Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi | उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi | उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi उत्पन्ना एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। अगहन(मार्गशीर्ष या मिंगसर) माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी “उत्पन्ना एकादशी” के रूप में मनाई जाती है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “उत्पन्ना” इस दिन एकादशी देवी का प्रादुर्भाव हुआ था। इस व्रत को करने पर सभी तीर्थो के स्नान का फल प्राप्त होता है। यह व्रत घोर पापो से उद्धार करने वाला है । उत्पन्ना एकादशी को वैतरणी एकादशी (“इस भवसागर से पार लगाने वाली”) भी कहा जाता है ।

Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

  1. उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर विष्णु भगवान और एकादशी देवी की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ पीले या सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और एकादशी देवी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और एकादशी देवी का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. तुलसी के साथ गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  6. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  7. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  8. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Utpanna Ekadashi Vrat Significance उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है जीवन स्वस्थ और दीर्घायु होता है।
  2. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से विवाह में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  3. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पूर्व जन्म और इस जन्म के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है इस जन्म के उपरान्त वैकुण्ठ कि प्राप्ति होती है श्री चरणों में स्थान प्राप्त होता है।
  5. उत्पन्ना एकादशी का एक और नाम वैतरणी एकादशी भी है जैसा कि नाम का अर्थ है “इस भवसागर से पार लगाने वाली”।

Utpanna Ekadashi Vrat Rules उत्पन्ना एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. इस दिन विष्णु भगवान का पूजन व सेवा करनी चाहिए इस दिन गुड और बादाम का सागार होता है।
  2. उत्पन्ना एकादशी अथवा किसी भी एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  3. उत्पन्ना एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  4. उत्पन्ना एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  5. उत्पन्ना एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
  6. उत्पन्ना एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  7. उत्पन्ना एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
  8. उत्पन्ना एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

Utpanna Ekadashi Vrat Katha उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा

श्री सूत जी ऋषियों से कहने लगे- विधि सहित उत्पन्ना एकादशी व्रत का महात्यम तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। सतयुग में एक महा भयंकर राक्षस मुर नाम का प्रकट हुआ। उसने अपनी शक्ति से देवताओं पर विजय प्राप्त की और अमरावती पुरी से नीचे गिरा दिया। बेचारे देवता मृत्यु लोक की गुफाओं में निवास करने लगे और कैलाशपति की शरण में जाकर मुर के अत्याचारों का तथा अपने महान दुख का वर्णन किया। शंकर जी कहने लगे आप भगवान विष्णु की शरण में जाइए।

आज्ञा पाकर सब देवता क्षीरसागर में गए। वहां शेष की शय्या पर भगवान शयन कर रहे थे। वेद मंत्र द्वारा स्तुति करके भगवान को प्रसन्न किया। प्रार्थना करके इंद्र कहने लगे। एक “नाड़ी जंग” नाम का दैत्य ब्रह्म वंश से चंद्रावती नगरी में उत्पन्न हुआ। उसके पुत्र का नाम मुर है। उस मुर दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया। आप ही सूर्य बनकर जल का आकर्षण करते हैं। आप ही मेघ बनकर जल बरसाते हैं। भूलोक के बड़े-बड़े कर्मचारी, देवता सब शरणार्थी बन चुके हैं। अतः आप उस बलशाली दैत्य को मार कर हमारा दुख दूर कीजिए।

भगवान बोले- देवताओं मैं तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संघार करूंगा। आप निश्चिन्त होकर चंद्रावती नगरी पर चढ़ाई करो। मैं तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आऊंगा। आज्ञा मानकर देवता लोग वहां आए जहां युद्ध भूमि में मुर दैत्य गरज रहा था। युद्ध आरंभ हुआ, परंतु मुर के सामने देवता घड़ी भर ना ठहर सके। भगवान विष्णु भी वहां आ पहुंचे। सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी शत्रुओं का संघार करो। चक्र ने चारों ओर सफाई कर दी, एक मुर दैत्य का सिर न कट सका और ना गदा उसकी गर्दन तोड़ सकी।

भगवान ने सारंग धनुष हाथ में लिया। बाणो द्वारा युद्ध प्रारंभ हुआ। परंतु शत्रु को मार ना सके। अंत में कुश्ती करने लगे हजारों वर्ष व्यतीत हो गए। परंतु प्रभु का दावा बंद एक न सफल हुआ। मुर दैत्य पर्वत के समान कठोर था। प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था। थक गए मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई शत्रु को पीठ दिखाकर भाग चले। आपकी विश्राम भूमि बद्रिकाश्रम थी। वह एक गुफा 12 योजन की थी। हेमवती उसका नाम था। उसमें घुसकर सो गए। मुर पीछे-पीछे चलाया। सोते हुए शत्रु को मारने के लिए तैयार हो गया।

उसी समय एक सुंदर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई। जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे। उसने मुर के अस्त्र शस्त्रों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। रथ भी तोड़ दिया। फिर भी उस शूरवीर ने पीठ ना दिखाई। कुश्ती करने को कन्या के समीप आया। कन्या ने धक्का मार कर गिरा दिया और कहा यह मल्ल युद्ध का फल है। जब उठा तो उसका सिर काट कर कहा। यह हठ योग का फल है। मुर कि सेना पाताल को भाग गई। भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली। यह दैत्य आपको मारने की इच्छा करके आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया।

भगवान बोले तुमने सब देवताओं की रक्षा की है। मैं तुम पर प्रसन्न हूं। वरदान देने को तैयार हूं। जो कुछ मन में इच्छा हो मांग लो। कन्या बोली जो मनुष्य मेरा व्रत करें। उसके घर में दूध, पुत्र और धन का विकास रहे। अंत में आपके लोक को प्राप्त करें। भगवान बोले तू एकादशी को उत्पन्न हुई है। इस कारण तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत करें। उसको सब तीर्थ के स्नान का फल मिलेगा। घोर पापों से उद्धार करने वाला तेरा व्रत होगा। ऐसा कह कर भगवान अंतर ध्यान हो गए। पतित पावनी विश्व तारिणी का जन्म मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष में हुआ। इस कारण इसका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध है।


Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है?

एकादशी व्रत का प्रारम्भ इस दिन से ही हुआ था । एकादशी देवी का जन्म भगवान श्री हरी विष्णु के शरीर से आज ही के दिन हुआ था। उत्पन्ना एकादशी को वैतरणी एकादशी भी कहा जाता है । जीव योनि से मुक्ति और परम सत्ता में विलय इस इच्छा से ही उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है ।

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कैसे करें?

भगवान विष्णु और एकादशी माता का ध्यान और पूजन करे और इस दिन पूर्ण उपवास रखा जाता है फलहार में गुड़ और बादाम से बनी व्रत की फलहारी का ही सेवन करना चाहिए ।

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब है?

26 नवम्बर 2024 मंगलवार के दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत का दिन है ।

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