Shukravar Vrat Vidhi Katha Friday Vrat शुक्रवार व्रत की सम्पूर्ण विधि, कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस दिन संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा की जाती है । यह व्रत करने से शुक्र देवता अति प्रसन्न होते है। यह व्रत करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। इस व्रत को करने वाला कथा के पूर्व कलश को जल से पूर्ण भरे, उसके ऊपर गुड़ व चने से भरी कटोरी रखे, कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने चने अवश्य रखे । सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद वस्त्र तथा सफ़ेद चन्दन से शुक्र भगवान की पूजा करनी चाहिए।
शुक्रवार का व्रत 31 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। सफ़ेद वस्तु का दान भी करना चाहिए।
Shukravar Vrat Vidhi शुक्रवार व्रत कैसे करे (शुक्रवार व्रत की विधि)
- शुक्रवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
- पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। शुक्र देव की पूजा के लिये जल, सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद वस्त्र तथा सफ़ेद चन्दन, फल, सफ़ेद मिष्ठान, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है। संतोषी माता की पूजा के लिये जल, गुड़, भुना चना, नारियल(श्री फल), कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
- पूजन का समय: सुबह के समय दिन के तीसरे प्रहर तक संतोषी माता और शुक्र देव का पूजन कर लेना चाहिए।
- मंत्र जाप: पूजा के समय शुक्र ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
- शुक्रवार व्रत में नमक रहित चावल, चीनी, दूध, दही, बेसन, चना दाल और घी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। प्रातः पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है।
- पूजन के अंत में संतोषी माता की और शुक्र देव की आरती जरूर करें।
- शुक्र पूजन के पश्यात शुक्रवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
- शुक्रवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री शुक्र कवचं, श्री शुक्र स्तुति और शुक्र स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
- शुक्रवार व्रत में महिलाओ को संतोषी माता का भी पूजन जरूर करना चाहिए
Shukravar Vrat Rules शुक्रवार व्रत के नियम
- शुक्रवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन इस दिन पूर्ण वर्जित होता है।
- पूरे दिन में भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व शुक्र देव का पूजन कर लेना चाहिए।
- श्री शुक्र कवचं, श्री शुक्र स्त्रोत, श्री शुक्र स्तुति का पाठ और शुक्र मन्त्र की 21, 11 या 5 माला जरूर करें।
- शुक्रवार व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
- आपके नजदीक जो भी शुक्र या संतोषी माता मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए।
- शुक्र ग्रह का राशि-भोग काल: शुक्र ग्रह एक माह में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर एक माह तक रहता है।
- शुक्र ग्रह की दृष्टि: शुक्र ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे तथा दसवें भाव को ‘एक पाद’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से तथा पांचवे तथा नवे भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ से देखता है।
- शुक्र ग्रह की जाति: शुक्र ग्रह की जाति ‘ब्राह्मण’ जाति है।
- शुक्र ग्रह का रंग: शुक्र ग्रह का रंग ‘श्वेत(सफ़ेद) रंग’ होता है।
- शुक्र ग्रह ‘वीर्य अर्थात काम’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
- शुक्र ग्रह ‘शुभ ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
- शुक्र शान्त्यर्थ रत्न : हीरा
- शुक्र ग्रह की दान वस्तुएँ: चित्राम्बर, धेनु, श्वेत घोडा, हीरा, सोना, चाँदी, चावल, श्वेत धान्य, श्वेत वस्त्र, सफ़ेद चन्दन, शंख, दही, मिश्री, बुरा, श्वेत पुष्प, धृत और सुगंध। शुक्रवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल सूर्योदय का रहता है।
Shukravar Vrat Mantra शुक्रवार व्रत का मंत्र
शुक्र ग्रह की जप संख्या: शुक्र ग्रह की जप संख्या 16000 या 11000 जप की होती है।
शुक्र मन्त्र – ॐ शुं शुक्राय नमः ।
शुक्र ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः
माला संख्या- शुक्र मन्त्र की 21, 11 या 5 माला की जाती है ।
Shukravar Vrat Significance शुक्रवार व्रत का महत्त्व या फायदे
- शुक्रवार का व्रत करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
- ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र मज़बूत होता है, उसे कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी महसूस नहीं होती।
- शुक्रवार का व्रत करने से उसे समाज में बहुत सम्मान मिलता है। नौकरी में तरक्की और व्यापार-व्यवसाय में खूब पैसा मिलता है।
- जिस किसी की कुंडली में शुक्र की दृष्टि कमजोर हो उसे शुक्रवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका शुक्र मजबूत होता है ।
- शुक्रवार के दिन संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा-अर्चना करने से शुक्र मजबूत होगा जिससे धन और समृद्धि मिलने में सहायता मिलती है ।
- यह व्रत करने से शुक्र भगवान अति प्रसन्न होते है तथा अन्न, धन का लाभ तथा रूपवती पत्नी प्राप्त होती है।
- पुरुष की कुंडली में पत्नी ही शुक्र रूप में रहती है, यह व्रत करने से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
- सभी को जीवन में धन और सुख की लालसा होती है और शुक्र ग्रह ‘वीर्य अर्थात काम‘ का अधिष्ठाता ग्रह है। तो जिस किसी को धन और सुख चाहिए वो शुक्रवार का व्रत जरूर करे।
Shukravar Vrat Aarti शुक्रवार व्रत की आरती( शुक्र भगवान की आरती) Shukr Bhagwan ki Aarti
संतोषी माता की आरती
संतोषी माता की आरती के लिये लिंक पर क्लिक करे
शुक्र देव की आरती
आरती लक्ष्मण बलजीत की ||
असुर संहारण प्राण पति की ||
जग भग ज्योति अवधपुरी राजे ||
शेषाचल पे आप विराजे ||
तिन लोक जाकी शोभा राजे ||
कंचन थार कपूर सुहाई |
आरती करत सुमित्रा माई ||
आरती कीजै हरी की तैसी |
धुर्व प्रहलाद विभीषन जैसी ||
प्रेम मग्न होय आरती गावे |
बसि बैकुण्ठ परम् पद पावे ||
आरती लक्ष्मण बलजीत की ||
असुर संहारण प्राण पति की ||
Shukravar Vrat Katha शुक्रवार व्रत की कथा(शुक्रवार व्रत की पौराणिक कथा)
शुक्रवार व्रत की कथा 1
एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया छहों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह सातवें को दे देती।
एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी माँ को मुझ पर कितना प्रेम है।
वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है।
वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आँखों से न देख लूं मान नहीं सकता।
बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।
कुछ दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जमाया। वह देखता रहा।
छहों भोजन करके उठे तब माँ ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया।
जूठन साफ कर बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा।
वह कहने लगा- माँ मुझे भोजन नहीं करना, मैं अब परदेश जा रहा हूँ।
माँ ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा।
वह बोला- हाँ आज ही जा रहा हूँ। यह कह कर वह घर से निकल गया।
सातवें बेटे का परदेश जाना-
चलते समय पत्नी की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे (उपले) थाप रही थी।
वहाँ जाकर बोला-
हम जावे परदेश आवेंगे कुछ काल,
तुम रहियो संतोष से धर्म आपनो पाल।
वह बोली-
जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय,
राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।
दो निशानी आपन देख धरूं में धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।
वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे।
वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुँचा।
परदेश मे नौकरी-
वहाँ एक साहूकार की दुकान थी। वहाँ जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो।
साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा।
लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे।
साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया।
सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया।
पति की अनुपस्थिति में सास का अत्याचार-
इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।
संतोषी माता का व्रत-
वह वहाँ खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है। यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी।
तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी।
संतोषी माता व्रत विधि-
वह भक्तिनि स्त्री बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना।
तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना, जहाँ तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में खटाई न खाना। यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी।
व्रत का प्रण करना और माँ संतोषी का दर्शन देना-
रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है।
सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी।
दीन हो विनती करने लगी- माँ मैं निपट अज्ञानी हूँ, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूँ। हे माता ! जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूँ।
माता को दया आई- एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुँचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे।
लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी।
बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कह कर आँखों में आँसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। माँ मैंने तुमसे पैसा कब माँगा है।
मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन माँगती हूँ। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा- जा बेटी, तेरा स्वामी आयेगा।
यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी। अब संतोषी माँ विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया कि तेरा पति आयेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता।
उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है।
वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूँ कहो क्या आज्ञा है?
माँ कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं।
वह बोला- मेरे पास सब कुछ है माँ-बाप है बहू है क्या कमी है।
माँ बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे माँ-बाप उसे परेशानी दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले।
वह बोला- हाँ माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं?
माँ कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ।
देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहाँ काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।
उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता! यह धूल कैसे उड़ रही है?
माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर।
तेरे पति को लकड़ियों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहाँ रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर माँ से मिलने जाएगा, तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर जाना और चौक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा।
इतने में मुसाफिर आ पहुँचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गाँव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गाँव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकड़ियों का भारी बोझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।
यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है।
माँ से पूछता है- माँ यह कौन है?
माँ बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गाँव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है।
वह बोला- ठीक है माँ मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूँगा।
माँ बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।
शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल-
उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है।
पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई माँगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो।
लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है।
वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।
लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहू कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए।
लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकट्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहू से यह सहन नहीं हुए।
माँ संतोषी से माँगी माफी-
रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता! तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी।
माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है।
वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैंने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूँगी।
माँ बोली- अब भूल मत करना।
वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे?
माँ बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला।
वह पूछी- कहाँ गए थे?
वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने माँगा था, वह भरने गया था।
वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया..
फिर किया व्रत का उद्यापन-
वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है।
पति ने कहा- करो, बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई माँगना।
लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।
वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।
संतोषी माता का फल-
माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी।
माँ ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।
देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे।
बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा।
वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में माँ के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।
वह बोली- माँ मैं जिसका व्रत करती हूँ यह संतोषी माता है।
सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
बोलो संतोषी माता की जय।
शुक्रवार व्रत की कथा 2
एक समय की बात है। एक नगर में कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य जाति के तीनों लड़कों में परस्पर गहरी मित्रता थी। उन तीनों का विवाह भी हो गया था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गोना भी हो गया था। परंतु वैश्य के लड़के का गोना नहीं हुआ था। एक दिन का कायस्थ के लड़के ने वैश्य के लड़के से कहा कि ‘है मित्र तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते। स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है। यह बातें वैश्य के लड़के को जच गई वह कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा लेकर आता हूं।
ब्राह्मण के लड़के ने कहा अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र अस्त हो गया है। जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना। परंतु वैश्य के लड़के को ऐसी जिद हो गई, वह किसी प्रकार से नहीं माना। जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया। परंतु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपने ससुराल चला गया। उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराए, जामाता का स्वागत सत्कार करने के बाद उन्होंने पूछा कि आपका कैसे आना हुआ। वैश्य पुत्र बोला कि मैं पत्नी को विदा करने के लिए आया हूं।
ससुराल वालों ने भी उसे बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र अस्त है, उदय होने पर ले जाना परंतु उसने एक न सुनी और पत्नी को ले जाने का आग्रह करता रहा। जब वह किसी भी प्रकार ना माना तो, उन्होंने लाचार होकर अपनी पुत्री को विदा कर दिया। वैश्य पुत्र पत्नी को एक रथ में बिठाकर अपने घर की ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूटकर गिर गया और बैल का पूरा पैर टूट गया। उसकी पत्नी भी गिर गई और घायल हो गई। जब आगे चले तो रास्ते में डाकू मिले उसके पास जो धन, वस्त्र तथा आभूषण थे। वह सब उन्होंने छीन लिए।
इस प्रकार अनेक कष्ट का सामना कर जब पति-पत्नी अपने घर पहुंचे, तो घर आते ही वैश्य के लड़के को सर्प ने काट लिया। वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। तब उसकी स्त्री अत्यंत विलाप कर रोने लगी। सेठ ने अपने पुत्र को वैद्य को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे, यह तीन दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को सारी बात पता लगी तो उसने घर आकर कहा सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार जिस समय शुक्र अस्त हो तो कोई भी अपनी स्त्री को नहीं लाता। परंतु यह शुक्र के अस्त में भी स्त्री को विदा करा कर ले आया। इस कारण सारे विघ्न उपस्थित हुए हैं।
यदि यह दोनों ससुराल वापस चले जाए और शुक्र के उदय होने पर पुनः आवे तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है। सेठ ने अपने पुत्र और उसकी पत्नी को शीघ्र ही उसके ससुराल वापस पंहुचा दिया।
वहां पहुंचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दूर हो गई और साधारण उपचार से ही सर्प-विष से मुक्त हो गया। अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए। वैश्य पुत्र अपने ससुराल में स्वास्थ्य लाभ करता रहा और जब शुक्र का उदय हुआ। तब हर्ष पूर्वक उसके ससुराल वालों ने उसको अपनी पुत्री सहित विदा किया। इसके पश्चात पति-पत्नी दोनों घर आकर आनंद से रहने लगे। शुक्रवार व्रत को करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं। शुक्र देव की कृपा से सब मंगल होता है।
Shukra Kavacham श्री शुक्र कवचं
विनियोग – अस्य शुक्रकवचस्तोत्र मन्त्रस्य, भारद्वाज ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥
अथ श्रीशुक्र कवचम्
मृणालकुन्देन्दुषयोजसुप्रभं
पीतांबरं प्रस्रुतमक्षमालिनम् ।
समस्तशास्त्रार्थनिधिं महांतं
ध्यायेत्कविं वांछितमर्थसिद्धये ॥
ॐ शिरो मे भार्गवः पातु भालं पातु ग्रहाधिपः ।
नेत्रे दैत्यगुरुः पातु श्रोत्रे मे चन्दनदयुतिः ॥
पातु मे नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवन्दितः ।
जिह्वा मे चोशनाः पातु कंठं श्रीकंठभक्तिमान् ॥
भुजौ तेजोनिधिः पातु कुक्षिं पातु मनोव्रजः ।
नाभिं भृगुसुतः पातु मध्यं पातु महीप्रियः॥
कटिं मे पातु विश्वात्मा ऊरु मे सुरपूजितः ।
जानू जाड्यहरः पातु जंघे ज्ञानवतां वरः ॥
गुल्फ़ौ गुणनिधिः पातु पातु पादौ वरांबरः।
सर्वाण्यङ्गानि मे पातु स्वर्णमालापरिष्कृतः ॥
य इदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धयान्वितः ।
न तस्य जायते पीडा भार्गवस्य प्रसादतः ॥
|| इति श्री ब्रह्माण्ड पुराणे शुक्र कवचम् सम्पूर्णम् ||
श्री शुक्र स्तुति Shri Shukra Stuti
शुक्र देव पद तल जल जाता।दास निरन्तन ध्यान लगाता॥
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन।दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन॥
भृगुकुल भूषण दूषण हारी।हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी॥
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा।नर शरीर के तुमहीं राजा॥
Shukra Stotram श्री शुक्र स्त्रोत्रं
विनियोग – अस्य शुक्रस्तोत्रस्य प्रजापतिऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥
शुक्रः काव्यः शुक्ररेता शुक्लाम्बरधरः सुधीः ।
हिमाभः कुन्तधवलः शुभ्रांशुः शुक्लभूषणः ॥ १॥
नीतिज्ञो नीतिकृन्नीतिमार्गगामी ग्रहाधिपः ।
उशना वेदवेदाङ्गपारगः कविरात्मवित् ॥ २॥
भार्गवः करुणाः सिन्धुर्ज्ञानगम्यः सुतप्रदः ।
शुक्रस्यैतानि नामानि शुक्रं स्मृत्वा तु यः पठेत् ॥ ३॥
आयुर्धनं सुखं पुत्रं लक्ष्मींवसतिमुत्तमाम् ।
विद्यां चैव स्वयं तस्मै शुक्रस्तुष्टोददाति च ॥ ४॥
इति श्रीस्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
शुक्रवार व्रत में यह ध्यान रखें:
- गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
- व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।
FAQ
शुक्रवार व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?
शुक्रवार व्रत को पूरे दिन में संतोषी माता या शुक्र देव की पूजा करने के बाद कभी भी खोला जा सकता है । भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए। चावल, चीनी, दूध, दही, बेसन, चना दाल और घी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए।