्र बोलते हुए सरस्वती माता का आव्हान करे। कलम के मोली बांधकर नीचे लिखा ध्यान करके महालक्ष्मीजी के सामने रखकर पूजन करे।

ॐ शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ लेखिन्यै नमः॥

कृष्णानने द्विजिह्वे च चित्रगुप्तकरस्थिते ।
सदक्षराणां पत्रेषु लेख्यं कुरु सदा मम ॥

बही, बसना आदि में रोली से साठिया मांडकर तथा बही में पूजा वृत लिखवाकर बहियो पर पान रखकर के मोली बांधकर नीचे लिखा ध्यान करके महालक्ष्मीजी के सामने रखकर पूजन करे।

या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृति भिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

लक्ष्मी जी की व्रत कथा 1

एक गांव में एक विधवा रहती थी। उसके सात बेटे थे इन सात में से छ: बेटो की शादी हो चुकी थी। सबसे छोटा बेटा कुंवारा था। सातवें बेटे के लिये बहुत दूर देश से चतुर व सुन्दर कन्या बहु के रूप में आई। बहु के आने के बाद जब दीपावली आने वाली थी तो उस छोटी बहु ने झाड़ बुहार कर पूरा घर साफ़ किया और रंगोली बनाकर सुन्दर बना दिया। आँगन व कमरों में तरह-तरह के मांडने माडे।

बाकी छ: बहुए व सास इन सब कामो को समझती नहीं थी। छोटी बहु से पूछा गया तो उसने समझाया ये दिवाली की तैयारी है। ठीक कार्तिक अमावस्या को सबसे छोटी बहु ने लक्ष्मी जी का रथ मांडा व द्वार देहरी पर मंडे मांडनो पर दीये जलाकर रख दिये। हर कमरे में भी उसने ऐसा ही किया। अमावस्या की अंधेरी रात में लक्ष्मी जी भागती भटकती लहू लुहान पाँव लेकर इस घर के सामने उजाला देखकर रथ में विश्राम करने विराज गई।

सातवीं बहु ने जहाँ-जहाँ लक्ष्मी जी का रक्त लगा वहाँ-वहाँ सफ़ेद पाण्डु से तरह-तरह की भरत भरदी। लक्ष्मी जी ने पूछा बेटी ये तुम क्या कर रही हो। छोटी बहु ने उतर दिया माँ आपने मेरा आँगन पूर दिया है, कोर दिया है, मैं उसे भर रही हूँ। जब तक मैं ये भरत भर्ती हूँ आप आराम कीजिये। लक्ष्मी जी समझ गई कि छोटी बहु यह भरत कभी पूरी नहीं करेगी और मांडने अनंत काल तक मांडते रहेगे।

लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उस परिवार को समृद्धि का वरदान दिया और समय – समय पर उसके घर आने का वचन देकर रथ में सवार होकर विष्णु भगवान के पास चली गई। जाते -जाते दोनों पावों की छाप ‘पगल्ये’ उस घर पर बनाकर कहा – जब तक ये चिन्ह यहाँ बने रहेगे, मैं किसी ना किसी रूप में इस घर में स्थिर रहूंगी। इसके बाद उस घर व गाँव में दीपावली का त्यौहार नियमित मनाया जाने लगा।

लक्ष्मी जी की व्रत कथा 2

एक बार धर्मराज पुत्र युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि- हे प्रभु आप हमे कोई ऐसा उपाय बताये कि जिससे हमे हमारा खोया हुआ राज्य तथा वैभव पुनः प्राप्त हो जाये।
श्री कृष्ण बोले हे राजा ! पहले दैत्य नगरी के एक राजा हुए थे जो मेरे परम भक्त थे। उनके राज्य में प्रजा पूर्ण सुखी थी। एक बार उन्होने एक सौ अश्वमेघ यज्ञ करने कि प्रतिज्ञा की और 99 यज्ञ करवा भी लिये। जब वे अंतिम 100वाँ यज्ञ करने लगे तो राजा इंद्र को अपने इन्द्रासन के छिन जाने का भय सताने लगा क्योकि 100 अश्वमेघ यज्ञ करने वाला इन्द्रासन का अधिकारी हो जाता है।

इसी भय से भयभीत होकर इंद्र ब्रह्मा, रूद्र आदि सभी देवताओ के पास पहुंचे किन्तु अश्वमेघ यज्ञ को रोकने का उपाय कोई नहीं बता सका। तब इंद्र सारे देवताओ के साथ क्षीर सागर पहुंचे जहां भगवान विष्णु शेष शैया पर सो रहे थे और वेद मंत्रो से भगवान की स्तुति करने लगे तथा अपना सारा दुःख और आने का कारण भी बताया।

भगवान बोले हे इंद्र तुम घबराओ मत मैं तुम्हारे इस डर को अवश्य ही मिटाऊंगा। यह सुनकर इंद्र तो इंद्रलोक लौट गये और भगवान विष्णु उधर वामन अवतार धारण करके राजा बलि के द्वार पहुंचे जहां 100वाँ अश्वमेघ यज्ञ हो रहा था।

राजा बलि जहां सभी को मुँह मांगी दान दक्षिणा दे रहे थे, वहां वामन जी भी राजा के सम्मुख पहुंचे और राजा से 3 पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने संकल्प दिया और भगवान भूमि नापने लगे। छोटे से वामन जी ने विशाल रूप धरा और एक ही पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे पग में पूरे आकाश को नाप लिया, अब बलि के पास देने को कुछ नहीं बचा था, तो उन्होने कर्तव्य परायण होकर स्वयं को प्रस्तुत करा और तीसरे व अंतिम पग को वामन जी ने राजा बलि के ऊपर रखा, वामन भगवान राजा बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए और बलि को पाताल-लोक का स्वामित्व देने का निश्चय किया।

अपना सिंघासन बचने की ख़ुशी में इंद्र आदि देवताओ ने दीपावली पर्व को धूम धाम से मनाया था।

लक्ष्मी जी की आरती

लक्ष्मी जी की संपूर्ण आरती के लिए यहां क्लिक करें

पूजा उपरांत रात्रि मे सभी निम्नलिखित मंत्रो का जाप भक्त भावना से करते है तो माता लक्ष्मी की कृपा उनको जरूर प्राप्त होती है।

लक्ष्मी चालीसा

जय जय जय श्री लक्ष्मी माता।
जय सुख करनी भाग्य विधाता।।
रतनाकर है पिता तुम्हारे।
सुर नर मुनि जयकार उचारे।।
क्रीट मुकुट सिर पर अति सोहै।
गल वनमाला अति मन मोह।।
रूप चतुर्भुज पर बलिहारी।
जग मोहिनी है मूर्ति तुम्हारी।।


वाहन है तव उलूक प्यारे।
कमल पुष्प दोहु कर में धारे।।
गज पर चढ़ सुख सम्पति भरती।
चढ़ी उलूक दुःख दारिद हरती।।
आद भवानी तुम जग जननी।
संकट कष्ट पाप सब हरनी।।
हे जगदम्ब अम्ब सुख दाता।
निज जन की तू भाग्य विधाता।।


तुं ही नव दुर्गा कहलाई।
कष्ट हरण करके पुजवाई।।
ब्रह्मा ढिग बानी कहलाती।
विष्णु ढिग लक्ष्मी बन जाती।।
शिव के ढिग गिरिजा सुकुमारी।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी।।
रघुवर संग सीता कहलाई।
कृष्ण संग राधे बन आई।।


ब्रह्म के संग शक्ति स्वरूपा।
तव महिमा है अगम अनूपा।।
रिद्धि सिद्धि अन्न धन की दाता।
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता।।
नमो नमो भुवनेश्वरी माता।
नमो नमो सुख सम्पति दाता।।
नमो नमो मुद मंगल करनी।
नमो नमो संकट दुःख हरनी।।


नमो नमो भक्तन हित कारी।
मैं शरणागत मात तुम्हारी।।
तेरी महिमा सकल बखाने।
सर्व श्रेष्ठ तुमको सब माने।।
ब्रह्मा विष्णु तुमको सब ध्यावे।
नेति नेति वेदन में गावै।।
जा पर कृपा तुम्हारी होइ।
उसको नमन करे सब कोई।।


जो जन तेरी भक्ति करहीं।
निशि दिन ध्यान तुम्हारा धरिहीं।।
सो दुःख दारिद से छूट जावे।
बन धनपति जग यश फेलावै ।।
जो चित मन से पूजा करहीं।
ताके सारे काज सरहीं।।
सर्व स्वरूपा अरु कल्याणी।
धन सम्पति दाता सुख खानी।।


रवि सम उज्जवल शिव की दाता।
विष्णु स्वरूपा विश्व विधाता।।
सतोगुणी शिव रूपा माता।
तुम हो अभीष्ट फल की दाता।।
स्वर्ण वर्ण वपु चंद्र उजासा।
रक्त वस्त्र मेटत जग त्राता।।
उभय हस्त में कमल बिराजै।
तीजे में अंकुश छवि छाजे।।


अभय मुद्रा है चतुर्थ मांहि।
ध्यान धरे दुःख रहवे नाहिं।।
श्रीं ह्रीं श्रीं कमले सुख खानी।
कमलालये प्रसीद भवानी।।
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मि नमः त्वम्।
तव शरणागत मातेश्वरी हम।।
जो तव ध्यान धरे चित लाई।
अन्न धन महिमा बढ़े सवाई।।


जय जय जय त्रिभुवन कल्याणी।
कृपा करो लक्ष्मीं महारानी।।
पढ़े सुने जो यह चालीसा।
नाशहि दारिद कष्ट कलेशा।।
पाठ करे नित जो चित लाई।
अन्न धन महिमा बढ़े सवाई।।
जो जन शरण मातु की आवे।
वो सपने नहीं कष्ट उठावे।।


माता तुम जन जन हित कारी।
शरणागत मैं हुआ तुम्हारी।।
कष्ट हरो पुरो अभिलाषा।
यह मेरे मन दृढ़ विशवासा।।
मैं हूँ शरणागत तेरे।
कारज सिद्ध करहु माँ मेरे।।

जयति जयति मातेश्वरी, सहस्त्र वंदना तोय।
सुख सम्पति वरदान दो, दास जानकर मोय।।

कनक धारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

अथ लक्ष्मी जी का ध्यान

श्री कनकधारा स्तोत्रम् का पाठ करने से पहले सर्वप्रथम निम्नलिखित पांच श्लोको का पाठ करते हुए लक्ष्मीजी को नमस्कार करके ही स्त्रोत का पाठ प्रारम्भ करे

यत्कटाक्ष – समुपासनाविधि: सेवकस्य सकलार्थ-सम्पद: ।

सन्तनोति वचनाङ्ग-मानसै: त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥ 

 पूज्यपाद आदि शंकराचार्य-प्रणीत, आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित

॥ श्री कनकधारा स्तोत्रम् ॥

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन ( दीनहीन ) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।


संकटनाशक गणेश स्त्रोत Sankata Nashak Ganesh Stotra

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकम् ।

भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

लंबोदरं पंचम च षष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद् गपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा य: समर्पयेत ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणेश स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

खंडन

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’


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