Tyohaar – PrabhuPuja https://prabhupuja.com Sanatan Dharma Gyan Sat, 05 Oct 2024 09:50:35 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://i0.wp.com/prabhupuja.com/wp-content/uploads/2024/07/cropped-prabhupuja_site_icon-removebg-preview-1.png?fit=32%2C32&ssl=1 Tyohaar – PrabhuPuja https://prabhupuja.com 32 32 214786494 Raksha Bandhan Fastival रक्षा बंधन का त्यौहार https://prabhupuja.com/raksha-bandhan-fastival/ https://prabhupuja.com/raksha-bandhan-fastival/#respond Sun, 18 Aug 2024 16:43:23 +0000 https://prabhupuja.com/?p=4932

Raksha Bandhan Fastival रक्षा बंधन का त्यौहार, हिंदुओं के चार प्रसिद्ध त्यौहार में से एक रक्षाबंधन का त्यौहार है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे नारियली पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन श्रावण मास का शिव पूजन पूर्ण होता है। यह मुख्यतया भाई बहन के स्नेह का त्यौहार है। रक्षाबंधन त्यौहार भाई बहन को स्नेह की डोर में बांधे रखता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और माथे पर तिलक लगाती हैं और उसके जीवन की मंगल कामना करती है। भाई भी प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति में अपनी बहन की रक्षा करूंगा। इस दिन घर के प्रमुख द्वारों के दोनों ओर श्रवण कुमार के चित्र लगाकर खीर से पूजा की जाती है। भगवान के द्वार पर, बक्से पर, जल कलश पर भी राखी बांधते हैं। ब्राह्मण लोग यजमान के राखी बांधते हैं ।

पौराणिक समय में राखी के प्रसंग(पुराने समय में राखी कब-कब बाँधी गई)

राखी बांधने का प्रथम प्रसंग

एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था। तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बंधी थी। इसी बंधन से ऋणी श्री कृष्ण ने दुशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रोपदी की लाज बचाई थी।

राखी बांधने का दूसरा प्रसंग

मध्यकालीन इतिहास में कैसे घटना मिलती है। जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास रखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया था।

राखी बांधने का तीसरा प्रसंग

प्राचीन समय में एक बार देवता और दानवों में 12 वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोको को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैत्यों के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं के राजा इंद्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल रक्षा का विधान संपन्न किया गया।

‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥’

उक्त मंत्रोचार से गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया। सह धर्मिणी इंद्राणी के साथ वत्र संहारक इंद्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरश पालन किया। इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।

राखी बांधने का चौथा प्रसंग

राजा बलि के यहाँ जब भगवान वामन रूप धरकर आए थे और उन्होंने तीन पग भूमि मांग कर, धरती, आकाश और पाताल तीनों को ही दो पद में माप लिया और तीसरा पग राजा बलि के ऊपर रखा। फिर राजा बलि से कुछ मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप मेरे यहां पाताल में चार माह तक पहरेदार बनकर रहेंगे। ऐसा वरदान दीजिए। तब से ही भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को स्वर्ग में ही छोड़कर वर्ष में चार माह तक पहरेदार के रूप में राजा बलि के यहां रहने लगे। रक्षाबंधन के दिन श्री लक्ष्मी जी स्वर्ग से रिमझिम करती हुई राखी लेकर पधारी। राजा बलि को भाई बनाकर राखी बांधी। भतीजे और भाभी को भी राखी बांधी। तब रानी हीरे मोती का थाल भेंट स्वरूप लेकर आई। तो श्री लक्ष्मी जी बोली- “भाभी हीरे मोती तो मेरे घर में भी बहुत है। मैं तो बंधे हुए मेरे पति श्री विष्णु भगवान को छुड़ाने आई हूं। इस प्रकार लक्ष्मी जी श्री विष्णु भगवान को अपने साथ ले जाती हैं।

FAQ


Raksha Bandhan 2024: Date, Muhurat and Rituals

Purnima Tithi Ends:  On August 19 at 11:55 pm.

Raksha Bandhan Bhadra Tail: 9:51 am–10:53 am.

Raksha Bandhan Bhadra face: 10:53 am–12:37 pm.

Raksha Bandhan Bhadra End Time: 1:30 pm.

Time of Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–8:27 pm.

Afternoon Auspicious Time for Raksha Bandhan Celebration: 1:30 pm–3:39 pm.

Pradosh Period for Raksha Bandhan: 6:12 pm–8:27 pm.

Raksha Bandhan 2024: Rituals

The rituals start with applying the roli or kumkum tika to your brother’s forehead, then performing aarti. Now, you can tie the rakhi around the brother’s right wrist and also recite the prayers or wishes to God for his well-being, fortune, and overall good things.

After that, offer sweets to your brothers and exchange gifts. The festival then concludes with festive meals.

रक्षा बंधन 2024: तिथि, मुहूर्त और अनुष्ठान

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 अगस्त को रात 11:55 बजे.
रक्षा बंधन भद्रा पूंछ: सुबह 9:51 बजे से सुबह 10:53 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा मुख: सुबह 10:53 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक।
रक्षा बंधन भद्रा समाप्ति समय: दोपहर 1:30 बजे।
रक्षा बंधन उत्सव का समय: दोपहर 1:30 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन उत्सव के लिए दोपहर का शुभ समय: दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:39 बजे तक।
रक्षा बंधन के लिए प्रदोष काल: शाम 6:12 बजे से रात 8:27 बजे तक।
रक्षा बंधन 2024: अनुष्ठान अनुष्ठान की शुरुआत आपके भाई के माथे पर रोली या कुमकुम का टीका लगाने, फिर आरती करने से होती है। अब, आप भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांध सकती हैं और उसकी भलाई, भाग्य और समग्र अच्छी चीजों के लिए भगवान से प्रार्थना या कामना भी कर सकती हैं। इसके बाद अपने भाइयों को मिठाई खिलाएं और उपहारों का आदान-प्रदान करें। फिर उत्सव का समापन उत्सव के भोजन के साथ होता है।

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Basant Panchami बसंत पंचमी सरस्वती पूजा https://prabhupuja.com/basant-panchami/ https://prabhupuja.com/basant-panchami/#respond Tue, 13 Feb 2024 17:54:33 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2565

Basant Panchami 14 फरवरी 2024, बुधवार, बसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है। माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी का दिन ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना जाता है । साल 2024 में यह त्योहार 14 फ़रवरी, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन को मां सरस्वती का जन्मोत्सव माना जाता है। इस दिन लोग मां सरस्वती की पूजा करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लेते हैं।

शास्त्रों के मुताबिक, बसंत पंचमी के दिन ही भगवान ब्रह्मा के मन से मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए, छात्रों के लिए ज्ञान, बुद्धि, कला और संगीत की देवी – माता सरस्वती की पूजा करने का यह सबसे अच्छा दिन माना जाता है।

भारत में आज के दिन से एक नई ऋतु यानि बसंत ऋतु का आगमन होता है। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है। इस दिन को भारत में में प्रेम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

बसंत पंचमी के दिन स्फटिक की माला को अभिमंत्रित करके धारण करना भी शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन को इतना शुभ माना गया है कि आप पूरे दिन कोई भी शुभ काम कर सकते हैं। इस दिन किसी भी मुहूर्त पर विवाह करना, गृह प्रवेश करना या फिर बच्‍चे का नामकरण आदि करना सभी अच्छा रहता है। एक धार्मिक कथा के अनुसार इस दिन देवी रति और भगवान कामदेव की पूजा करने से पति-पत्‍नी के मध्य प्रेम बना रहता है।

बसंत पंचमी को क्या-क्या खाना चाहिए ?

  • बसंत पंचमी के दिन खीर जरूर बनाई जाती है और खाई जाती है।
  • बसंत पंचमी के दिन सभी घरो में पीले केसर के मीठे व नमकीन चावल घृत मिश्रित करके अग्नि को अर्पित करके भोग लगाते है और पितृ-तर्पण करते है।
  • गेहू और जौ की स्वर्णिम बालियाँ भगवान को अर्पित की जाती है।
  • इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है।

बसंत पंचमी को किन-किन देवताओ का पूजन करना चाहिए ?

सरस्वती पूजन

इस दिन को मां सरस्वती का जन्मोत्सव माना जाता है। इस दिन लोग मां सरस्वती की पूजा करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लेते हैं। बसंत पंचमी के दिन ही भगवान ब्रह्मा के मन से मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए, छात्रों के लिए ज्ञान, बुद्धि, कला और संगीत की देवी – माता सरस्वती की पूजा करने का यह सबसे अच्छा दिन माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को कलम अर्पित की जाती है और साल भर उसी कलम का इस्तेमाल किया जाता है।

श्री कृष्ण पूजन

भगवान श्री कृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता है । इस दिन ब्रज प्रदेश में राधा और कृष्ण के आनंद-विनोद की लीलाये बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है । इस दिन से फाग उड़ाना प्रारम्भ होता है । जिसका क्रम फाल्गुन की पूर्णिमा तक चलता है ।

विष्णु भगवान पूजन

बसंत पंचमी के दिन सभी भगवान को पीताम्बर वस्त्र धारण करवाए जाते है ।

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Kaal Bhairav Jayanti Bhairav Ashtami काल भैरव जयंती भैरव अष्टमी https://prabhupuja.com/kaal-bhairav-jayanti-bhairav-ashtami/ https://prabhupuja.com/kaal-bhairav-jayanti-bhairav-ashtami/#respond Thu, 30 Nov 2023 13:55:14 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1551

Kaal Bhairav Jayanti Bhairav Ashtami काल भैरव जयंती भैरव अष्टमी, मार्गशीर्ष(अगहन या मिंगसर) माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को मध्याह्न के समय भगवान शंकर के अंश से भैरव जी की उत्पति हुई थी। भैरव जी भगवान शिव का ही रौद्र स्वरूप है। भैरव जी भगवान शंकर के पांचवे अवतार है। भैरव जी का वाहन कुत्ता होता है। भैरव का अर्थ भयानक एवं पौषक होता है। इनसे काल भी भयभीत रहता है। इसलिये इन्हे “कालभैरव” भी कहते है। इस दिन को ‘कालाष्टमी’ के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान काल भैरव को ‘डंडापड़ी’ भी कहा जाता है।

Kaal Bhairav Ashtami Vrat Vidhi काल भैरव अष्टमी व्रत विधि विधान

  1. काल भैरव अष्टमी तिथि के दिन सर्वप्रथम प्रात: काल स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प करके दिन के समय भैरव एवं भोलेनाथ का पूजन करें।
  2. घर में भगवान शिव के समक्ष घी का दीपक जलाकर पूजन करें।
  3. काल भैरव अष्टमी के दिन भैरव मंदिर में जाकर भगवान भैरव के सामने चोमुखी दीपक जरूर जलाएं।
  4. भगवान भैरव की पूजा में प्रसाद के रूप में इमरती, जलेबी, कचोरी अर्पित कर प्रसाद बांट देना चाहिए, साथ ही काले तिल, पान, चमेली का फूल, फूल माला, उड़द, नारियल भी अर्पित करे।
  5. काल भैरव जयंती के दिन भैरव मंदिर में जातक उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल (चोला चढ़ाय) अर्पित करें।
  6. भगवान काल भैरव की पूजा रात्रि में की जाती है, पास में स्थित भैरव मंदिर या शिवालय में रात्रि जागरण करते हुए शंख, घंटा, दुंदुभि वादन करते हुए कथा, कीर्तन, जप और भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  7. कालभैरवाष्टक का पाठ करने से ऊपरी बाधाएं, भूत-प्रेत की परेशानी दूर होती है।
  8. पूजा उपरान्त काल भैरव भगवान की आरती जरूर करनी चाहिए।
  9. भैरवाष्टमी को गंगा-स्नान, पितृ-तर्पण-श्राद्ध सहित विधिवत व्रत करने वाला मनुष्य सालभर लौकिक तथा परलौकिक बाधाओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
  10. कालभैरव सदा धर्मसाधक, शांत और सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाले प्राणी की काल से सदा रक्षा करते है।
  11. भैरव अष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने के साथ ही कुत्तों को भोजन अवश्य कराएं। काल भैरव जयंती के दिन एक रोटी को सरसों के तेल में चुपड़कर किसी काले कुत्ते को खिला दें।
  12. इस दिन संध्या के समय शमी के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशियां आने लगती हैं।

Kaal Bhairav Mantra काल भैरव मंत्र

ॐ कालभैरवाय नम:
ओम भयहरणं च भैरव:
ओम कालभैरवाय नम:
ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं ओम भ्रं कालभैरवाय फट्
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि

काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई?

स्कंदपुराण और शिव पुराण के अनुसार एक बार त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सर्वश्रेष्ठता को लेकर बहस होने लगी। तीनो देव स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ सिद्ध कर रहे थे। जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है। तो यह कार्य ऋ​षि-मुनियों को सौंपा गया। ऋ​षि-मुनियों ने सोच-विचारने के बाद भगवान शंकर को सर्वश्रेष्ठ बताया।

ऋषि-मुनियों की बातों को सुनकर ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सिर क्रोध से जलने लगा। वे क्रोध में आकर भगवान ​शंकर का अपमान करने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित हो रौद्र रूप में आ गए और उस समय उनसे ही उनके रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए पाचवे सिर को काट दिया। तभी से ब्रह्म देव के चार सिर ही पूजे जाते है।

इससे काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा। तब भगवान शिव ने उनको सभी तीर्थों का भ्रमण करने का सुझाव दिया। फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा पर निकल गए। पृथ्वी पर सभी तीर्थों का भ्रमण करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी पहुंचे। वहां पर वे ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। शिव की नगरी काशी काल भैरव को इतनी अच्छी लगी कि वे सदैव के लिए काशी में ही बस गए।

धरती पर जितने ज्योतिर्लिंग है। उतने ही काल भैरव मंदिर भी स्थापित है। जिस नगरी में ज्योतिर्लिंग होता है। वो ज्योतिर्लिंग उस नगरी के राजा है। और काल भैरव कोतवाल यानि संरक्षक होते हैं। जैसे भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव काशी के कोतवाल यानि संरक्षक हैं।

भैरव साधना क्यों की जाती है (भैरव साधना के लाभ)

तांत्रिक क्रियाओं जैसे वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। काल भैरव की साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुंडली में छठा भाव रिपु यानि शत्रु का भाव होता है। लग्न से षष्ठ भाव भी रिपु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु संबंधी कष्ट होना संभव है।

भैरव-उपासना की दो शाखाएं
बटुक भैरव और
काल भैरव
के रूप में प्रसिद्ध हुईं। इनमें जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है – असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव।

FAQ

साल 2023 में काल भैरव जयंती कब है?

साल 2023 में काल भैरव जयंती 5 दिसंबर को है।

शिव जी के गण कौन-कौन बताए गये है?

कालिका पुराण के अनुसार भैरव, नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल को शिवजी का गण बताया गया है।

कालभैरव के अष्टनाम कौन-कौन से है?

कालभैरव के इन अष्टनाम का जप करें –
1- असितांग भैरव,
2- चंद्र भैरव,
3- रूद्र भैरव,
4- क्रोध भैरव,
5- उन्मत्त भैरव,
6- कपाल भैरव,
7- भीषण भैरव
8- संहार भैरव ।

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