Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि, नियम, लाभ, कथा और आरती, श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस व्रत में शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी की पूजा उनके वैभव लक्ष्मी रूप में की जाती है। यह व्रत करने से लक्ष्मी मां अति प्रसन्न होती है। इस व्रत के करने से सब प्रकार के सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है। यह व्रत शीघ्र फलदायी होता है। किसी इच्छा को पूर्ण करने के लिये ही ये व्रत किया जाता है। इछित कार्य पूर्ण होने पर पुनः किसी अन्य कार्य हेतु यह व्रत फिर से किया जा सकता है। श्री वैभव लक्ष्मी व्रत 11 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए।
Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय पूजा विधि
- शुक्रवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम होता है।
- पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही वैभव लक्ष्मी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, चावल, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, फल, मिठाई(प्रसाद), हल्दी, धूप, दीप, लौंग, इलायची, चीनी या गुड़, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, सोने का आभूषण या चाँदी का या रुपए और ताम्बे का कलश की आवश्यकता होती है।
- पूजन का समय: संध्या के समय(शाम को) शुभ मुहर्त में श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) का पूजन कर लेना चाहिए। श्री यन्त्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
- मंत्र जाप: पूजा के समय लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते रहे।
- पूजन में कलश के ऊपर लाल कपड़े में लक्ष्मी स्वरूपा स्वर्ण आभूषण या चाँदी का कोई आभूषण या रुपये का पूजन किया जाता है।
- श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में चावल की खीर का भोग लगाकर व्रत खोलने पर उसका सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। शाम के समय पूजन के उपरान्त कभी भी समय भोजन किया जा सकता है।
- पूजन के अंत में लक्ष्मी माता की आरती जरूर करें।
- श्री वैभव लक्ष्मी पूजन के पश्यात श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा सुननी चाहिए।
- श्री वैभव लक्ष्मी कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री महालक्ष्मी स्तुति, श्री लक्ष्मी महिमा और महालक्ष्मी स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
लक्ष्मी स्तवन
या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।
महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalaxmi Stotra)
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।
Shree Yantra
Vaibhav Lakshmi Vrat Rules वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम
- किसी भी व्रत के सफल होने की संभावना तभी होती है, जब वह व्रत पूरे श्रद्धा भाव से और पवित्रता से किया जाए, बिना भाव और खिन्नता से व्रत करना कभी भी फलदायक नहीं होता है।
- श्री वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार को किया जाता है और शुरू करने के पूर्व 11 या 21 शुक्रवार व्रत करने का संकल्प लेना होता है।
- सौभाग्यवती स्त्रियाँ ही इस व्रत को करती है, घर में अगर सौभाग्यवती स्त्री ना हो तो कोई भी स्त्री या कुंवारी कन्या भी यह व्रत कर सकती है।
- व्रत के दिन सुबह से ही “जय माँ लक्ष्मी “, “जय माँ लक्ष्मी ” का जाप मन ही मन करना चाहिए।
- यह व्रत अपने ही घर पर करना चाहिए, यदि शुक्रवार के दिन आप यात्रा या प्रवास पर हो तो वह शुक्रवार छोड़ कर अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए।
- संकल्प के 11 या 21 शुक्रवार पुरे होने पर रीति अनुसार उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
- व्रत पूरा होने पर उद्यापन में कम से कम 7 स्त्रियों को भोजन कराए और भेंट में खीर जरूर दे।
- व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।
Vaibhav Lakshmi Vrat Significance वैभव लक्ष्मी व्रत के लाभ/महत्त्व
- जिस भी मनोकामना से व्रत प्रारंभ किया जाता है, वह मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
- संतानहीन को श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है।
- सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है।
- कुंवारे लड़के व लड़की को मनभावन जीवनसाथी प्राप्त होता है।
- व्रत को करने से सभी प्रकार की विपत्तियां दूर होती है।
Vaibhav Lakshmi Vrat Katha वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा
एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में मग्न रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे।
कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक आशा की किरण छिपी होती है’ इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उसका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी मानी जाती थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अटल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति को पूर्व जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल निकला और करोड़पति के बजाय रोड़पति बन गया। यानि रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।
शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था।
समय के परिवर्तन के साथ घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था।
शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ।किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी। इस तरह शीला असह्य दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गयी कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?
फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। तो देखा एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था।उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनके भव्य चेहरे से करुणा और प्यार छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’
शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।
माँ जी ने हँसकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।’
पति जब से गलत रास्ते पर चला गया था, तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया पर वह माँ जी उसे याद नहीं आ रही थीं। तभी माँ जी ने कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।’
माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दु:ख आता है, तो दु:ख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन भी हलका हो जायेगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।’
माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी से कहा: ‘माँ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं, मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगति में फँस गये और बुरी आदतों के शिकार हो गये तथा अपना सब-कुछ गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये हैं।’
यह सुन कर माँ जी ने कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है’, हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है।
अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।
‘बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हलदी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’ का स्मरण करते रहो। किसी की शिकायत नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रख कर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जला कर धूप सुलगा कर रखो।
माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्रीयंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो।
और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि से व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है।
सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।
शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: ‘माँ! आपने वैभवलक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए? यह भी कृपा करके सुनाइये।’
माँ जी ने कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को खीर का नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका व्रत पूर्ण किया है।
तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरम्पार है।’
माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन भी करूँगी।
शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा नहीं साक्षात लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी माँ जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मन ही मन स्मरण करने लगी। सारा दिन किसी की शिकायत नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव-मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। नाक की कील निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रखी। फिर विधिपूर्वक वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी व्रत किया।
यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई। शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी: ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।
इस तरह शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा और अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ और उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगीं। हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!
Vaibhav Lakshmi Vrat Udyapan Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि
इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दे। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करे। ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम करे।
व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन में कम से कम सात स्त्रियों को भोजन करा खीर का कटोरा दे और सामर्थ्य अनुसार भेंट दे या अपने सामर्थ्य अनुसार 11, 21, 51, 101 स्त्रियों को भी भोजन करवा सकते है ।
Vaibhav Lakshmi Vrat Aarti वैभव लक्ष्मी व्रत की आरती
श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में माता लक्ष्मी की ही आरती की जाती है लक्ष्मी मां की आरती का लिंक नीचे हम दे रहे हैं
श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में भूलकर भी ना करें ये 10 गलतियां (व्रत में क्या ना करें)
- व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।
- लक्ष्मी मां को सफाई बेहद पसंद है इसलिए अपने घर को हमेशा साफ रखें। जिस स्थान पर गंदगी होती है वहां नकारात्मक उर्जा रहती है। इससे लक्ष्मी नाराज होकर घर से चली जाती है। व्रत के दौरान ये भी ध्यान रखें कि रात को कभी भी किचन में जूठे बर्तन ना रखें।
- वैभव लक्ष्मी व्रत में किसी भी प्रकार की खट्टी चीजें खाना वर्जित है। इस दिन मांसाहार का सेवन ना करें। वैभव लक्ष्मी की पूजा कर रहे घर के सभी सदस्यों को भोजन में सात्विर आहार ही लेना चाहिए।
- वैभव लक्ष्मी व्रत के दौरान आलस्य का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। नहीं तो व्रत का संपूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है। व्रत करने वालों को दिन के समय सोना नहीं चाहिए। अगर व्रती बुजुर्ग हों या उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो ऐसे में ये नियम अनिवार्य नहीं है।
- मां लक्ष्मी हमेशा वहीं वास करती हैं जहां महिलाओं का सम्मान हो। जिस घर में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, वहां लक्ष्मी कभी वास नहीं करती। हमेशा सभी स्त्रियों का सम्मान करें।
- व्रत के दौरान किसी भी तरह से मलिन विचार या गंदा व्यवहार न करें। साथ ही अपने मन और शरीर को एकदम शांत रखना चाहिए।
- वैभव लक्ष्मी व्रत को अपने स्वयं के घर में ही करना चाहिये। किसी कारण से अगर आप गृह से दूर हो तो उस शुक्रवार व्रत ना करे, इस बात का विशेष ध्यान रखे।
- वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन किसी की भी चुगली नहीं करनी चाहिए, चुगली करने पर व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है।
- नाख़ून, बाल आदि वैभव लक्ष्मी व्रत वाले दिन नहीं काटना चाहिये।
- व्रत के दौरान अन्न का सेवन वर्जित होता है। मां लक्ष्मी की पूजा के बाद साबूदाने की खिचड़ी, कट्टू की मीठी या नमकीन पूड़ियां, कच्चा केला, सिंघाड़ा या सिंघाड़े का आटा, आलू, खीरे, मूंगफली इत्यादि का सेवन किया जा सकता है। अगर व्रत करने वाले का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो सिर्फ़ पूजा करें या दिन में दो बार व्रत वाला भोजन कर सकते हैं।
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Disclaimer (खंडन)
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