Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी “विजया एकादशी” के रूप में मनाई जाती है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “विजया एकादशी” विजय को देने वाली एकादशी। मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त करी थी ।
Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत विधि
- विजया एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
- पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
- पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
- मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
- नारायण की स्वर्ण मूर्ति रखकर धूप दीप नैवेद्य से पूजन करें।
- तुलसी के साथ गुड़ और सिंघाड़ों से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
- “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
- पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
- भगवान विष्णु पूजन के पश्यात विजया एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।
Vijaya Ekadashi Vrat Significance विजया एकादशी व्रत का महत्व या लाभ
- विजया एकादशी का व्रत समस्त शत्रुओ पर विजय देने वाला होता है।
- विजया एकादशी व्रत करने से समस्त रुके हुए कार्यो में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
- विजया एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मान्तरों के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- विजया एकादशी व्रत इस भूलोक में समाज के अंदर उच्च स्थान प्राप्त करवाता है।
- विजया एकादशी का व्रत विद्यार्थी करे तो उनको परीक्षा में सफलता अवश्य प्राप्त होती है जैसा कि नाम का अर्थ है “विजय देने वाली”
Vijaya Ekadashi Vrat Rules विजया एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम
- विजया एकादशी के दिन नारायण की स्वर्ण मूर्ति का पूजन धुप, दीप और नैवेद्य से करना चाहिए।
- विजया एकादशी व्रत के दिन सिंघाडो का सागार होता है।
- विजया एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
- विजया एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
- विजया एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
- विजया एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
- विजया एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
- विजया एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
- विजया एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।
Vijaya Ekadashi Vrat Katha विजया एकादशी व्रत की कथा
भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है, विजय को देने वाली ।मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त की थी। मैं तुमसे विस्तार पूर्वक कथा का वर्णन करता हूं। जब भगवान राम कपि दल के सहित सिंधु तट पर पहुंचे तो समुद्र देव के कारण रास्ता रुक गया। समीप में एकदाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसे अनेकों ब्रह्मा अपनी आंखों से देखते थे।
ऐसे चिरंजीवी मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण जी सेना सहित मुनि आश्रम जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करते हैं और समुद्र से पार होने का उपाय मुनि से पूछते हैं। मुनि बोले- कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करिए। समुद्र से पार होने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय इसी से आपको प्राप्त होगा। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया और रामेश्वरम पूजन किया। इसके प्रभाव से राम जी को लंका पर विजय प्राप्त हुई और वह सीता जी को लंका से मुक्त कर पाए। इस महात्यम को सुनने से हमेशा विजय प्राप्त होती है।
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FAQ
विजया एकादशी का व्रत कब है?
2024 में विजया एकादशी 6 और 7 मार्च को मनाई जाएगी. पंचांग के मुताबिक, 6 मार्च को सुबह 6:30 बजे से एकादशी तिथि शुरू होगी और 7 मार्च को सुबह 4:13 बजे तक रहेगी।