Vrat Vidhi Sangrah – PrabhuPuja https://prabhupuja.com Sanatan Dharma Gyan Sat, 17 Aug 2024 17:35:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://i0.wp.com/prabhupuja.com/wp-content/uploads/2024/07/cropped-prabhupuja_site_icon-removebg-preview-1.png?fit=32%2C32&ssl=1 Vrat Vidhi Sangrah – PrabhuPuja https://prabhupuja.com 32 32 214786494 Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि, नियम, लाभ, कथा और आरती https://prabhupuja.com/vaibhav-lakshmi-vrat-vidhi-katha-rules-aarti/ https://prabhupuja.com/vaibhav-lakshmi-vrat-vidhi-katha-rules-aarti/#respond Sun, 12 May 2024 15:48:28 +0000 https://prabhupuja.com/?p=3057 Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि, नियम, लाभ, कथा और आरती, श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस व्रत में शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी की पूजा उनके वैभव लक्ष्मी रूप में की जाती है। यह व्रत करने से लक्ष्मी मां अति प्रसन्न होती है। इस व्रत के करने से सब प्रकार के सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती है। यह व्रत शीघ्र फलदायी होता है। किसी इच्छा को पूर्ण करने के लिये ही ये व्रत किया जाता है। इछित कार्य पूर्ण होने पर पुनः किसी अन्य कार्य हेतु यह व्रत फिर से किया जा सकता है। श्री वैभव लक्ष्मी व्रत 11 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए।

Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय पूजा विधि

  1. शुक्रवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम होता है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही वैभव लक्ष्मी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, चावल, लाल पुष्प, लाल वस्त्र, फल, मिठाई(प्रसाद), हल्दी, धूप, दीप, लौंग, इलायची, चीनी या गुड़, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, सोने का आभूषण या चाँदी का या रुपए और ताम्बे का कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: संध्या के समय(शाम को) शुभ मुहर्त में श्री वैभव लक्ष्मी मां(धन लक्ष्मी स्वरूपा) का पूजन कर लेना चाहिए। श्री यन्त्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. पूजन में कलश के ऊपर लाल कपड़े में लक्ष्मी स्वरूपा स्वर्ण आभूषण या चाँदी का कोई आभूषण या रुपये का पूजन किया जाता है।
  6. श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में चावल की खीर का भोग लगाकर व्रत खोलने पर उसका सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। शाम के समय पूजन के उपरान्त कभी भी समय भोजन किया जा सकता है।
  7. पूजन के अंत में लक्ष्मी माता की आरती जरूर करें।
  8. श्री वैभव लक्ष्मी पूजन के पश्यात श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा सुननी चाहिए।
  9. श्री वैभव लक्ष्मी कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री महालक्ष्मी स्तुति, श्री लक्ष्मी महिमा और महालक्ष्मी स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी स्तवन

या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalaxmi Stotra)

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

Shree Yantra

Shree Yantra

Vaibhav Lakshmi Vrat Rules वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम

  1. किसी भी व्रत के सफल होने की संभावना तभी होती है, जब वह व्रत पूरे श्रद्धा भाव से और पवित्रता से किया जाए, बिना भाव और खिन्नता से व्रत करना कभी भी फलदायक नहीं होता है।
  2. श्री वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार को किया जाता है और शुरू करने के पूर्व 11 या 21 शुक्रवार व्रत करने का संकल्प लेना होता है।
  3. सौभाग्यवती स्त्रियाँ ही इस व्रत को करती है, घर में अगर सौभाग्यवती स्त्री ना हो तो कोई भी स्त्री या कुंवारी कन्या भी यह व्रत कर सकती है।
  4. व्रत के दिन सुबह से ही “जय माँ लक्ष्मी “, “जय माँ लक्ष्मी ” का जाप मन ही मन करना चाहिए।
  5. यह व्रत अपने ही घर पर करना चाहिए, यदि शुक्रवार के दिन आप यात्रा या प्रवास पर हो तो वह शुक्रवार छोड़ कर अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए।
  6. संकल्प के 11 या 21 शुक्रवार पुरे होने पर रीति अनुसार उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
  7. व्रत पूरा होने पर उद्यापन में कम से कम 7 स्त्रियों को भोजन कराए और भेंट में खीर जरूर दे।
  8. व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।

Vaibhav Lakshmi Vrat Significance वैभव लक्ष्मी व्रत के लाभ/महत्त्व

  1. जिस भी मनोकामना से व्रत प्रारंभ किया जाता है, वह मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
  2. संतानहीन को श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है।
  3. सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है।
  4. कुंवारे लड़के व लड़की को मनभावन जीवनसाथी प्राप्त होता है।
  5. व्रत को करने से सभी प्रकार की विपत्तियां दूर होती है।

Vaibhav Lakshmi Vrat Katha वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा

एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में मग्न रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे।
कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक आशा की किरण छिपी होती है’ इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।


ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उसका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी मानी जाती थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।

शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अटल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति को पूर्व जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल निकला और करोड़पति के बजाय रोड़पति बन गया। यानि रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।


शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था।
समय के परिवर्तन के साथ घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था।


शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ।किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी। इस तरह शीला असह्य दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गयी कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?

फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। तो देखा एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था।उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनके भव्य चेहरे से करुणा और प्यार छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’


शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।
माँ जी ने हँसकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।’
पति जब से गलत रास्ते पर चला गया था, तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया पर वह माँ जी उसे याद नहीं आ रही थीं। तभी माँ जी ने कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।’
माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।


माँ जी ने कहा: ‘बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दु:ख आता है, तो दु:ख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन भी हलका हो जायेगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।’
माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी से कहा: ‘माँ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं, मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगति में फँस गये और बुरी आदतों के शिकार हो गये तथा अपना सब-कुछ गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये हैं।’
यह सुन कर माँ जी ने कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है’, हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है।


अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।


‘बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हलदी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’ का स्मरण करते रहो। किसी की शिकायत नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रख कर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जला कर धूप सुलगा कर रखो।


माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्रीयंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो।


और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि से व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है।
सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।


शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: ‘माँ! आपने वैभवलक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए? यह भी कृपा करके सुनाइये।’
माँ जी ने कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को खीर का नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका व्रत पूर्ण किया है।

तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरम्पार है।’
माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन भी करूँगी।


शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा नहीं साक्षात लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी माँ जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मन ही मन स्मरण करने लगी। सारा दिन किसी की शिकायत नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव-मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। नाक की कील निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रखी। फिर विधिपूर्वक वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी व्रत किया।


यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई। शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी: ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।


इस तरह शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा और अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ और उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगीं। हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!

Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi Katha Rules Aarti Significance

Vaibhav Lakshmi Vrat Udyapan Vidhi वैभव लक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि

इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दे। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करे। ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम करे।

व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन में कम से कम सात स्त्रियों को भोजन करा खीर का कटोरा दे और सामर्थ्य अनुसार भेंट दे या अपने सामर्थ्य अनुसार 11, 21, 51, 101 स्त्रियों को भी भोजन करवा सकते है ।

Vaibhav Lakshmi Vrat Aarti वैभव लक्ष्मी व्रत की आरती

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में माता लक्ष्मी की ही आरती की जाती है लक्ष्मी मां की आरती का लिंक नीचे हम दे रहे हैं

आरती लक्ष्मी जी की

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत में भूलकर भी ना करें ये 10 गलतियां (व्रत में क्या ना करें)

  1. व्रत के दिन अगर स्त्री रजस्वला हो या घर में सूतक हो तो उस शुक्रवार को व्रत ना करे।
  2. लक्ष्मी मां को सफाई बेहद पसंद है इसलिए अपने घर को हमेशा साफ रखें। जिस स्थान पर गंदगी होती है वहां नकारात्मक उर्जा रहती है। इससे लक्ष्मी नाराज होकर घर से चली जाती है। व्रत के दौरान ये भी ध्यान रखें कि रात को कभी भी किचन में जूठे बर्तन ना रखें।
  3. वैभव लक्ष्मी व्रत में किसी भी प्रकार की खट्टी चीजें खाना वर्जित है। इस दिन मांसाहार का सेवन ना करें। वैभव लक्ष्मी की पूजा कर रहे घर के सभी सदस्यों को भोजन में सात्विर आहार ही लेना चाहिए।
  4. वैभव लक्ष्मी व्रत के दौरान आलस्य का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। नहीं तो व्रत का संपूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है। व्रत करने वालों को दिन के समय सोना नहीं चाहिए। अगर व्रती बुजुर्ग हों या उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो ऐसे में ये नियम अनिवार्य नहीं है।
  5. मां लक्ष्मी हमेशा वहीं वास करती हैं जहां महिलाओं का सम्मान हो। जिस घर में महिलाओं का सम्मान नहीं होता, वहां लक्ष्मी कभी वास नहीं करती। हमेशा सभी स्त्रियों का सम्मान करें।
  6. व्रत के दौरान किसी भी तरह से मलिन विचार या गंदा व्यवहार न करें। साथ ही अपने मन और शरीर को एकदम शांत रखना चाहिए।
  7. वैभव लक्ष्मी व्रत को अपने स्वयं के घर में ही करना चाहिये। किसी कारण से अगर आप गृह से दूर हो तो उस शुक्रवार व्रत ना करे, इस बात का विशेष ध्यान रखे।
  8. वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन किसी की भी चुगली नहीं करनी चाहिए, चुगली करने पर व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है।
  9. नाख़ून, बाल आदि वैभव लक्ष्मी व्रत वाले दिन नहीं काटना चाहिये।
  10. व्रत के दौरान अन्न का सेवन वर्जित होता है। मां लक्ष्मी की पूजा के बाद साबूदाने की खिचड़ी, कट्टू की मीठी या नमकीन पूड़ियां, कच्चा केला, सिंघाड़ा या सिंघाड़े का आटा, आलू, खीरे, मूंगफली इत्यादि का सेवन किया जा सकता है। अगर व्रत करने वाले का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो सिर्फ़ पूजा करें या दिन में दो बार व्रत वाला भोजन कर सकते हैं।

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Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

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Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi Katha| आमलकी (आंवला) एकादशी व्रत विधि https://prabhupuja.com/amalaki-ekadashi-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/amalaki-ekadashi-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Thu, 14 Mar 2024 14:52:45 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2891 Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi Katha आमलकी (आंवला) एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को “आमलकी या आमला या आंवला एकादशी” कहा जाता है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “आमला एकादशी” इस दिन आंवले के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है। आंवले के पेड़ को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है।

Amalaki Ekadashi Vrat Vidhi आमलकी एकादशी व्रत विधि

  1. आमला(आंवला) एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु और परशुराम भगवान की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और परशुराम भगवान की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और परशुराम भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, और पंचरत्न आदि से परशुराम भगवान की पूजा की जाती है।
  6. तुलसी के साथ गुड़ आंवले से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  7. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  8. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  9. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात आमला(आंवला) एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Amalaki Ekadashi Vrat Significance आमलकी एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. आमला एकादशी का व्रत समस्त पापो का नाश करने वाला होता है।
  2. आमला एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।
  3. आमला एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मान्तरों के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. आमला एकादशी व्रत इस भूलोक में समाज के अंदर उच्च स्थान प्राप्त करवाता है।
  5. आमला एकादशी का व्रत करने वाले की शत्रुओ से रक्षा होती है ।
  6. आमला एकादशी करने वाला अगले जन्म मे समस्त सुखो को पाता है ।

Amalaki Ekadashi Vrat Rules आमलकी एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. आमला एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धुप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवन की पूजा की जाती है।
  2. आमला एकादशी व्रत के दिन आंवले का सागार होता है।
  3. आमला एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  4. आमला एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  5. आमला एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। एक दिन पहले और पारण के दिन याने अगले दिन तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
  6. आमला एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha आमलकी एकादशी व्रत की कथा

श्री कृष्ण जी बोले- हे युधिष्ठिर फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमला एकादशी है। एक समय वशिष्ठ मुनि से मांधाता राजा ने पूछा कि समस्त पापों का नाश करने वाला कौन सा व्रत है गुरुवार वो मुझसे कहिये। वशिष्ठ जी बोले- पौराणिक इतिहास कहता हूं। वैश्य नाम की नगरी में चंद्रवंशी राजा चैत्ररथ राज्य किया करता था। वह बड़ा धर्मात्मा था। प्रजा भी उसकी वैष्णव थी। बालक से लेकर वृद्ध तक एकादशी व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आई और नगर वासियों ने रात्रि को जागरण किया मंदिर में कथा कीर्तन करने लगे।

इस समय एक बहेलिया जो कि जीव हिंसा से उदर पालन किया करता था। मंदिर के कोने में जा बैठा। आज वह शिकारी घर से रूठ चुका था। दिन भर खाया पिया भी कुछ न था। रात्रि को दिल बहलाने के लिए मंदिर के कोने में जाकर चुप बैठा था। वहां विष्णु भगवान की कथा तथा एकादशी व्रत का महत्व उसने सुना। वहीं रात्रि व्यतीत की, प्रातः काल घर को चला गया। भोजन न पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। आंवला एकादशी का महत्व सुनने और निर्जल उपवास करने के प्रभाव से उसका अगला जन्म राजा विधुरत के घर पर हुआ।

नाम उसका वसूरत प्रसिद्ध हुआ। वह बड़ा ही धर्मात्मा राजा हुआ। एक दिन राजा वसूरत वन विहार करने को गया और उसे दिशा का ज्ञान ना रहा। रास्ता भटकने के कारण रात्रि में थक हार कर राजा वन में ही सो गया। आज राजा ने आमला एकादशी का व्रत रखा था। उपवास किया और सोते समय भगवान का ध्यान लगाकर सो गया। इधर मलेछो ने राजा को वन में अकेला देखा। मलेछो के ही संबंधियों को राजा ने किसी दोष के कारण दंड दिया था। इस कारण वे उसे मारना चाहते थे।

राजा को वन में अकेला देख वे सभी उसे सोते हुए में ही मारने आए। उसी समय राजा के शरीर से एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई। वह आमला एकादशी व्रत के प्रभाव से उत्पन्न हुई थी। कालिका के समान अट-अट करके उसने खप्पर फिराया और मलेछो के रुधिर की भिक्षा लेकर अंतर्ध्यान हो गई। जब राजा निद्रा से जागा तो उसने शत्रुओ को मरा हुआ देखा और आश्चर्य चकित हुआ। मन में कहने लगा मेरी रक्षा किसने की। तभी आकाशवाणी हुई आमला एकादशी के प्रभाव से राजन तेरी रक्षा विष्णु भगवान ने की है।

राजा नतमस्तक हुआ और प्रजा संग आमला एकादशी का व्रत और अधिक श्रद्धा पूर्वक करने लगा।

आमलकी एकादशी व्रत में ध्यान रखने योग्य बाते

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ


आंवला एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?

आमला एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे कलश स्थापित करके धुप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवन की पूजा की जाती है।


आमला एकादशी में क्या खाना चाहिए?

आमला एकादशी व्रत के दिन आंवले का सागार होता है।आमला एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
आमला एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।

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Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत विधि https://prabhupuja.com/vijaya-ekadashi-vrat-vidhi/ https://prabhupuja.com/vijaya-ekadashi-vrat-vidhi/#respond Sat, 02 Mar 2024 17:54:18 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2762 Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी “विजया एकादशी” के रूप में मनाई जाती है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “विजया एकादशी” विजय को देने वाली एकादशी। मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त करी थी ।

Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi विजया एकादशी व्रत विधि

  1. विजया एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. नारायण की स्वर्ण मूर्ति रखकर धूप दीप नैवेद्य से पूजन करें।
  6. तुलसी के साथ गुड़ और सिंघाड़ों से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  7. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  8. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  9. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात विजया एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Vijaya Ekadashi Vrat Significance विजया एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. विजया एकादशी का व्रत समस्त शत्रुओ पर विजय देने वाला होता है।
  2. विजया एकादशी व्रत करने से समस्त रुके हुए कार्यो में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  3. विजया एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मान्तरों के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. विजया एकादशी व्रत इस भूलोक में समाज के अंदर उच्च स्थान प्राप्त करवाता है।
  5. विजया एकादशी का व्रत विद्यार्थी करे तो उनको परीक्षा में सफलता अवश्य प्राप्त होती है जैसा कि नाम का अर्थ है “विजय देने वाली”

Vijaya Ekadashi Vrat Rules विजया एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. विजया एकादशी के दिन नारायण की स्वर्ण मूर्ति का पूजन धुप, दीप और नैवेद्य से करना चाहिए।
  2. विजया एकादशी व्रत के दिन सिंघाडो का सागार होता है।
  3. विजया एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  4. विजया एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  5. विजया एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  6. विजया एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
  7. विजया एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  8. विजया एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
  9. विजया एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

Vijaya Ekadashi Vrat Katha विजया एकादशी व्रत की कथा

भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है, विजय को देने वाली ।मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने इसी व्रत के प्रभाव से लंका पर विजय प्राप्त की थी। मैं तुमसे विस्तार पूर्वक कथा का वर्णन करता हूं। जब भगवान राम कपि दल के सहित सिंधु तट पर पहुंचे तो समुद्र देव के कारण रास्ता रुक गया। समीप में एकदाल्भ्य मुनि का आश्रम था जिसे अनेकों ब्रह्मा अपनी आंखों से देखते थे।

ऐसे चिरंजीवी मुनि के दर्शनार्थ राम लक्ष्मण जी सेना सहित मुनि आश्रम जाकर मुनि को दंडवत प्रणाम करते हैं और समुद्र से पार होने का उपाय मुनि से पूछते हैं। मुनि बोले- कल विजया एकादशी है उसका व्रत आप सेना सहित करिए। समुद्र से पार होने का तथा लंका को विजय करने का सुगम उपाय इसी से आपको प्राप्त होगा। मुनि की आज्ञा से राम लक्ष्मण ने सेना सहित विजया एकादशी का व्रत किया और रामेश्वरम पूजन किया। इसके प्रभाव से राम जी को लंका पर विजय प्राप्त हुई और वह सीता जी को लंका से मुक्त कर पाए। इस महात्यम को सुनने से हमेशा विजय प्राप्त होती है।

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

विजया एकादशी का व्रत कब है?

2024 में विजया एकादशी 6 और 7 मार्च को मनाई जाएगी. पंचांग के मुताबिक, 6 मार्च को सुबह 6:30 बजे से एकादशी तिथि शुरू होगी और 7 मार्च को सुबह 4:13 बजे तक रहेगी।

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Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi | उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि https://prabhupuja.com/utpanna-ekadashi-vrat-vidhi/ https://prabhupuja.com/utpanna-ekadashi-vrat-vidhi/#respond Sat, 02 Mar 2024 05:33:21 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2723 Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi उत्पन्ना एकादशी व्रत को करने की विधि हम यहाँ विस्तार से समझा रहे है। अगहन(मार्गशीर्ष या मिंगसर) माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी “उत्पन्ना एकादशी” के रूप में मनाई जाती है। जैसा कि नाम से वर्णित हो रहा है “उत्पन्ना” इस दिन एकादशी देवी का प्रादुर्भाव हुआ था। इस व्रत को करने पर सभी तीर्थो के स्नान का फल प्राप्त होता है। यह व्रत घोर पापो से उद्धार करने वाला है । उत्पन्ना एकादशी को वैतरणी एकादशी (“इस भवसागर से पार लगाने वाली”) भी कहा जाता है ।

Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

  1. उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर विष्णु भगवान और एकादशी देवी की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ पीले या सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और एकादशी देवी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और एकादशी देवी का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. तुलसी के साथ गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं। (ध्यान रखे इस दिन तुलसी ना तोड़े एक दिन पहले ही तुलसी दल सहेज कर रख ले।)
  6. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।
  7. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की और एकादशी देवी की आरती जरूर करें।
  8. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा सुननी चाहिए।

Utpanna Ekadashi Vrat Significance उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व या लाभ

  1. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से रोगों से मुक्ति मिलती है जीवन स्वस्थ और दीर्घायु होता है।
  2. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से विवाह में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
  3. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पूर्व जन्म और इस जन्म के पापो का नाश होता है जिससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  4. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है इस जन्म के उपरान्त वैकुण्ठ कि प्राप्ति होती है श्री चरणों में स्थान प्राप्त होता है।
  5. उत्पन्ना एकादशी का एक और नाम वैतरणी एकादशी भी है जैसा कि नाम का अर्थ है “इस भवसागर से पार लगाने वाली”।

Utpanna Ekadashi Vrat Rules उत्पन्ना एकादशी व्रत की सावधानियां या नियम

  1. इस दिन विष्णु भगवान का पूजन व सेवा करनी चाहिए इस दिन गुड और बादाम का सागार होता है।
  2. उत्पन्ना एकादशी अथवा किसी भी एकादशी पर पूर्ण उपवास रखा जाता है। उपवास के दिन एक बार फलाहार किया जा सकता है।
  3. उत्पन्ना एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  4. उत्पन्ना एकादशी पर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
  5. उत्पन्ना एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे आपका पुण्य शीर्ण होता है।
  6. उत्पन्ना एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  7. उत्पन्ना एकादशी पर हिंसक प्रवर्ति का त्याग करे, वाद-विवाद से दूर रहें व क्रोध न करें।
  8. उत्पन्ना एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

Utpanna Ekadashi Vrat Katha उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा

श्री सूत जी ऋषियों से कहने लगे- विधि सहित उत्पन्ना एकादशी व्रत का महात्यम तथा जन्म की कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। सतयुग में एक महा भयंकर राक्षस मुर नाम का प्रकट हुआ। उसने अपनी शक्ति से देवताओं पर विजय प्राप्त की और अमरावती पुरी से नीचे गिरा दिया। बेचारे देवता मृत्यु लोक की गुफाओं में निवास करने लगे और कैलाशपति की शरण में जाकर मुर के अत्याचारों का तथा अपने महान दुख का वर्णन किया। शंकर जी कहने लगे आप भगवान विष्णु की शरण में जाइए।

आज्ञा पाकर सब देवता क्षीरसागर में गए। वहां शेष की शय्या पर भगवान शयन कर रहे थे। वेद मंत्र द्वारा स्तुति करके भगवान को प्रसन्न किया। प्रार्थना करके इंद्र कहने लगे। एक “नाड़ी जंग” नाम का दैत्य ब्रह्म वंश से चंद्रावती नगरी में उत्पन्न हुआ। उसके पुत्र का नाम मुर है। उस मुर दैत्य ने हमें स्वर्ग से निकाल दिया। आप ही सूर्य बनकर जल का आकर्षण करते हैं। आप ही मेघ बनकर जल बरसाते हैं। भूलोक के बड़े-बड़े कर्मचारी, देवता सब शरणार्थी बन चुके हैं। अतः आप उस बलशाली दैत्य को मार कर हमारा दुख दूर कीजिए।

भगवान बोले- देवताओं मैं तुम्हारे शत्रु का शीघ्र संघार करूंगा। आप निश्चिन्त होकर चंद्रावती नगरी पर चढ़ाई करो। मैं तुम्हारी सहायता करने को पीछे से आऊंगा। आज्ञा मानकर देवता लोग वहां आए जहां युद्ध भूमि में मुर दैत्य गरज रहा था। युद्ध आरंभ हुआ, परंतु मुर के सामने देवता घड़ी भर ना ठहर सके। भगवान विष्णु भी वहां आ पहुंचे। सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी शत्रुओं का संघार करो। चक्र ने चारों ओर सफाई कर दी, एक मुर दैत्य का सिर न कट सका और ना गदा उसकी गर्दन तोड़ सकी।

भगवान ने सारंग धनुष हाथ में लिया। बाणो द्वारा युद्ध प्रारंभ हुआ। परंतु शत्रु को मार ना सके। अंत में कुश्ती करने लगे हजारों वर्ष व्यतीत हो गए। परंतु प्रभु का दावा बंद एक न सफल हुआ। मुर दैत्य पर्वत के समान कठोर था। प्रभु का शरीर कमल के समान कोमल था। थक गए मन में विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई शत्रु को पीठ दिखाकर भाग चले। आपकी विश्राम भूमि बद्रिकाश्रम थी। वह एक गुफा 12 योजन की थी। हेमवती उसका नाम था। उसमें घुसकर सो गए। मुर पीछे-पीछे चलाया। सोते हुए शत्रु को मारने के लिए तैयार हो गया।

उसी समय एक सुंदर कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई। जिसके हाथ में दिव्यास्त्र थे। उसने मुर के अस्त्र शस्त्रों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। रथ भी तोड़ दिया। फिर भी उस शूरवीर ने पीठ ना दिखाई। कुश्ती करने को कन्या के समीप आया। कन्या ने धक्का मार कर गिरा दिया और कहा यह मल्ल युद्ध का फल है। जब उठा तो उसका सिर काट कर कहा। यह हठ योग का फल है। मुर कि सेना पाताल को भाग गई। भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली। यह दैत्य आपको मारने की इच्छा करके आया था। मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया।

भगवान बोले तुमने सब देवताओं की रक्षा की है। मैं तुम पर प्रसन्न हूं। वरदान देने को तैयार हूं। जो कुछ मन में इच्छा हो मांग लो। कन्या बोली जो मनुष्य मेरा व्रत करें। उसके घर में दूध, पुत्र और धन का विकास रहे। अंत में आपके लोक को प्राप्त करें। भगवान बोले तू एकादशी को उत्पन्न हुई है। इस कारण तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा। जो श्रद्धा भक्ति से तेरा व्रत करें। उसको सब तीर्थ के स्नान का फल मिलेगा। घोर पापों से उद्धार करने वाला तेरा व्रत होगा। ऐसा कह कर भगवान अंतर ध्यान हो गए। पतित पावनी विश्व तारिणी का जन्म मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष में हुआ। इस कारण इसका नाम उत्पन्ना प्रसिद्ध है।


Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है?

एकादशी व्रत का प्रारम्भ इस दिन से ही हुआ था । एकादशी देवी का जन्म भगवान श्री हरी विष्णु के शरीर से आज ही के दिन हुआ था। उत्पन्ना एकादशी को वैतरणी एकादशी भी कहा जाता है । जीव योनि से मुक्ति और परम सत्ता में विलय इस इच्छा से ही उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है ।

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कैसे करें?

भगवान विष्णु और एकादशी माता का ध्यान और पूजन करे और इस दिन पूर्ण उपवास रखा जाता है फलहार में गुड़ और बादाम से बनी व्रत की फलहारी का ही सेवन करना चाहिए ।

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब है?

26 नवम्बर 2024 मंगलवार के दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत का दिन है ।

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Ekadashi Mahatyam Vrat Vidhi Katha Types Udyapan Parana | एकादशी महात्यम की व्रत विधि, कथा, महत्त्व, प्रकार, उद्यापन, पारण की विधि https://prabhupuja.com/ekadashi-mahatyam-vrat-vidhi-katha-types-udyapan-parana/ https://prabhupuja.com/ekadashi-mahatyam-vrat-vidhi-katha-types-udyapan-parana/#respond Thu, 29 Feb 2024 11:53:24 +0000 https://prabhupuja.com/?p=2662 Ekadashi Mahatyam Vrat Vidhi Katha Types Udyapan Parana एकादशी व्रत हिन्दू धर्म मे सबसे पवित्र व्रत है और हर माह दो बार यह व्रत किया जाता है । एकादशी देवी का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष मे हुआ था। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्यारस तिथि को यह व्रत किया जाता है । भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है । जो भी मनुष्य श्रद्धा और भक्ति से एकादशी व्रत करता है उनको सभी तीर्थो के स्नान का फल मिलता है और घोर पापो से उद्धार होता है ।

इस व्रत मे पूरे दिन उपवास रखा जाता है।

एकादशी व्रत का परिचय या उत्पत्ति(एकादशी व्रत की कथा)

एकादशी की उत्पत्ति के विषय मे हम विस्तार से यहाँ वर्णन कर रहे है। श्री सूत जी ऋषियों से बोले एकादशी व्रत का महात्यम, विधि और जन्म कि कथा भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्टिर को सुनाई थी, सतयुग मे एक महाभयंकर राक्षस हुआ मुर उसने समस्त ब्रह्माण्ड को जीत लिया था। स्वर्ग लोक भी उसके अधीन था। इंद्र आदि देव भगवान विष्णु की शरण गए। भगवान विष्णु उनकी दशा को देख संसार को उस मुर राक्षस के आतंक से मुक्त करने के लिये मुर का अंत करने को तत्पर हुए। यह युद्ध हजारो साल चला परन्तु भगवान विष्णु का चक्र, गदा, सारंग धनुष मुर का कुछ ना बिगाड़ पाए।

युद्ध करते-करते भगवान विष्णु के मन मे विश्राम की इच्छा उत्पन्न हुई, युद्ध से अंतरध्यान हो प्रभु विश्राम के लिये बद्रिका आश्रम पहुंचे। वहाँ एक गुफा बारह योजन की थी। हेमवती उसका नाम था, उसमे घुसकर सो गए। मुर दैत्य भी पीछे-पीछे चला आया। शत्रु को सोता देख मारने को तत्पर हुआ। तभी उस समय एक सुन्दर सी कन्या प्रभु के शरीर से उत्पन्न हुई। जिसके हाथ मे दिव्यास्त्र थे। उस कन्या ने युद्ध मे मुर दैत्य का अंत किया,

भगवान निद्रा से जागे तो कन्या बोली “यह दैत्य आपको मारने की इच्छा से आया था मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध कर दिया” भगवान ने कन्या को प्रसन्न हो वर मांगने को कहा तो वह बोली “जो मनुष्य मेरा व्रत करे उसके घर कभी दूध, पुत्र और धन की कमी ना रहे और अंत समय वह आपके लोक जा मोक्ष को प्राप्त करे ” भगवान बोले “तू एकादशी के दिन मेरे शरीर से उत्पन्न हुई तो तेरा नाम एकादशी प्रसिद्ध होगा “

इस प्रकार पतित पावनी विश्व तारणी माता एकादशी का जन्म मार्ग शीर्ष के कृष्ण पक्ष मे हुआ। प्रथम एकादशी उत्पन्ना एकादशी कहलाई ।

एकादशी महात्यम व्रत की पूजन विधि

  1. एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर विष्णु भगवान और गरुड़ देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ पीले या सफ़ेद वस्त्र धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही विष्णु भगवान और गरुड़ देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, कुशा, आम के पत्ते, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, फल, प्रसाद, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई, हवन सामग्री और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: प्रातः काल के समय विष्णु भगवान और गरुड़ देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. सर्व प्रथम आसान पर पूर्व मुख होकर बैठे।
  6. पत्नी पति के दाहिनी ओर बैठे और गठजोड़ कर ले फिर पूजन प्रारम्भ करे।
  7. कुशा या आम के पत्ते से स्वयं और सभी पूजन सामग्री पर जल छिड़के।
  8. तीन बार आचमन कर हाथ धो ले पवित्री पहने और मन्त्र उच्चारण करे।
  9. हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर भगवान विष्णु और गरुड़ का आव्हान करे।
  10. अक्षत-पुष्प मूर्ति पर चढ़ा दे।
  11. अब हवन प्रारम्भ करे।
  12. पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती जरूर करें।
  13. भगवान विष्णु पूजन के पश्यात जिस एकादशी व्रत को कर रहे है उसकी कथा सुननी चाहिए।

एकादशी व्रत के नियम

  1. एकादशी व्रत में पूरे दिन उपवास किया जाता है। इस दिन दिनभर में एक समय को फलहारी ग्रहण करना चाहिए। सिंघाड़ा, कुटटु, राजगिरा आटे से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। जैसे पकौड़ी, चीला और बड़ा इत्यादि खाए। तेल में मूंगफली(सींग दाना) का तेल ही इस्तेमाल करे।
  2. आपके नजदीक जो भी चारभुजानाथ जी का मंदिर या राम मंदिर या कृष्ण मंदिर हो, तो वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। विष्णु भगवान की कृपा परिवार पर रहेगी ।
  3. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जप करें।
  4. हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।। हमें इस महामन्त्र का जप हृदय से करना चाहिए।
  5. एकादशी पर चावल न खाएं साथ ही मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, बैंगन और सेमफली भी नहीं खाई जाती है। एकादशी पर तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  6. एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोडना वर्जित होता है। यहाँ तक की तुलसी के पेड़ को स्पर्श भी नहीं किया जाता है।
  7. एकादशी के दिन पवित्र नदी में स्नान व दान-पुण्य भी करना चाहिए ।

एकादशी व्रत का महत्त्व या लाभ

  1. प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना महत्त्व है। हर एकादशी मनुष्य के जाने-अनजाने पापो को नष्ट करने वाली होती है।
  2. जो मनुष्य श्रद्वा और भक्ति से एकादशी व्रत का पालन करता है। उसके जीवन से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्टों का अंत होता है और उसे सुख, सम्पति, आरोग्य और खुशहाली प्राप्त होती है ।
  3. जो भी मनुष्य एकादशी व्रत करता है उसे हरी-विष्णु की परम भक्ति प्राप्त होती है ।
  4. एकादशी करने वाला मनुष्य अपने अंत समय में शांति से प्रभुलोक को जाता है, उसको घोर दुःख नहीं सहना पड़ता है ।
  5. जो गृह स्वामी-स्वामिनी एकादशी व्रत करते है, उनके यहाँ लक्ष्मी का निवास होता है ।

एकादशी व्रत के प्रकार

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष मे बारह मास होते है और प्रत्येक माह मे दो पक्ष और हर एक पक्ष मे एक एकादशी आती है तो एक माह मे दो एकादशी आती है । इस प्रकार एक वर्ष मे कुल 24 एकादशियाँ होती है । कभी-कभी जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है तो उस वर्ष 2 एकादशियाँ और बढ़ जाती है । तो उस वर्ष कुल 26 एकादशियाँ एक वर्ष मे हो जाती है ।

  1. उत्पन्ना एकादशी
  2. मोक्षदा एकादशी
  3. सफला एकादशी
  4. पुत्रदा एकादशी
  5. षटतिला एकादशी
  6. जया एकादशी
  7. विजया एकादशी
  8. आमलकी एकादशी
  9. पापमोचिनी एकादशी
  10. कामदा एकादशी
  11. वरुथिनी एकादशी
  12. मोहिनी एकादशी
  13. अपरा एकादशी
  14. निर्जला एकादशी
  15. योगिनी एकादशी
  16. देवशयनी एकादशी
  17. कामिका एकादशी
  18. पुत्रदा एकादशी
  19. अजा एकादशी
  20. परिवर्तनी(पद्मा या वामन) एकादशी
  21. इंदिरा एकादशी
  22. पापांकुशा एकादशी
  23. रमा एकादशी
  24. प्रबोधिनी एकादशी

अधिक मास की दो एकादशियाँ

  1. पद्मिनी एकादशी
  2. परमा एकादशी

ये सभी एकादशियाँ नाम के अनुसार फल देने वाली होती है। भवसागर से मुक्ति दिलाती है और अंत मे स्वर्गलोक प्राप्ति मे सहायक होती है ।

एकादशी व्रत की उद्यापन विधि

उद्यापन किये बिना कोई भी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है । एकादशी व्रत का उद्यापन अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को करना चाहिए । माघ में अथवा भीम तिथि को भी उद्यापन किया जा सकता है । उद्यापन किसी योग्य आचार्य के द्वारा ही संपन्न कराये।

एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता है, जब व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष कुछ समय तक नियमित व्रत करने का संकल्प करें। भगवान को साक्षी मानकर किए व्रत के संकल्प की पूर्णता अंतिम व्रत के पश्चात उसके उद्यापन करने पर पूरी होती है। व्रत के संकल्प का पूर्ण फल तभी मिलता है, जब उसका उद्यापन विधि-विधानपूर्वक किया जाता है।

दशमी के दिन एक समय भोजन करें, एकादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र होकर उद्यापन करें। एकादशी के व्रत का उद्यापन करते समय भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा आराधना तो की ही जाती है, साथ ही हवन भी अनिवार्य रूप से किया जाता है। उद्यापन वाले दिन व्रत धारक पत्नी सहित पूजन करते है। प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर, स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल को सुंदर रूप से सजाकर और सभी पूजन सामग्री पास में रखकर, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की षोडशमातृका आराधना की जाती है।

पवित्रीकरण, भूतशुद्धि और शांतिपाठ के बाद, गणेश जी के पूजन आदि की सभी क्रियाएं की जाती है। एकादशी व्रत के उद्यापन की पूजा में कलश स्थापना हेतु तांबे के कलश में चावल भरकर रखने का शास्त्रीय विधान है। अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का ध्यान तथा आह्वान किया जाता है। भगवान कृष्ण, प्रभु श्री राम, अग्नि, इंद्र, प्रजापति ब्रह्मा जी आदि का भी आह्वान किया जाता है।

इसके बाद मंत्रो का स्तवन करते हुए एक-एक करके भगवान को सभी सेवाएं और वस्तुएं अर्पित की जाती है। तत्पश्चात हवन किया जाता है। यह सभी कार्य पूजन करने वाले ब्राह्मण द्वारा संपन्न होते है। हवन के उपरांत आचार्य को पूजा में प्रयुक्त सभी वस्तुएं अर्पित करने का विधान है।

एकादशी उद्यापन की सामग्री

रोली, मोली, धूपबत्ती, केसर, कपूर, सिंदूर, चन्दन, होरसा, पेड़ा, बतासा, ऋतुफल, केला, पान, सुपारी, रुई, पुष्पमाला, पुष्प, दूर्वा, कुशा, गंगाजल, तुलसी, अग्निहोत्र, भस्म, गोमूत्र, धृत, शहद, चीनी, दूध, यज्ञोपवीत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गुलाब जल, धान का लावा, इत्र, शिशा, इलाइची, जावित्री, जायफल, पंचमेवा, हल्दी, पीली सरसों, मेहंदी, नारियल(श्रीफल), नारियल गोला, पंचपल्लव, वंदनवार, कच्चा सूत, मूंग की दाल, काले उड़द, सूप, बिल्वपत्र, भोजपत्र, पंचरत्न, सर्वोषधि, सप्तमृतिका, सप्तधान्य, पंचरंग, नवग्रह समिधा, चौकी, घंटा, शंख, कटिया, कलश, गंगासागर,

कटोरी, कटोरा, चरुस्थली, आज्यस्थली, बाल्टी, कलछी, गंडासी, चिमटा, प्रधान प्रतिमा सुवर्ण की, प्रधान प्रतिमा चांदी की, चांदी की कटोरी, पंचपात्र, आचमनी, अर्धा, तष्टा, सुवर्ण जिव्हा, स्वर्ण शलाका, सिंहासन, छत्र, चमर, तिल, चावल, चीनी, पंचमेवा, यव, धृत, भोजपत्र, बालू, ईट, हवनार्थ आम की लकड़ी, दियासलाई, यज्ञपात, गोयंठा ।

वरण सामग्री:- धोती, दुपट्टा, अंगोछा, यज्ञोपवीत, पंचपात्र, आचमनी, छाता, गिलास, लोटा, अर्धा, तष्टा, छड़ी, कुशासन, कंबलासन, कटोरी, गोमुखी, रुद्राक्षमाला, पुष्पमाला, खड़ाऊ, अंगूठी, देवताओं को वस्त्र आदि।

शैय्या सामग्री:- विष्णु भगवान की प्रतिमा, पलंग, तकिया, चादर, दरी, रजाई, पहनने के वस्त्र, छाता, जूता, खड़ाऊ, पुस्तक, आसन, शीशा, घंटी, पानदान, छत्रदान, भोजन के बर्तन, चूल्हा, लालटेन, पंखा, अन्न, धृत, आभूषण।

एकादशी व्रत के पारण की विधि(उपवास खोलने की विधि)

एकादशी व्रत के उपरांत द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मण को पहले भोजन कराना चाहिए । अगर ऐसा करने में असमर्थ हो तो ब्राह्मण भोजन के निमित्त कच्चा सामान(सीधा) मंदिर में या सुपात्र ब्राह्मण को थाली सजाकर देना चाहिए ।

हरिवासर में पारण करना निषेध है। द्वादशी तिथि का पहला चौथाई समय हरिवासर कहलाता है।

सादा भोजन बनाकर प्रभु को भोग लगाकर स्वयं एकादशी व्रत खोले ।

निम्न लिखित एकादशी-व्रत पारण मन्त्र बोलकर तत्पश्यात एकादशी व्रत खोले ।

एकादशी-व्रत पारण मन्त्र

तव प्रसाद-स्वीकारात् कृतं यत् पारणं मया।
व्रतेनानेन सन्तुष्टः स्वस्तिं भक्तिं प्रयच्छ मे॥

एकादशी की आरती Ekadashi Aarti

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गुण गौरव की देवी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष में उत्पन्ना होती।
शुक्ल पक्ष में मोक्षदायिनी, पापो को धोती॥
ॐ जय एकादशी…॥

पौष मास के कृष्णपक्ष को, सफला नाम कहे।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहे॥
ॐ जय एकादशी…॥

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥

विजया फागुन कृष्णपक्ष में, शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्रमास बलिकी॥
ॐ जय एकादशी…॥

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम वरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माहवाली॥
ॐ जय एकादशी…॥

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी, अपरा ज्येष्ठ कृष्ण पक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रक्खी॥
ॐ जय एकादशी…॥

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष वरनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ल होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, पाप हरन हारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुःख नाशक मैया।
पावन मास लोंद में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल लोंद में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन ‘रघुनाथ’ स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥

Disclaimer (खंडन)

‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी’।

FAQ

एक माह में कितनी एकादशी आती है ?

हिन्दू कैलेंडर के एक माह में दो पक्ष होते है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में एक-एक एकादशी आती है अर्थात एक माह में दो एकादशी व्रत आते है।

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Shanivar Vrat Vidhi Katha शनिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व https://prabhupuja.com/shanivar-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/shanivar-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Sat, 10 Feb 2024 10:41:08 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1956 Shanivar Vrat Vidhi Katha Saturday Vrat शनिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस दिन शनि देव की पूजा की जाती है। यह व्रत करने से शनि देवता अति प्रसन्न होते है। इस व्रत के करने से सब प्रकार की सांसारिक झंझटे दूर होती है। इस व्रत से अगर कोई झगड़ा चल रहा हो तो उसमे विजय प्राप्त होती है। काला तिल, काला वस्त्र, तेल तथा उड़द शनि देव को अति प्रिय है, इसलिए इनके द्वारा शनि देव की पूजा की जाती है।

शनिवार का व्रत 51 या 21 शनिवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। काली वस्तु का दान भी करना चाहिए।

Shanivar Vrat Vidhi शनिवार व्रत कैसे करे (शनिवार व्रत की विधि)

  1. शनिवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर शनि देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही शनि देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये शुद्ध जल, काला पुष्प, काला वस्त्र, फल, इमरती(प्रसाद), काला तिल, उड़द, धूप, दीप, लौंग, दूध, चीनी, गंगाजल, पान, सुपारी, तेल, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: शाम के समय शनि देव और हनुमान जी भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय शनि ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. शनिवार व्रत में उड़द(कलाई) के आटे से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। जैसे पकौड़ी, चीला और बड़ा इत्यादि खाए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। शाम के समय पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है।
  6. पूजन के अंत में शनि देव और हनुमान जी भगवान की आरती जरूर करें।
  7. शनि देव पूजन के पश्यात शनिवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. शनिवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री शनि कवचं, श्री शनि स्तुति और शनि स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
  9. शनिवार व्रत में पीपल के पेड़ का भी पूजन किया जाता है ।

Shanivar Vrat Rules शनिवार व्रत के नियम

  1. शनिवार व्रत के दिन भोजन का कोई विशेष नियम नहीं है।
  2. पूरे दिन में भोजन एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व शनि देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. श्री शनि कवचं, श्री शनि स्तुति, श्री शनि स्त्रोतम का पाठ और शनि मन्त्र की 21, 11 या 5 माला जरूर करें।
  4. शनि व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी शनि या हनुमान मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। शनि देव की कृपा परिवार पर रहेगी ।
  6. शनि ग्रह का राशि-भोग काल: शनि ग्रह ढाई वर्ष में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर ढाई साल तक रहता है।
  7. शनि ग्रह की दृष्टि: शनि ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे, सप्तम तथा दसवें भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से देखता है।
  8. शनि ग्रह की जाति: शनि ग्रह की जाति ‘असुर’ जाति है।
  9. शनि ग्रह का रंग: शनि ग्रह का रंग ‘काला रंग’ होता है।
  10. शनि ग्रह ‘दुःख’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
  11. शनि ग्रह ‘पाप ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
  12. शनि शान्त्यर्थ रत्न : नीलम
  13. शनि ग्रह की दान वस्तुएँ: माष, तिल, तेल, कुलथी, लोहा, भैंस, काली गाय, काले वस्त्र, इंद्रनील मणि, उड़द, काले जूते, सोना, काला कम्बल, काले रंग के पुष्प, कस्तूरी । शनिवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय मध्यान्ह 12 बजे रहता है।

Shanivar Vrat Mantra शनिवार व्रत का मंत्र

शनि ग्रह की जप संख्या: शनि ग्रह की जप संख्या 23000 जप की है।
शनि मन्त्र – ऊँ शं शनैश्चराय नमः ।
शनि ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनये नमः|
शनि मन्त्र की 21, 11 या 5 माला की जाती है ।

विशेष:- काले वस्त्र धारण करके मन्त्र जप करे और जप करते समय एक पात्र में शुद्ध जल, काला तिल, दूध, चीनी और गंगाजल अपने पास रख ले । जप के बाद इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ में पश्चिम मुखी होकर चढ़ा दें।

Shanivar Vrat Significance शनिवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. शनिवार का व्रत करने से सभी दुखो का निवारण होता है।
  2. शनिवार का व्रत लोहे, मशीनरी, कारखाने वालो को जरूर करना चाहिए, इससे व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
  3. जिस किसी की कुंडली में शनि की दशा बनी हो उसे शनिवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका शनि दोष दूर होता है ।
  4. शनिवार के दिन हनुमान जी और शनि देव की पूजा-अर्चना करने से शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती है।
  5. शनिवार का व्रत करने से शनि देव अति प्रसन्न होते है तथा पूर्व जन्म और इस जन्म के कर्म फल की प्राप्ति सरलता से होती है। दुखो का अंत शीघ्र ही करने वाले है शनि देव।
  6. रोग रहित लम्बी आयु की इच्छा रखने वालो को यह व्रत अवश्य करना चाहिए ।
  7. कलियुग में “पाप ग्रहो” की प्रधानता होती है इसी कारण शनि देव जिस पर भी प्रसन्न हो तो उसका जीवन सुखमय और सफल बन जाता है।

Shanivar Vrat Aarti शनिवार व्रत की आरती( शनि देव की आरती) Shani Dev ki Aarti

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥

Shanivar Vrat Katha शनिवार व्रत की कथा(शनिवार व्रत की पौराणिक कथा)

एक समय की बात है. सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया. वे सभी ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इंद्र देव के पास गए. वे भी निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेज दिया क्योंकि वे एक न्यायप्रिय राजा थे.

सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में बताया. राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाया और उनको क्रम से रख दिया. उन्होंने सभी ग्रहों से इस पर बैठने को कहा. साथ ही कहा कि जो सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह होगा. लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे. इस वजह से वे नाराज हो गए.

उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुमने जानबूझकर ऐसा किया है. तुम जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक होती है. शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है. शनि की साढ़ेसाती आई तो राम को वनवास हुआ और रावण पर शनि की महादशा आई तो उसका सर्वनाश हो गया. अब तुम सावधान रहना.

कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई. तब शनि देव घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए. राजा विक्रमादित्य को पता चला कि एक सौदागर अच्छे घोड़े लेकर आया है, तो उन्होंने उनको खरीदने का आदेश दिया. एक दिन राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर बैठे, तो वो उनको लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया.

राजा विक्रमादित्य का बुरा वक्त शुरु हो गया. भूख प्यास से वे तड़प रहे थे, तो एक ग्वाले ने पानी पिलाया, तो राजा ने उसे अपनी अंगूठी दे दी. फिर नगर की ओर चल दिए. एक सेठ के यहां पानी पिया. अपना नाम उज्जैन का वीका बताया. सेठ वीका को लेकर घर गया. वहां उसने देखा कि एक खूंटी पर हार टंगा है और खूंटी उसे निगल रही है. देखते ही देखते हार गायब हो गया. हार चुराने के आरोप में सेठ ने वीका को कोलवाल से पकड़वा दिया.

वहां के राजा ने वीका का हाथ-पैर कटवा दिया और नगर के बाहर छोड़ने का आदेश दिया. वहां से एक तेली गुजर रहा था, वीका को देखकर उस पर दया आई. उसने उसे बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चल दिया. उस समय शनि की महादशा समाप्त हो गई. वीका वर्षा ऋतु में मल्हार गा रहा था, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने उसकी आवाज सुनी, तो उससे ही विवाह करने की जिद पर बैठ गई. हारकर राजा ने बेटी की विवाह वीका से कर दिया.

एक रात शनि देव ने वीका को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि तुमने मुझे छोटा कहने का परिणाम देख लिया. तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें. तब शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा का श्रवण करेगा और व्रत रहेगा, उसे शनि दशा में कोई दुख नहीं होगा. शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए.

जब सेठ को पता चला कि मीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर सत्कार अपने घर पर किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया. इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया. राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं. तब से राजा विक्रमादित्य के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज होने लगी.

Shani Kavacham श्री शनि कवचं

विनियोग : अस्य श्रीशनैश्चर कवच स्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: शनैश्चरो देवता, श्रीं शक्ति: शूं कीलकम्, शनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग: ।

अथ श्रीशनि कवचम्

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।1।।
ब्रह्मा उवाच
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।
ॐ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन: ।।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज: ।।4।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज: ।।5।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।


नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन: ।।8।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज: ।।9।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।10।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु: ।।12।।

|| इति श्री ब्रह्माण्ड पुराणे शनैश्चर कवचम् सम्पूर्णम् ||

श्री शनि स्तुति Shri Shani Stuti

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन।जय कृष्णो सौरी जगवन्दन॥
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा।वप्र आदि कोणस्थ ललामा॥
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा।क्षण महँ करत रंक क्षण राजा॥
ललत स्वर्ण पद करत निहाला।हरहु विपत्ति छाया के लाला॥

Shani Stotram श्री शनि स्त्रोत्रं

विनियोग- अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रमन्त्रस्य दशरथ ऋषिः।

श्री शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। शनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

दशरथ उवाच

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिङ्गलमन्दसौरिः।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥1॥

सुरासुराः किम्पुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥2॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतङ्गभृङ्गाः।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥3॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिषेशाः पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥4॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥5॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥6॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।
गृहाद्गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥7॥

स्रष्टा स्वयम्भूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुस्साममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥8॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥9॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥10॥

एतानि दशनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥11॥

॥इति श्री दशरथकृतं श्री शनैश्चराष्टकं सम्पूर्णम्॥

शनिवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

FAQ

शनिवार व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?

शनिवार व्रत को शाम के समय शनि देव और हनुमान जी की पूजा करने के बाद कभी भी खोला जा सकता है । भोजन एक समय ही करना चाहिए। उड़द से बनी पकोड़ी, पंजीरी, चीला और बड़ा जरूर खाए। इस दिन तेल से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। फल में केला खाए ।

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Shukravar Vrat Vidhi Katha शुक्रवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व https://prabhupuja.com/shukravar-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/shukravar-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Thu, 08 Feb 2024 11:06:46 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1955 Shukravar Vrat Vidhi Katha Friday Vrat शुक्रवार व्रत की सम्पूर्ण विधि, कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस दिन संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा की जाती है । यह व्रत करने से शुक्र देवता अति प्रसन्न होते है। यह व्रत करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। इस व्रत को करने वाला कथा के पूर्व कलश को जल से पूर्ण भरे, उसके ऊपर गुड़ व चने से भरी कटोरी रखे, कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने चने अवश्य रखे । सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद वस्त्र तथा सफ़ेद चन्दन से शुक्र भगवान की पूजा करनी चाहिए।

शुक्रवार का व्रत 31 या 21 शुक्रवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। सफ़ेद वस्तु का दान भी करना चाहिए।

Shukravar Vrat Vidhi शुक्रवार व्रत कैसे करे (शुक्रवार व्रत की विधि)

  1. शुक्रवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। शुक्र देव की पूजा के लिये जल, सफ़ेद पुष्प, सफ़ेद वस्त्र तथा सफ़ेद चन्दन, फल, सफ़ेद मिष्ठान, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है। संतोषी माता की पूजा के लिये जल, गुड़, भुना चना, नारियल(श्री फल), कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: सुबह के समय दिन के तीसरे प्रहर तक संतोषी माता और शुक्र देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय शुक्र ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. शुक्रवार व्रत में नमक रहित चावल, चीनी, दूध, दही, बेसन, चना दाल और घी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। प्रातः पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है।
  6. पूजन के अंत में संतोषी माता की और शुक्र देव की आरती जरूर करें।
  7. शुक्र पूजन के पश्यात शुक्रवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. शुक्रवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री शुक्र कवचं, श्री शुक्र स्तुति और शुक्र स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
  9. शुक्रवार व्रत में महिलाओ को संतोषी माता का भी पूजन जरूर करना चाहिए

Shukravar Vrat Rules शुक्रवार व्रत के नियम

  1. शुक्रवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन इस दिन पूर्ण वर्जित होता है।
  2. पूरे दिन में भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व शुक्र देव का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. श्री शुक्र कवचं, श्री शुक्र स्त्रोत, श्री शुक्र स्तुति का पाठ और शुक्र मन्त्र की 21, 11 या 5 माला जरूर करें।
  4. शुक्रवार व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी शुक्र या संतोषी माता मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए।
  6. शुक्र ग्रह का राशि-भोग काल: शुक्र ग्रह एक माह में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर एक माह तक रहता है।
  7. शुक्र ग्रह की दृष्टि: शुक्र ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे तथा दसवें भाव को ‘एक पाद’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से तथा पांचवे तथा नवे भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ से देखता है।
  8. शुक्र ग्रह की जाति: शुक्र ग्रह की जाति ‘ब्राह्मण’ जाति है।
  9. शुक्र ग्रह का रंग: शुक्र ग्रह का रंग ‘श्वेत(सफ़ेद) रंग’ होता है।
  10. शुक्र ग्रह ‘वीर्य अर्थात काम’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
  11. शुक्र ग्रह ‘शुभ ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
  12. शुक्र शान्त्यर्थ रत्न : हीरा
  13. शुक्र ग्रह की दान वस्तुएँ: चित्राम्बर, धेनु, श्वेत घोडा, हीरा, सोना, चाँदी, चावल, श्वेत धान्य, श्वेत वस्त्र, सफ़ेद चन्दन, शंख, दही, मिश्री, बुरा, श्वेत पुष्प, धृत और सुगंध। शुक्रवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय प्रातःकाल सूर्योदय का रहता है।

Shukravar Vrat Mantra शुक्रवार व्रत का मंत्र

शुक्र ग्रह की जप संख्या: शुक्र ग्रह की जप संख्या 16000 या 11000 जप की होती है।
शुक्र मन्त्र – ॐ शुं शुक्राय नमः ।
शुक्र ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः 
माला संख्या- शुक्र मन्त्र की 21, 11 या 5 माला की जाती है ।

Shukravar Vrat Significance शुक्रवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. शुक्रवार का व्रत करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।
  2. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र मज़बूत होता है, उसे कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी महसूस नहीं होती।
  3. शुक्रवार का व्रत करने से उसे समाज में बहुत सम्मान मिलता है। नौकरी में तरक्की और व्यापार-व्यवसाय में खूब पैसा मिलता है।
  4. जिस किसी की कुंडली में शुक्र की दृष्टि कमजोर हो उसे शुक्रवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका शुक्र मजबूत होता है ।
  5. शुक्रवार के दिन संतोषी माता और शुक्र देव की पूजा-अर्चना करने से शुक्र मजबूत होगा जिससे धन और समृद्धि मिलने में सहायता मिलती है ।
  6. यह व्रत करने से शुक्र भगवान अति प्रसन्न होते है तथा अन्न, धन का लाभ तथा रूपवती पत्नी प्राप्त होती है।
  7. पुरुष की कुंडली में पत्नी ही शुक्र रूप में रहती है, यह व्रत करने से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
  8. सभी को जीवन में धन और सुख की लालसा होती है और शुक्र ग्रह ‘वीर्य अर्थात काम‘ का अधिष्ठाता ग्रह है। तो जिस किसी को धन और सुख चाहिए वो शुक्रवार का व्रत जरूर करे।

Shukravar Vrat Aarti शुक्रवार व्रत की आरती( शुक्र भगवान की आरती) Shukr Bhagwan ki Aarti

संतोषी माता की आरती

संतोषी माता की आरती के लिये लिंक पर क्लिक करे

शुक्र देव की आरती

आरती लक्ष्मण बलजीत की ||

असुर संहारण प्राण पति की ||

जग भग ज्योति अवधपुरी राजे ||

शेषाचल पे आप विराजे ||

तिन लोक जाकी शोभा राजे ||
कंचन थार कपूर सुहाई |

आरती करत सुमित्रा माई ||

आरती कीजै हरी की तैसी |

धुर्व प्रहलाद विभीषन जैसी ||

प्रेम मग्न होय आरती गावे |

बसि बैकुण्ठ परम् पद पावे ||

आरती लक्ष्मण बलजीत की ||

असुर संहारण प्राण पति की ||

Shukravar Vrat Katha शुक्रवार व्रत की कथा(शुक्रवार व्रत की पौराणिक कथा)

शुक्रवार व्रत की कथा 1

एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया छहों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह सातवें को दे देती।

एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी माँ को मुझ पर कितना प्रेम है।
वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है।
वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आँखों से न देख लूं मान नहीं सकता।
बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।

कुछ दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जमाया। वह देखता रहा।

छहों भोजन करके उठे तब माँ ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया।
जूठन साफ कर बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा।
वह कहने लगा- माँ मुझे भोजन नहीं करना, मैं अब परदेश जा रहा हूँ।
माँ ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा।
वह बोला- हाँ आज ही जा रहा हूँ। यह कह कर वह घर से निकल गया।

सातवें बेटे का परदेश जाना-
चलते समय पत्नी की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे (उपले) थाप रही थी।
वहाँ जाकर बोला-
हम जावे परदेश आवेंगे कुछ काल,
तुम रहियो संतोष से धर्म आपनो पाल।

वह बोली-
जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय,
राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।
दो निशानी आपन देख धरूं में धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।

वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे।
वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुँचा।

परदेश मे नौकरी-
वहाँ एक साहूकार की दुकान थी। वहाँ जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो।
साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा।
लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे।
साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया।

सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया।

पति की अनुपस्थिति में सास का अत्याचार-
इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।

संतोषी माता का व्रत-
वह वहाँ खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है। यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी।

तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी।

संतोषी माता व्रत विधि-
वह भक्तिनि स्त्री बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना।

तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना, जहाँ तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में खटाई न खाना। यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी।

व्रत का प्रण करना और माँ संतोषी का दर्शन देना-
रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है।
सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी।
दीन हो विनती करने लगी- माँ मैं निपट अज्ञानी हूँ, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूँ। हे माता ! जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूँ।

माता को दया आई- एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुँचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे।
लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी।
बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कह कर आँखों में आँसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। माँ मैंने तुमसे पैसा कब माँगा है।

मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन माँगती हूँ। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा- जा बेटी, तेरा स्वामी आयेगा।

यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी। अब संतोषी माँ विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया कि तेरा पति आयेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता।

उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है।
वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूँ कहो क्या आज्ञा है?
माँ कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं।
वह बोला- मेरे पास सब कुछ है माँ-बाप है बहू है क्या कमी है।
माँ बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे माँ-बाप उसे परेशानी दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले।

वह बोला- हाँ माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं?
माँ कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ।

देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहाँ काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता! यह धूल कैसे उड़ रही है?
माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर।

तेरे पति को लकड़ियों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहाँ रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर माँ से मिलने जाएगा, तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर जाना और चौक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा।

इतने में मुसाफिर आ पहुँचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गाँव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गाँव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकड़ियों का भारी बोझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।

यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है।
माँ से पूछता है- माँ यह कौन है?
माँ बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गाँव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है।

वह बोला- ठीक है माँ मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूँगा।
माँ बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल-
उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है।
पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई माँगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो।

लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है।
वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।
लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहू कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए।

लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकट्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहू से यह सहन नहीं हुए।

माँ संतोषी से माँगी माफी-
रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता! तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी।
माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है।
वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैंने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूँगी।
माँ बोली- अब भूल मत करना।

वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे?
माँ बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला।
वह पूछी- कहाँ गए थे?
वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने माँगा था, वह भरने गया था।
वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया..

फिर किया व्रत का उद्यापन-
वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है।
पति ने कहा- करो, बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई माँगना।
लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।
वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

संतोषी माता का फल-
माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी।
माँ ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।
देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे।

बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा।
वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में माँ के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।
वह बोली- माँ मैं जिसका व्रत करती हूँ यह संतोषी माता है।

सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
बोलो संतोषी माता की जय।

शुक्रवार व्रत की कथा 2

एक समय की बात है। एक नगर में कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य जाति के तीनों लड़कों में परस्पर गहरी मित्रता थी। उन तीनों का विवाह भी हो गया था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गोना भी हो गया था। परंतु वैश्य के लड़के का गोना नहीं हुआ था। एक दिन का कायस्थ के लड़के ने वैश्य के लड़के से कहा कि ‘है मित्र तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते। स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है। यह बातें वैश्य के लड़के को जच गई वह कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा लेकर आता हूं।

ब्राह्मण के लड़के ने कहा अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र अस्त हो गया है। जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना। परंतु वैश्य के लड़के को ऐसी जिद हो गई, वह किसी प्रकार से नहीं माना। जब उसके घर वालों ने सुना तो उन्होंने भी बहुत समझाया। परंतु वह किसी प्रकार से नहीं माना और अपने ससुराल चला गया। उसको आया हुआ देखकर ससुराल वाले भी चकराए, जामाता का स्वागत सत्कार करने के बाद उन्होंने पूछा कि आपका कैसे आना हुआ। वैश्य पुत्र बोला कि मैं पत्नी को विदा करने के लिए आया हूं।

ससुराल वालों ने भी उसे बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र अस्त है, उदय होने पर ले जाना परंतु उसने एक न सुनी और पत्नी को ले जाने का आग्रह करता रहा। जब वह किसी भी प्रकार ना माना तो, उन्होंने लाचार होकर अपनी पुत्री को विदा कर दिया। वैश्य पुत्र पत्नी को एक रथ में बिठाकर अपने घर की ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूटकर गिर गया और बैल का पूरा पैर टूट गया। उसकी पत्नी भी गिर गई और घायल हो गई। जब आगे चले तो रास्ते में डाकू मिले उसके पास जो धन, वस्त्र तथा आभूषण थे। वह सब उन्होंने छीन लिए।

इस प्रकार अनेक कष्ट का सामना कर जब पति-पत्नी अपने घर पहुंचे, तो घर आते ही वैश्य के लड़के को सर्प ने काट लिया। वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। तब उसकी स्त्री अत्यंत विलाप कर रोने लगी। सेठ ने अपने पुत्र को वैद्य को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे, यह तीन दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। जब उसके मित्र ब्राह्मण के लड़के को सारी बात पता लगी तो उसने घर आकर कहा सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार जिस समय शुक्र अस्त हो तो कोई भी अपनी स्त्री को नहीं लाता। परंतु यह शुक्र के अस्त में भी स्त्री को विदा करा कर ले आया। इस कारण सारे विघ्न उपस्थित हुए हैं।

यदि यह दोनों ससुराल वापस चले जाए और शुक्र के उदय होने पर पुनः आवे तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है। सेठ ने अपने पुत्र और उसकी पत्नी को शीघ्र ही उसके ससुराल वापस पंहुचा दिया।

वहां पहुंचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दूर हो गई और साधारण उपचार से ही सर्प-विष से मुक्त हो गया। अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए। वैश्य पुत्र अपने ससुराल में स्वास्थ्य लाभ करता रहा और जब शुक्र का उदय हुआ। तब हर्ष पूर्वक उसके ससुराल वालों ने उसको अपनी पुत्री सहित विदा किया। इसके पश्चात पति-पत्नी दोनों घर आकर आनंद से रहने लगे। शुक्रवार व्रत को करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं। शुक्र देव की कृपा से सब मंगल होता है।

Shukra Kavacham श्री शुक्र कवचं

विनियोग – अस्य शुक्रकवचस्तोत्र मन्त्रस्य, भारद्वाज ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥

अथ श्रीशुक्र कवचम्

मृणालकुन्देन्दुषयोजसुप्रभं
पीतांबरं प्रस्रुतमक्षमालिनम् ।
समस्तशास्त्रार्थनिधिं महांतं
ध्यायेत्कविं वांछितमर्थसिद्धये ॥

ॐ शिरो मे भार्गवः पातु भालं पातु ग्रहाधिपः ।

नेत्रे दैत्यगुरुः पातु श्रोत्रे मे चन्दनदयुतिः ॥

पातु मे नासिकां काव्यो वदनं दैत्यवन्दितः ।

जिह्वा मे चोशनाः पातु कंठं श्रीकंठभक्तिमान् ॥

भुजौ तेजोनिधिः पातु कुक्षिं पातु मनोव्रजः ।

नाभिं भृगुसुतः पातु मध्यं पातु महीप्रियः॥

कटिं मे पातु विश्वात्मा ऊरु मे सुरपूजितः ।

जानू जाड्यहरः पातु जंघे ज्ञानवतां वरः ॥

गुल्फ़ौ गुणनिधिः पातु पातु पादौ वरांबरः।

सर्वाण्यङ्गानि मे पातु स्वर्णमालापरिष्कृतः ॥

य इदं कवचं दिव्यं पठति श्रद्धयान्वितः ।

न तस्य जायते पीडा भार्गवस्य प्रसादतः ॥

|| इति श्री ब्रह्माण्ड पुराणे शुक्र कवचम् सम्पूर्णम् ||

श्री शुक्र स्तुति Shri Shukra Stuti

शुक्र देव पद तल जल जाता।दास निरन्तन ध्यान लगाता॥

हे उशना भार्गव भृगु नन्दन।दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन॥

भृगुकुल भूषण दूषण हारी।हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी॥

तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा।नर शरीर के तुमहीं राजा॥

Shukra Stotram श्री शुक्र स्त्रोत्रं

विनियोग – अस्य शुक्रस्तोत्रस्य प्रजापतिऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥

शुक्रः काव्यः शुक्ररेता शुक्लाम्बरधरः सुधीः ।

हिमाभः कुन्तधवलः शुभ्रांशुः शुक्लभूषणः ॥ १॥

नीतिज्ञो नीतिकृन्नीतिमार्गगामी ग्रहाधिपः ।

उशना वेदवेदाङ्गपारगः कविरात्मवित् ॥ २॥

भार्गवः करुणाः सिन्धुर्ज्ञानगम्यः सुतप्रदः ।

शुक्रस्यैतानि नामानि शुक्रं स्मृत्वा तु यः पठेत् ॥ ३॥

आयुर्धनं सुखं पुत्रं लक्ष्मींवसतिमुत्तमाम् ।

विद्यां चैव स्वयं तस्मै शुक्रस्तुष्टोददाति च ॥ ४॥

इति श्रीस्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

शुक्रवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

FAQ

शुक्रवार व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?

शुक्रवार व्रत को पूरे दिन में संतोषी माता या शुक्र देव की पूजा करने के बाद कभी भी खोला जा सकता है । भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए। चावल, चीनी, दूध, दही, बेसन, चना दाल और घी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए।

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Guruvar Vrat Vidhi Katha गुरुवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व https://prabhupuja.com/guruvar-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/guruvar-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Mon, 29 Jan 2024 16:48:23 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1954 Guruvar Vrat Vidhi Katha Thursday Vrat, Brihaspativar Vrat गुरुवार या बृहस्पतिवार व्रत की सम्पूर्ण विधि, कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है । बृहस्पति गृह सभी ग्रहो के “गुरु” है। यह व्रत करने से बृहस्पति देवता अति प्रसन्न होते है। यह व्रत विद्यार्थियों के लिये बुद्धि और विद्याप्रद होता है। इस व्रत से धन की स्थिरता और यश की वृद्धि होती है। पीला पुष्प, पीला वस्त्र तथा पीले चन्दन से बृहस्पति भगवान की पूजा करनी चाहिए।

गुरुवार का व्रत 3 वर्ष, 1 वर्ष या 16 गुरुवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। पिली वस्तु का दान भी करना चाहिए।

Guruvar Vrat Vidhi गुरुवार व्रत कैसे करे (गुरुवार व्रत की विधि)

  1. गुरुवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही भगवान विष्णु की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये जल, पीला पुष्प, पीला वस्त्र तथा पीला चन्दन, फल, पीला मिष्ठान, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: सुबह के समय दिन के तीसरे प्रहर तक भगवान विष्णु और बृहस्पति भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय बृहस्पति ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. गुरुवार व्रत में नमक रहित बेसन, चना दाल, घी और चीनी से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। प्रातः पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है। बेसन के लडडू और पीले फलो का सेवन किया जा सकता है।
  6. पूजन के अंत में विष्णु भगवान की आरती जरूर करें।
  7. विष्णु भगवान पूजन के पश्यात गुरुवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. गुरुवार (बृहस्पति) कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री बृहस्पति कवचं, श्री बृहस्पति स्तुति और बृहस्पति स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
  9. गुरुवार व्रत में केले के पेड़ का भी पूजन किया जाता है ।

Guruvar Vrat Rules गुरुवार व्रत के नियम

  1. गुरुवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन इस दिन पूर्ण वर्जित होता है।
  2. पूरे दिन में भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व विष्णु भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. श्री बृहस्पति कवचं, श्री बृहस्पति स्तुति का पाठ और बृहस्पति मन्त्र की 16 , 5 या 3 माला जरूर करें।
  4. बृहस्पति व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी बृहस्पति या विष्णु मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। विष्णु भगवान जी की कृपा परिवार पर रहेगी ।
  6. बृहस्पति ग्रह का राशि-भोग काल: बृहस्पति ग्रह एक वर्ष में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर एक साल तक रहता है।
  7. बृहस्पति ग्रह की दृष्टि: बृहस्पति ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे तथा दसवें भाव को ‘एक पाद’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से तथा पांचवे तथा नवे भाव को ‘पूर्ण दृष्टि’ से देखता है।
  8. बृहस्पति ग्रह की जाति: बृहस्पति ग्रह की जाति ‘ब्राह्मण’ जाति है।
  9. बृहस्पति ग्रह का रंग: बृहस्पति ग्रह का रंग ‘पीला रंग’ होता है।
  10. बृहस्पति ग्रह ‘ज्ञान तथा सुख’ का अधिष्ठाता ग्रह है।
  11. बृहस्पति ग्रह ‘शुभ ग्रह’ की श्रेणी में आता है।
  12. बृहस्पति शान्त्यर्थ रत्न : पुखराज या मोती
  13. बृहस्पति ग्रह की दान वस्तुएँ: पीला वस्त्र, हल्दी, चना, पुखराज, सोना, धृत, पीले फूल, चने की दाल, घोडा, चीनी , केसर, कासी, पीत धान्य और पीले फल। बृहस्पतिवार के दिन दान का सबसे उत्तम समय संध्या काल रहता है।

Guruvar Vrat Mantra गुरुवार व्रत का मंत्र

बृहस्पति ग्रह की जप संख्या: बृहस्पति ग्रह की जप संख्या 19000 जप की है।
बृहस्पति मन्त्र – ॐ बृहस्पतये नमः ।
बृहस्पति या गुरु ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।

बृहस्पति मन्त्र की 16, 5 या 3 माला की जाती है ।

Guruvar Vrat Significance गुरुवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. गुरुवार का व्रत विद्यार्थियों के लिये बुद्धि तथा विद्याप्रद होता है।
  2. गुरुवार का व्रत करने से धन की स्थिरता तथा यश की वृद्धि होती है।
  3. जिस किसी की कुंडली में गुरु की दृष्टि कमजोर हो उसे गुरुवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका गुरु मजबूत होता है ।
  4. गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से अविवाहितों का विवाह होने में सहायता मिलती है ।
  5. यह व्रत करने से बृहस्पति भगवान अति प्रसन्न होते है तथा अन्न, धन, विद्या का लाभ तथा रूपवती पत्नी प्राप्त होती है।
  6. स्त्रियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए ।
  7. सभी को जीवन में ज्ञान और सुख की लालसा होती है और बृहस्पति ग्रह ‘ज्ञान तथा सुख‘ का अधिष्ठाता ग्रह है। तो जिस किसी को ज्ञान और सुख चाहिए वो गुरुवार का व्रत जरूर करे।

Guruvar Vrat Aarti गुरुवार व्रत की आरती( बृहस्पति भगवान की आरती) Brihaspati Bhagwan ki Aarti

जय बृहस्पति देवा,
ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,
कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटा‌ओ,
संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,
जय बृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ॥

Guruvar Vrat Katha गुरुवार व्रत की कथा(गुरुवार व्रत की पौराणिक कथा)

आनंदपुर नगर में एक सुखी परिवार रहता था। उनके घर में अन्न, वस्त्र और धन की कोई कमी नहीं थी। परन्तु घर की बहु बहुत ही कर्पण थी । किसी भी भिक्षार्थी को कुछ नहीं देती थी । सारे दिन घर के काम काज में लगी रहती थी । एक दिन बृहस्पति भगवान साधु-महात्मा के भेष में बृहस्पतिवार के दिन उसके घर के द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की। बहु उस समय घर के आँगन की सफाई कर रही थी । इस कारण साधू से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मैं घर साफ़ कर रही हूँ। आपको कुछ नहीं दे सकती । फिर किसी अवकाश के समय आना ।

साधु-महात्मा खाली हाथ चले गए। कुछ दिन के बाद वही साधू फिर वहाँ आये । उसी तरह भिक्षा मांगी । घर कि बहु बेटे को नहला रही थी । वो कहने लगी- महाराज मैं क्या करू अवकाश नहीं है, इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती । तीसरी बार महात्मा फिर आये तो उसने उन्हे उसी तरह से टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुझको बिलकुल ही अवकाश हो जाये तो मुझको भिक्षा देगी ? घर की बहु कहने लगी कि हां महाराज यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बड़ी कृपा होगी। साधू-महात्मा बोले कि मैं एक उपाय बताता हूँ ।

तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़ने पर उठो और सारे घर में झाड़ू लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो । घर में चौका इत्यादि मत लगाओ । फिर स्नान इत्यादि करके घर वालो से कह दो कि घर के सभी पुरुष उस दिन हजामत बनवाए। भोजन बनाकर उसे चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी मत रखना। सांयकाल को अँधेरा होने के बाद दीपक जलाया करो । बृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र कभी धारणा नहीं करना और ना ही पीले रंग कि चीजों का भोजन करना । बस यदि ऐसा करोगे तो तुम्हे घर का कोई भी कार्य नहीं करना पड़ेगा । घर की बहु ने ऐसा ही किया ।

पूरे घर के सभी सदस्य ऐसा ही करते रहे। वे सभी बृहस्पतिवार को ऐसा ही करते रहे। अब कुछ समय बाद उसके घर में खाने को दाना भी नहीं रहा । थोड़े दिन बाद वही महात्मा जी फिर आये और भिक्षा मांगी परन्तु बहु बोली महाराज मेरे घर में खाने को अन्न ही नहीं है तो आपको क्या भिक्षा दे सकती हूँ । तब महात्मा जी ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थी । अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो ?

तब बहु ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की महाराज अब कुछ ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाये । तब महात्मा जी को दया आई और बोले- बृहस्पतिवार को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत होकर घर कि सफाई किया करो और घर के पुरुष हजामत ना बनवाए । भूखो को अन्न-जल देती रहा करो । ठीक सांयकाल के समय दीपक जलाया करो । यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाय भगवान बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी।घर की बहु ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य, वैभव पहले से भी कई गुना हो गया । बोलो बृहस्पति भगवान की जय ।

Brihaspati Kavacham श्री बृहस्पति कवचं

विनियोग – अस्य श्रीबृहस्पति कवचस्तोत्रमन्त्रस्य, ईश्वर ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, गुरु देवता, गं बीजं श्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं गुरु प्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥

अथ श्रीबृहस्पति कवचम्

अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुर पूजितम्।

अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम्।।

बृहस्पति: शिर: पातु ललाटं पातु में गुरु:।

कर्णौ सुरुगुरु: पातु नेत्रे मेंभीष्टदायक:।।

जिह्वां पातु सुराचायो नासां में वेदपारग:।

मुखं मे पातु सर्वज्ञो कण्ठं मे देवता शुभप्रद:।।

भुजवाङ्गिरस: पातु करौ पातु शुभप्रद:।

स्तनौ मे पातु वागीश: कुक्षिं मे शुभलक्षण:।।

नाभिं देवगुरु: पातु मध्यं सुखप्रद:।

कटिं पातु जगदवन्द्य: ऊरू मे पातु वाक्पति:।।

जानु जङ्गे सुराचायो पादौ विश्वात्मकस्तथा।

अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन् मे सर्वतोगुरु:।।

इत्येतत कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।

सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

|| इति श्री ब्रह्मयामलोकतं बृहस्पति कवच सम्पूर्णम् ||

श्री बृहस्पति स्तुति Shri Brihaspati Stuti

जयति जयति जय श्री गुरूदेवा, करों सदा तुम्हरी प्रभु सेवा।

देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।

वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।

विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, करहु सकल विधि पूरण कामा।

Brihaspati Stotram श्री बृहस्पति स्त्रोत्रं

गुरुर्बुधस्पतिर्जीवः सुराचार्यो विदांवरः। वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा।।

सुधादृष्टिः ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः। दयाकरः सौम्य मूर्तिः सुराज़: कुङ्कमद्युतिः।।

लोकपूज्यो लोकगुरुर्नीतिज्ञो नीतिकारकः। तारापतिश्चअङ्गिरसो वेद वैद्य पितामहः।।

भक्तया वृहस्पतिस्मृत्वा नामानि एतानि यः पठेत्। आरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः।।

जीवेद् वर्षशतं मर्त्यः पापं नश्यति तत्क्षणात्। यः पूजयेद् गुरु दिने पीतगन्धा अक्षताम्बरैः।

पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम्। ब्राह्मणान् भोजयित्वा च पीडा शान्ति:भवेद्गुरोः।।

गुरुवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक आस्था और भक्ति के साथ करें।

FAQ

गुरुवार व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?

गुरुवार व्रत को पूरे दिन में विष्णु भगवान की पूजा करने के बाद कभी भी खोला जा सकता है । भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए।

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Budhavar Vrat Vidhi Katha बुधवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व https://prabhupuja.com/budhavar-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/budhavar-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Sun, 21 Jan 2024 11:50:58 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1957 Budhavar Vrat Vidhi Katha Wednesday Vrat बुधवार व्रत की सम्पूर्ण विधि, कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। बुध गृह की शांति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुषों को बुधवार का व्रत करना चाहिए तथा श्वेत पुष्प, श्वेत वस्त्र तथा श्वेत चन्दन से बुध भगवान की पूजा करनी चाहिए। बुधवार का व्रत 45, 21 या 17 बुधवार तक करना चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए। सफ़ेद वस्तु का दान भी करना चाहिए।

इस व्रत के समय हरी वस्तुओ का उपयोग करना श्रेष्ट होता है। व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धुप, दीप, बिल्व-पत्र आदि से करनी चाहिए। साथ ही बुधवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर ही उठना चाहिए।

Budhavar Vrat Vidhi बुधवार व्रत कैसे करे (बुधवार व्रत की विधि)

  1. बुधवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर बुध ग्रह की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है।
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही बुध ग्रह की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये जल, श्वेत पुष्प, श्वेत वस्त्र, श्वेत चन्दन, फल, श्वेत मिष्ठान, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है।
  3. पूजन का समय: सुबह के समय दिन के तीसरे प्रहर तक बुध भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय बुध ग्रह के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. बुधवार व्रत में नमक रहित मूंग से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। प्रातः पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है। मूंग का हलवा, मूंग की पंजीरी, मूंग के लडडू का सेवन किया जा सकता है। भोजन से पहले तीन तुलसी के पत्ते चरणामृत या गंगाजल के साथ खाकर तब भोजन करना चाहिए।
  6. पूजन के अंत में बुध भगवान की आरती जरूर करें।
  7. बुध भगवान पूजन के पश्यात बुधवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. बुधवार कथा पढ़ने-सुनने के बाद श्री बुध कवचं, श्री बुध स्तुति और बुध पंचविंशतिनाम स्त्रोत्रं का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।

Budhavar Vrat Rules बुधवार व्रत के नियम

  1. बुधवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन इस दिन पूर्ण वर्जित होता है।
  2. पूरे दिन में भोजन बिना नमक वाला एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व बुध भगवान का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. श्री बुध कवचं, श्री बुध स्तुति का पाठ और बुध मन्त्र की 17 माला जरूर करें।
  4. बुधवार व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी बुध या शिव मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। बुध भगवान जी की कृपा से परिवार निरोगी रहेगा।
  6. बुध ग्रह का राशि-भोग काल: बुध ग्रह एक मास में राशि का भोग करता है, अर्थात एक राशि पर एक माह तक रहता है।
  7. बुध ग्रह की दृष्टि: बुध ग्रह जिस भाव में बैठा हो उसमे तीसरे तथा दसवें भाव को ‘एक पाद’ दृष्टि से, नवे तथा पांचवे भाव को ‘द्वि पाद’ दृष्टि से, चौथे तथा आठवें भाव को त्री पाद दृष्टि से तथा सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
  8. बुध ग्रह की जाति: बुध ग्रह की जाति ‘वैश्य’ जाति है।
  9. बुध ग्रह का रंग: बुध ग्रह का रंग हरा रंग होता है।
  10. बुध ग्रह वाणी का अधिष्ठाता ग्रह है।
  11. बुध ग्रह शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है।
  12. बुध ग्रह की दान वस्तुएँ: कपूर, मूंग, हरा वस्त्र, हरी मणि, कासे का बर्तन, सोना, धृत, हाथी दांत, हरे फूल, पन्ना, शस्त्र, फल और मिश्री। दान का सबसे उत्तम समय सूर्योदय से 5 घडी तक ही रहता है।

Budhavar Vrat Mantra बुधवार व्रत का मंत्र

बुध ग्रह की जप संख्या: बुध ग्रह की जप संख्या 8000 जप की है।
बुध मन्त्र – ॐ बुं बुधाय नमः ।
बुध ग्रह का वैदिक मन्त्र(बीज मंत्र) – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ।

Budhavar Vrat Significance बुधवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. बुधवार का व्रत करने से विद्या और धन का लाभ होता है
  2. जिस किसी की कुंडली में बुध की दृष्टि कमजोर हो उसे बुधवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका बुध मजबूत होता है ।
  3. बुधवार के दिन बुध भगवान की पूजा-अर्चना करने से व्यापार में उन्नति होती है ।
  4. जिस किसी को वाणी में तेज और सम्मोहन लाना हो उसे बुध भगवान का बुधवार व्रत अवश्य करना चाहिए। बड़े-बड़े वक्ताओं का बुध ग्रह का भाव बहुत मजबूत होता है ।
  5. वकील, नेता, आरजे आदि को बुधवार व्रत अवश्य करना चाहिए। जैसा की ऊपर कहा भी गया है कि बुध ग्रह वाणी का अधिष्ठाता ग्रह है।

Budhavar Vrat Aarti बुधवार व्रत की आरती( बुध भगवान की आरती) Budh Bhagwan ki Aarti

आरती युगलकिशोर की कीजै ।
तन मन धन न्योछावर कीजै ॥

गौरश्याम मुख निरखन लीजै ।
हरि का रूप नयन भरि पीजै ॥

रवि शशि कोटि बदन की शोभा ।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा ॥

ओढ़े नील पीत पट सारी ।
कुंजबिहारी गिरिवरधारी ॥

फूलन सेज फूल की माला ।
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला ॥

कंचन थार कपूर की बाती ।
हरि आए निर्मल भई छाती ॥

श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी ।
आरती करें सकल नर नारी ॥

नंदनंदन बृजभान किशोरी ।
परमानंद स्वामी अविचल जोरी ॥

Budhavar Vrat Katha बुधवार व्रत की कथा(बुधवार व्रत की पौराणिक कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार कुंदनपुर नामक नगर में मधुसुदन नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने पत्नी के मायके पहुंचा। कुछ दिवस रहने के पश्यात मधुसुदन ने सास-ससुर से अपनी पत्नी को विदा करने के लिये कहा। किन्तु बुधवार का दिन होने के कारण उसके सास-ससुर ने विदा करने के लिए मना किया कि आज के दिन गमन नहीं करते। लेकिन वह नहीं माना और हठ करके पत्नी को मायके से विदा कराकर अपने घर की तरफ चल दिया।

रास्ते में उसे कई परेशानियों को झेलना पड़ा। उसकी बैलगाड़ी टूट गई। फिर उन दोनों को दूर तक पैदल चलना पड़ा। उसकी पत्नी को प्यास लगने लगी, तो मधुसुदन पानी लाने के लिए गया। लेकिन जब वह वापस लौटा तो उसने अपनी पत्नी के पास अपने ही रूप वाले व्यक्ति को पाया। दोनों में बहुत लड़ाई हुई । बिना अपराध के गलतफहमी के कारण मधुसुदन को उस राज्य के राजा ने सजा सुना दी। तब मधुसूदन परेशान होकर ईश्वर से बोला- हे! परमेश्वर यह क्या लीला है आपकी ?, आज क्या गलती हो गई मुझसे, तब आकाशवाणी हुई कि मुर्ख आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था। तूने किसी की बात नहीं मानी। यह लीला बुधदेव भगवान की है।

इसके बाद मधुसूदन माफी मांगता है कि बुधदेव मुझे माफ कर दें। अब कभी किसी शुभ काम के लिए इस दिन यात्रा नहीं करुंगा और हर बुधवार को व्रत भी किया करुंगा। इस प्रार्थना के बाद बुध देव ने उसे माफ कर दिया। मधुसूदन के रूप में आये भगवान बुध अंतर्ध्यान हो गए। राजा और सभी लोग इसे देखकर हैरान हो गए। इसके बाद राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मान के साथ विदा किया। जब दोनों सकुशल घर आ गए तब इसके बाद मधुसूदन और उसकी पत्नी हर बुधवार के दिन विधि के साथ व्रत करने लगे और इसके बाद दोनों सुख के साथ अपना जीवन यापन करने लगे।

जो व्यक्ति कथा को श्रवण करता है तथा दूसरों को सुनाता है। उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है और उसे सर्व प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

श्री बुध कवचं Budha Graha Kavacham

विनियोग – अस्य श्री बुधकवचस्तोत्रमन्त्रस्य, कश्यप ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, बुधो देवता, बुधप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥

अथ बुध कवचम्

बुधस्तु पुस्तकधरः कुङ्कुमस्य समद्युतिः

पीताम्बरधरः पातु पीतमाल्यानुलेपनः ‖

कटिं च पातु मे सौम्यः शिरोदेशं बुधस्तथा

नेत्रे ज्ञानमयः पातु श्रोत्रे पातु निशाप्रियः ‖

घाणं गन्धप्रियः पातु जिह्वां विद्याप्रदो मम

कण्ठं पातु विधोः पुत्रो भुजौ पुस्तकभूषणः ‖

वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं रोहिणीसुतः

नाभिं पातु सुराराध्यो मध्यं पातु खगेश्वरः |‖

जानुनी रौहिणेयश्च पातु जङ्घ्??उखिलप्रदः

पादौ मे बोधनः पातु पातु सौम्यो??उखिलं वपुः| ‖

अथ फलश्रुतिः

एतद्धि कवचं दिव्यं सर्वपापप्रणाशनम्

सर्वरोगप्रशमनं सर्वदुःखनिवारणम् |‖

आयुरारोग्यशुभदं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम्

यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् |

|| इति श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे बुध कवच सम्पूर्णम् ||

श्री बुध स्तुति

जय शशि नन्दन बुधे महाराजा , करहु सकल जन कहँ शुभ काजा । 

दीजै बुद्धिबल सुमति सुजाना , कठिन कष्ट हरि करि कल्याना । 

 हे तारासुत रोहिणी नन्दन , चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन । । 

पूजहु आस दास कहुँ स्वामी , प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी । ।

बुध पंचविंशतिनाम स्त्रोत्रं Budha Panchavimshatinama Stotram

विनियोग – अस्य श्री बुध पंचविंशतिनाम स्त्रोत्रंस्य, प्रजापति ऋषिः,

त्रिष्टुपछन्दः, बुधो देवता, बुधप्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ॥

अथ बुध पंचविंशतिनाम स्त्रोत्रं

 बुधो बुद्धिमतां श्रेष्ठो बुद्धिदाता धनप्रदः।

प्रियंगुकुलिकाश्यामः कञ्जनेत्रो मनोहरः॥ १॥

ग्रहोपमो रौहिणेयः नक्षत्रेशो दयाकरः।

विरुद्धकार्यहन्ता सौम्यो बुद्धिविवर्धनः ॥२॥

चन्द्रात्मजो विष्णुरूपी ज्ञानी ज्ञो ज्ञानिनायकः।

ग्रह्पीडाहरो दारपुत्रधान्यपशुप्रदः ॥३॥

लोकप्रियः सौम्यमूर्तिः गुणदो गुणिवत्सलः।

पञ्चविंशतिनामानि बुधस्यैतानि यः पठेत्॥४॥

स्मृत्वा बुधं सदा तस्य पीडा सर्वा विनश्यति।

तद्दिने वा पठेद्यस्तु लभते स मनोगतम् ॥५॥

FAQ

बुधवार व्रत में क्या खाना चाहिए ?

बुधवार व्रत में नमक रहित मूंग से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। मूंग का हलवा, मूंग की पंजीरी, मूंग के लडडू का सेवन किया जा सकता है। भोजन से पहले तीन तुलसी के पत्ते चरणामृत या गंगाजल के साथ खाकर तब भोजन करना चाहिए।

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Mangalvar Vrat Vidhi Katha मंगलवार व्रत की सम्पूर्ण विधि कथा व महत्त्व https://prabhupuja.com/mangalvar-vrat-vidhi-katha-significance/ https://prabhupuja.com/mangalvar-vrat-vidhi-katha-significance/#respond Sat, 30 Dec 2023 12:03:15 +0000 https://prabhupuja.com/?p=1953 Mangalvar Vrat Vidhi Katha Tuesday Vrat मंगलवार व्रत की सम्पूर्ण विधि, कथा व महत्त्व का वर्णन हम यहाँ विस्तार से आपसे साझा कर रहे है। सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करना शुभ रहता है। मंगलवार व्रत को 21 सप्ताह तक लगातार करना चाहिए । मंगलवार का दिन हिन्दू धर्म में भगवान बजरंगबली को समर्पित है। हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय मंगलवार व्रत ही है। हनुमान चालीसा में कहा भी गया है- सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।। लाल पुष्प, लाल चन्दन, लाल फल और लाल मिष्ठान से हनुमान जी का पूजन करना चाहिए।

Mangalvar Vrat Vidhi मंगलवार व्रत कैसे करे (मंगलवार व्रत की विधि)

  1. मंगलवार के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर हनुमान जी की पूजा करने के लिए स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे उत्तम है। (यह समय हमे विशेष ज्ञान देता है और हम अरबो लोगो से आगे हो जाते है।)
  2. पूजन सामग्री: प्रातःकाल ही हनुमान जी की पूजा के लिए सामग्री तैयार कर ले। पूजा के लिये जल, लाल पुष्प, लाल चन्दन, लाल फल, लाल मिष्ठान, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, चन्दन, लौंग, पान, सुपारी, घी, कपूर, तेल, मोली(कलेवा या लच्छा), फूल माला, रुई और धातु के कलश की आवश्यकता होती है। हनुमान जी को चोला चढ़ाना हो तो कामी(सिंदूर), चमेली का तेल जरूर साथ रखे।
  3. पूजन का समय: सुबह के समय दिन के दूसरे या तीसरे प्रहर तक हनुमान जी का पूजन कर लेना चाहिए।
  4. मंत्र जाप: पूजा के समय बजरंगबली के मंत्रों का जाप करते रहे।
  5. व्रत में फलाहार या परायण का कोई ख़ास नियम नहीं है। किन्तु यह आवश्यक है कि दिन और रात में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करे। प्रातः पूजन के उपरान्त कभी भी एक समय भोजन किया जा सकता है।
  6. पूजन के अंत में हनुमान जी की आरती जरूर करें।
  7. हनुमान पूजन के पश्यात मंगलवार व्रत कथा सुननी चाहिए।
  8. मंगलवार कथा पढ़ने-सुनने के बाद हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।(आप प्रभु की भक्ति में जितने डूबोगे उनकी कृपा उतनी जल्दी प्राप्त होगी।)

Mangalvar Vrat Rules मंगलवार व्रत के नियम

  1. मंगलवार व्रत के दिन सात्विक भोजन करें, मांस-मदिरा का सेवन इस दिन पूर्ण वर्जित होता है।
  2. पूरे दिन में भोजन एक समय ही करना चाहिए, भोजन या फलाहार से पूर्व हनुमान जी का पूजन कर लेना चाहिए।
  3. हनुमान चालीसा का पाठ करे, हनुमान मन्त्र की 21 माला जरूर करें।
  4. मंगलवार व्रत की कथा जरूर पढ़ें या सुनें ।
  5. आपके नजदीक जो भी हनुमान मंदिर हो, वहाँ सपरिवार दर्शन करने जरूर जाए। हनुमान जी की कृपा से परिवार निरोगी रहेगा। रात्रि 12 बजे की आरती में जरूर शामिल होना चाहिए।
  6. मंगलवार व्रत के दिन हनुमान मंदिर जाकर चोला चढ़ाना विशेष फल देता है ।
  7. मंगलवार व्रत के दिन हनुमान जी को गुड़ और चने का भोग लगाना चाहिए ।
  8. गौशाला जाकर गौ माता को हरा चारा जरूर डालना चाहिए।

Mangalvar Vrat Mantra मंगलवार व्रत का मंत्र

ॐ नमो भगवते हनुमते नम:

मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना शुभ माना जाता है।

Mangalvar Vrat Significance मंगलवार व्रत का महत्त्व या फायदे

  1. मंगलवार का व्रत रखने से हनुमान जी की परम भक्ति प्राप्त होती है। हनुमान ऐसे भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखते हैं। इस कलयुग में हनुमान जी साक्षात् भक्त की रक्षा करते है।
  2. जिस किसी की कुंडली में शनि की कुदृष्टि हो उसे मंगलवार व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उसका शनि शांत होता है ।
  3. मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के सभी दुःख-दर्द दूर होते हैं । उसे बुद्धि और बल प्राप्त होता है ।
  4. रोगी मनुष्य में अगर शारीरिक सामर्थ्य हो तो यह व्रत उसे अवश्य करना चाहिए, ताकि वह हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर निरोगी हो सके।
  5. किशोर और युवा लड़को को मंगलवार का व्रत जरूर करना चाहिए। इससे उनको विवेक, बल, ब्रह्मचर्य और तेज की प्राप्ति होती है।

Mangalvar Vrat Aarti मंगलवार व्रत की आरती( हनुमान जी की आरती) Hanuman ji ki Aarti

मंगलवार व्रत में हनुमान जी की पूजा के बाद हनुमान जी की आरती की जाती है । हनुमान आरती का लिंक हम यहाँ दे रहे है आप इस लिंक पर क्लिक करके हनुमान जी की आरती जरूर करे ।

हनुमान जी की आरती

Mangalvar Vrat Katha मंगलवार व्रत की कथा(मंगलवार व्रत की पौराणिक कथा)

बहुत समय पहले की बात है एक नगर में ब्राह्मण दंपत्ति रहा करते थे । ब्राह्मण दंपत्ति के कोई संतान नहीं थी, जिस कारण वह बेहद दुःखी रहा करते थे। दुखी ब्राह्मण वन में हनुमान जी की पूजा के लिए चला गया। वहाँ उसने पूजा के साथ हनुमान जी से एक पुत्र की कामना की। घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। वह मंगलवार के दिन व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर ही भोजन करती थी।एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी भोजन नहीं बना पाई और ना ही हनुमान जी को भोग लगा सकी।

वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि वह अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर ही अन्न ग्रहण करेगी। वह भूखी प्यासी छह दिन तक पड़ी रही। मंगलवार के दिन उसे मूर्छा आ गई। हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हो गए । उन्होंने उसे दर्शन दिये और कहा- “मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ, मांगो क्या मांगती हो, ब्राह्मणी बोली आप सर्वज्ञ हो हम बिना संतान संसार से नहीं जाना चाहते। हनुमान जी बोले- मैं तुम्हे एक सुन्दर बालक देता हूँ यह तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।” हनुमान जी मंगलवार को ब्राह्मणी को दर्शन देकर अंतर्ध्यान हो गए।

सुन्दर बालक को पाकर ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुई। ब्राह्मणी ने बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय उपरांत ब्राह्मण घर को लौटकर आया,

तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है?

पत्नी बोली कि मंगलवार व्रत से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने उसे यह बालक दिया है। ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुएं में गिरा दिया।घर पर लौटने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि, मंगल कहां है? तभी पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ गया। उसे वापस देखकर ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। रात को हनुमानजी ने उसे सपने में दर्शन दिए और बताया कि यह पुत्र उसे उन्होंने ही दिया है।

ब्राह्मण सत्य जानकर बहुत खुश हुआ। इसके बाद ब्राह्मण दंपत्ति प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखने लगे।

हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के सरल उपाय:

  1. नियमित रूप से हनुमान मंदिर जाए, एक पाठ हनुमान चालीसा का नियमित रूप से करे। हनुमान जी की कृपा प्राप्त होगी ।
  2. मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी के सामने दीपक जरूर जलाए। अगर कोई विशेष कामना हो तो सरसो तेल का दीपक ही जलाए।
  3. बल, बुद्धि और विद्या के धनी हनुमान जी की कृपा चाहिये हो तो रामायण का पाठ घर में नियमित रूप से करे ।

मंगलवार व्रत में यह ध्यान रखें:

  • गर्भवती महिलाएं, बीमार लोग और छोटे बच्चे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत का पालन करें।
  • व्रत को केवल धर्म या परंपरा से अधिक, आस्था और भक्ति के साथ करें।

मंगलवार व्रत का पालन आपके जीवन में ज्ञान, बल, सुख, शांति और समृद्धि ला सकता है। हनुमान जी की कृपा से आपका जीवन प्रकाशमय और सफल बन सकता है। हनुमान जी ही एक सशरीर पूज्य देवता है इस लोक में, अपने भक्तो की रक्षा को वे स्वयं आते है, तो आज ही से इस सरल व्रत का अनुष्ठान शुरू करें और बजरंगबली का आशीर्वाद प्राप्त करें!

FAQ

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